अभिनय मेरी माता है, इसे नहीं छोड़ सकता -राजपाल यादव

सुनील सोन्हिया भोपाल  की विशेष बातचीत

सुनील सोन्हिया भोपाल  की विशेष बातचीत
दिन भर की भागदौड़ भरी जिंदगी में आये तनाव को दूर करने व्यक्ति फिल्म देखने जाता है फिल्म का एक अहम पहलु कॉमेडी होता है। फिल्म इंडस्ट्री में एक से बढ़कर कॉमेडियन हुए है जैसे मेहमूद ,जॉनी लीवर, कादर खान, जगदीप, जूनियर मेहमूद, राजेंद्र नाथ, केश्टो मुखर्जी, शक्ति कपूर, सतीश कौशिक, असरानी, परेश राव, ओमप्रकाश, टुनटुन, मुकरी आदि। विगत 15 -16 वर्षों से अपनी हास्य शैली से अलग पहचान बनाने वाले राजपाल यादव ने लगभग 116 फिल्मों में अभिनय कर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
भोपाल में आये दिन फिल्मों की शूटिंग होने लगी हैं। एक फिल्म तिश्नगी की शूटिंग के दौरान कॉमेडियन राजपाल यादव से उनके फ़िल्मी कॅरियर को लेकर विशेष बातचीत करने का अवसर मिला।

सबसे पहले तो आप अपने बारे में बताएं?
मैं मूलतः उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ। 8 वी तक की शिक्षा खुर्रा गांव में हुई शाहजंहापुर से स्नातक किया। लखनऊ से स्नात्कोत्तर की डिग्री प्राप्त की। फिर दिल्ली से ऐनएसडी की परीक्षा पास की। परिवार में एक अदद पत्नी और दो बेटियां हैं।

आपके भीतर का कलाकार कब उजागर हुआ ?
स्कूल स्तर की शिक्षा बायोलॉजी से कर रहा था। मेरे शिक्षक मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे और मेरी इच्छा थी कि मैं कोई ऐसा काम करूँ जिसमे मुझे नौकरी न करनी पड़े। परन्तु कहते है न जिस काम से बचो वही गले पड़ जाता है। रोटी कपडा और मकान की आवशयकता ने मुझे नौकरी करने के लिए मजबूर कर दिया। शाहजंहापुर में ऑर्डीनेस फैक्ट्री में ढाई साल तक काम किया और दिशा तलाशता रहा। फिर कुरुनेशन आर्ट थिएटर से जुड़ा श्री जरीन मलिक आनंद के साथ दो साल थिएटर किया। छोटे छोटे रोल किये काम करने में आनंद आने लगा। विभा मिश्रा के एक नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा के प्ले ने मेरे कॅरियर को नई दिशा दी। मैंने अपना रुख दिल्ली की और कर लिया वहां से मुंबई की ओर। आर्ट और आटा के संतुलन को बनाये रखते हुए आगे बढ़ा।

फ़िल्मी सफर की शुरुआत कैसे हुई ?
प्रकाश झा एक सीरियल बना रहे थे मुंगेरी के भाई नौरंगीलाल। उसमे मुझे नौरंगीलाल का किरदार करने का मौका मिला। उस समय रघुवीर यादव जी का सीरियल बहुत लोकप्रिय था। इस सीरियल को करने का मुख्य कारण था नौरंगीलाल नाम जो की संयोगवश मेरे पिताजी का नाम भी था। सीरियल किया सफल हो गया। फिर पहली फिल्म मिली दिल क्या करे, जिसमें मेरे अभिनय को नोटिस किया। फिर मस्त और जंगल फिल्म ने मेरे फ़िल्मी कॅरियर को आगे बढ़ा दिया और इस तरह मैं अब आपके सामने हूँ।

आप अपने गुरु को बहुत मानते हैं उनके कार्यक्रमों में जाने के लिए फिल्म भी छोड़ देते है?
पंडित देव प्रभाकर शास्त्री जिन्हे लोग दद्दाजी के नाम से जानते है मैं उनका चेला हूँ। कटनी के पास उनका छोटा सा आश्रम है। व्यक्ति को अच्छा जीवन जीने के लिए एक निर्देशक चाहिए। गुरूजी के सानिध्य में मुझे आत्मिक शांति का अनुभव होता है। अतः मैं और आशुतोष राणा जब भी गुरूजी का आदेश होता हैं पहुंच जाते हैं।

सफलता कभी कभी कलाकार के अंदर अहंकार लाती है परन्तु ११६ फिल्म के बाद भी आपका विनम्रता ?
फलों से लदा वृक्ष तनता नहीं है झुकता है। सफलता की ऊंचाई ने मुझे और विनम्र बना दिया है।

आप फिल्म अभिनय के अलावा निर्माता, निर्देशक, संगीत निर्देशक तथा राइटर भी बन गए है क्या आप अभिनय से संतुष्ट नहीं हैं ?
अभिनय मेरी माता है उसे मैं कभी नहीं छोड़ सकता हूँ। मेरे पास एक स्टोरी थी जिसे लेकर फिल्म बनाना चाहता था किसी ने सहयोग नहीं किया तो खुद ही निर्माता निर्देशक बन गया।

आपको बेस्ट कॉमिक रोल के लिए फिल्म फेयर अवार्ड मिला इस बारे में क्या कहना चाहेंगे ?
मैंने कभी भी अवार्ड के लिए काम नहीं किया। मेरा सबसे बड़ा अवार्ड तो आप लोग हैं। जो मेरे काम को पसंद करते हैं।

राजपाल यादव अभिनीत प्रमुख फिल्म
दिल क्या करे, मस्त, जंगल,प्यार तूने क्या किया ,द हीरो, मालामाल वीकली, फिर हेराफेरी, भागम भाग, हंगामा, भूल भुलैया, भूतनाथ, क्रश 3, डर्टी पॉलिटिक्स, ढोल, दे दना दन, गरम मसाला, चुप चुपके, डरना मना है, लेडीज टेलर, अता पता लापता, बाबुल, अपना सपना मनी मन, शादी नंबर 1, कल हो न हो, वक्त, मुझसे शादी करोगी, खट्टा मीठा, मालामाल वीकली 2, मै तेरा हीरो, कंपनी, चांदनी बार आदि।

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