जानिए दो जुझारू महिलाओं को, विश्व महिला दिवस पर विशेष
इटारसी। महिला को अनेक नाम से पुकारा जाता है। कभी यह नारी कहलाती है, कभी स्त्री तो कभी औरत। शब्द भले ही कोई हों, हमारे समाज में महिलाओं के सहयोग बिना संसार की कल्पना नही की जा सकती। इंसान की परवरिश की बात हो या लालन पालन की। वंशवृद्धि हो या एक अच्छे समाज निर्माण की। कला संस्कृति और धर्म का क्षेत्र हो हर जगह महिलाओं की उपस्थिति होती है फिर भी समाज में कई बार इनको उपेक्षित होना पड़ता है। इन सबसे परे आज की महिलाएं अपने साहसिक निर्णयों से समाज के हर क्षेत्र में अपने हुनर और सफलता की डंका बजा रही हैं। आज के दौर में महिलाओं की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रियो ओलंपिक में अनेक महिला खिलाडिय़ों ने देश के लिए पदक हासिल किए जो गौरव की बात है। समाज में महिलाएं हर स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, ऐसी ही कुछ महिलाओं से हम आपको परिचित कराना चाहते हैं, जिन्होंने अपने अदम्य साहस के बूते, पुरुषों के साथ कंधे-कंधे से कंधा मिलाकर वह काम कर दिखाये जो अब तक पुरुषों के माने जाते थे।
धीरेन्द्र सिंह की इस रचना एक नारी की भागीदारी को दर्शाती है..
घर से दफ़्तर चूल्हे से चंदा तक, पुरुष संग अब दौड़े यह नार।
महिला दिवस है शक्ति दिवस भी, पुरुष नज़रिया में हो और सुधार।।
हालात भी न हरा सके जिसे ऐसे ही एक महिला है रामवती बाई।
पति मिश्री लाल इटारसी रेलवे स्टेशन पर कुली थे। नाला मोहल्ले में रहने वाली यह महिला अपने पति की मृत्यु के बाद उनके स्थान पर इटारसी रेल्वे स्टेशन में कुली का कार्य करती हैं। रामवती के पति की मृत्यु 2007 में हुई तो उनके सामने पहाड़ सी जिंदगी काटने की समस्या हो गई। हालात से टूटने की बजाए उन्होंने मजबूती से खड़े होकर परिस्थिति पर विजय पाने का निश्चय किया। तत्कालीन स्टेशन प्रबंधक दिनेश रिझारिया ने दस्तावेजों में सहयोग दिया और 2012 में वे कुली का कार्य करने लगी। आज वे अपने बच्चों की पढ़ाई व घर की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। नौकरी पाने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया। परेशानियां आयीं लेकिन वे घबरायी नहीं और आखिर जीत उनके साहस की हुई। उनका कहना है कि पहले बहुत दिक्कत होती थी क्योंकि एक महिला को देखकर कोई लगेज उठ़ाने नहीं देता था। लोग कहते थे कि आप महिला हो रहने दो, आपसे नहीं होगा। पर उन्होंने यात्रियों का समझायाय और कुली भाईयों ने भी सहयोग दिया। पुरूषों की तो आमदनी अच्छी हो जाती है, पर महिला के कारण उनकी नहीं हो पाती। पहले ये काम करने में झिझक होती थी पर अब नहीं होती क्योंकि कोई भी महिला पुरूषों से कम नही है। आज स्टेशन पर लिफ्ट होने, मोबाइल, ट्रॉली बैग आदि की तकनीक की वजह से ज्यादातर पैसेंजर अपना लगेज खुद उठा कर ट्रेनों तक ले जाते हैं। इस वजह से 2 साल से हमारी ज्यादा इनकम नहीं हो पाती, कभी कभी तो पूरे दिन में केवल 40-50 रुपए ही मिल पाते हैं। सरकार को कुलियों के लिए भी अलग से मासिक वेतन देने की योजना निकालनी चाहिए। कम इनकम की वजह से वे नौकरी के बाद घर में जाकर ऊन से बने मोबाइल पर्स भी बनाकर बेचती हैं।
महिलाओं के लिए मैसेज
महिलाओं के लिए एक संदेश कि हर महिला व बेटियों को आगे बढऩा है, हम भी किसी पुरूष से कम नहीं हैं और अपने माँ-बाप का नाम रोशन करना है। हम सभी महिलाओं को अपने आप पर गर्व होना चाहिए कि हम महिला हैं।
पुरूषों के लिए मैसेज
पुरुषों के लिए उनका संदेश है कि हर महिला केवल घर के चूल्हे तक ही सीमित नहीं है। वह घर से बाहर जाकर आप पुरुषों की तरह कार्य कर सकती हैं।
साहस की एक और मिसाल हैं, माला वैद्य।
हाउसिंग बोर्ड कालोनी पुरानी इटारसी निवासी माला खेड़ा पेट्रोल पंप पर कार्य करती हैं। यह कलकत्ता की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि उनके पति की मृत्यु 1998 में हुई। उनके बाद में अपने परिवार के साथ इटारसी में आकर रहने लगी। 2001 में उन्होंने पेट्रोल पंप पर कार्य करना शुरू किया। उन्होंने यह नौकरी इसलिए चुनी क्योंकि उन्हें समाज में एक नई पहचान व कुछ अलग काम करना था, ताकि सभी लड़कियों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बन सकें। इनका कहना है कि इन्हें इस लाइन में बहुत सम्मान मिला और आज तक मिल रहा है। उनकी तरफ से सभी लड़कियों व महिलाओं के लिए मैसेज हैं हमें गर्व है कि हम महिला हैं। हम किसी से कम नहीं हैं।