नर्मदा में पानी घटा, दिखाई देने लगे हैं टापू

होशंगाबाद। मां नर्मदा का आंचल सिकुड़ रहा है। झुलसाने वाली गर्मी का असर मां की कल-कल करके दौड़ती जिंदगी पर भी पड़ रहा है। जैसे-जैसे सूरज का ताप बढ़ रहा है, वैसे-वैसे वैशाख में लबालब रहने वाली नर्मदा सूखने की कगार पर पहुंच गई है। हालात इतने खराब हो गए कि ब्रिज के नीचे तो पानी कम चट्टानें ज्यादा दिखाई दे रही हंै। नर्मदा के कछार में कई जगह तो हालात ये हो गए हैं कि कीचड़ और टापू दिखाई देने लगे हैं।
नर्मदा में दिखती चट्टानें इस बात की गवाही दे रही हैं कि रेत माफिया ने किस कदर मां के आंचल को छलनी किया है। रेत का अवैध उत्खनन के साथ ही सहायक नदियों का जल भी सूख गया है, जो जीवनदायनी नर्मदा को जीवन प्रदान करती थीं। पिछले चार माह के मुकाबले वर्तमान में नर्मदा का एक फीट पानी कम हो गया है। इस वर्ष कम बारिश होने से नर्मदा और इसकी मुख्य सहायक नदियां दूधी, पलकमती और शक्कर नदी में बिल्कुल पानी नहीं बचा है। नर्मदा बेसिन के 220 किमी क्षेत्र में बहने वाली तीनों नदी के साथ ही बहुत से छोटे नालों में एक बूंद भी पानी नहीं बचा है जिसका सीधा असर नर्मदा के जलस्तर पर पड़ता है। तीनों ही मुख्य सहायक नदियां का जन्म पहाड़ों से होता है। पहाड़ों पर पेड़ों की अंधा-धुंध कटाई का परिणाम ये हो रहा है अब पहाड़ों पर हरे-भरे पेड़ पौधे ठूठ में बदल गये हैं जिसके कारण बरसात के मौसम में पहाड़ों में पानी ही नहीं जा पा रहा है। कारण ये है कि पहाड़ों से निकलने वाली पहाड़ी नदियों का पानी कुछ ही समय में सूख जाता है। जिसका सीधा असर नर्मदा पर पड़ता है। केंद्रीय जल आयोग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार महीने में ही नर्मदा का जलस्तर बहुत तेजी से घट रहा है जिसके कारण नर्मदा में ब्रिज के नीचे दिखती चट्टानें सहित जगह-जगह टापू नजर आने लगे हैं।

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