इटारसी। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में भक्तों का आना जारी है। श्मशान की माटी अरब सागर एवं सात पवित्र नदियों के जल से प्रतिदिन भगवान शंकर का पूजन एवं अभिषेक कराया जाता है। सावन मास के अवसर पर पूरे भारत में भगवान शिव माता पार्वती और उनके नंदी तथा गणेश, कार्तिकेय का पूजन होता है लेकिन अभिषेक भगवान शंकर का होता है। वर्षाकाल के चार मास के चर्तुमास में भगवान शिव प्रसन्न दिखाई देते हंै। उनके गुणों, यक्षो, गंधवो किन्नरो और मनुष्य को सेवा का विशेष फल मिलता है।
उक्त उद्गार पं. विनोद दुबे ने गुजरात में स्थित श्री नागेश्वर ज्योर्तिलिंग निर्माण और अभिषेक के अवसर पर व्यक्त किए। श्री नागनाथ की लिंग मूर्ति छोटे गर्भ गृह में रखी हुई। यहां महादेवी के सामने नंदी नही है। गर्भगृह के पीछे नदी का मंदिर अलग से है। इस स्थान की विशेषता यह है कि प्रति बारह वर्ष बाद कपिलाष्टमी के समय कुंड में काशी की गंगा का पदार्पण होता है और उस समय कुंड का पानी बिल्कुल निर्मल रहता है। औरंगजेब ने कई बार इस मंदिर को तोडऩे के प्रयास किए थे लेकिन बार बार उसे निराशा ही हाथ लगी और वह सैनिकों सहित वापिस गया। नागेश्वर ज्योर्तिलिंग स्थान से महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव जी महाराज के जुड़े रहने का प्रमाण भी मिलता है।
नागेश्वर ज्योर्तिलिंग के संदर्भ में श्री दुबे ने कहा कि दक्ष प्रजापति ने अश्वमेघ करवाते समय अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नही दिया था, पार्वती जब अपने पति शिवजी के मना करने के बाद भी अपने पिता दक्ष के यहां पहुंची और उन्होंने वहां देखा उनके पति भगवान शंकर का स्थान अन्य देवताओं के साथ नही है तब वे क्रोधाग्नि में जली और अपने शरीर की आहुति दे दी। भगवान शंकर इस बात से अत्यंत दुखी हुए और अमर्दक नाम की एक विशाल झील के तट पर आकर रहने लगे, भगवान शंकर ने यहां पर अपने शरीर को भस्म कर डाला, कुछ समय बाद वनवासी पाण्डवों ने उस अमर्दक झील के परिसर में अपना आश्रम बनाया उनकी गाय पानी पीने के लिए झील पर आती थी, पानी पीने के उपरांत व अपने स्तन से दुग्ध धाराए बहाकर झील में अर्पित करती थी। ज्योर्तिलिंग पूजन में प्रतिदन सात पवित्र नदियों का जल एवं अरब सागर का जल अभिषेक हेतु आ रहा है। आचार्य सत्येन्द्र पांडे, पीयूष पांडे पूर्ण सहयोग कर रहे है।
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नागेश्वर ज्योर्तिलिंग अनुठा और अदभुत है : दुबे
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