दूसरों में बुराई देखने से पहले स्वयं को देखो : तिवारी

दूसरों में बुराई देखने से पहले स्वयं को देखो : तिवारी

इटारसी। हमारा सच्चा गुरु वही होता है, जो तन, मन, धन, समय, बुद्धि को भगवान की तरफ लगा दे। जो गुरु जीवन को सत्कर्म, सत्य, धर्म, प्रेम, परोपकार, सेवा, पुरुषार्थ से जोड़ दे। चाहे वह मां हो, पिता, भाई, मित्र, पति या पत्नी ही क्यों न हो।
यह उद्गार संदलपुर के संत भक्त पंडित भगवती प्रसाद तिवारी ने यहां शिवनगर चांदौन के दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानगंगा यज्ञ में व्यक्त किये। श्री तिवारी ने कहा कि किसी स्वार्थ के कारण दूसरे में कमी, बुराई, दोषारोपण करने से पहले अपने आपको देखो कि क्या हम निर्दोष हैं, हम में कोई कमी, बुराई नहीं है। अगर हमारे अंदर कमी है, तो दूसरों को दोषी कहने के अधिकारी हम नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि संसार में दो तरह के लोग रहते हैं। एक मोही, दूसरा निर्मोही। मोही कर्म बांधता है, निर्मोही करम काटता है। मोही प्राणी तन,धन, नश्वर में तन्मय होकर रहता है। लेकिन निर्मोही तन, मन, धन, नश्वर जगत में रहता हुआ चिन्मय, शाश्वत, ईश्वर की और नजर रखता है। संतश्री ने कहा कि पतन, पाप से बचने सदा प्रयत्न, सत्कर्म, सत्संग, साधना करते हंै, वे एक दिन निश्चित ही पतित से पावन बन जाते हैं। तुम्हारा मन एक कल्पवृक्ष के समान है। तुम जैसा सोचोगे वैसा ही पाओगे, इसलिए मन से अच्छा सोचो, सबके हित के बारे में सोचो। जप, तप, ध्यान, संयम, साधना, सांसारिक काम और कामना की भावना से नहीं आत्म कल्याण की भावना से की हुई भगवान की भक्ति ही मुक्ति का कारण बन जाती है।

CATEGORIES
Share This
error: Content is protected !!