नारद की तपस्या से डोला इंद्र का सिंहासन
वृंदावन के कलाकारों ने मोह लिया मन
इटारसी। नगर पालिका परिषद के तत्वावधान में श्री द्वारिकाधीश मंदिर परिसर में रविवार से रामलीला और दशहरा उत्सव की शुरुआत हो गई है। नगर पालिका परिषद में सभापति जसबीर सिंघ छाबड़ा, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष पंकज चौरे ने सपत्नीक, पार्षद श्रीमती गीता पटेल और देवेन्द्र पटेल, जयकिशोर चौधरी, दीपू अग्रवाल, लेखापाल रत्नेश पचौरी, कार्यालय अधीक्षक संजय सोहनी ने रामलीला की शुरुआत भगवान की पूजा-अर्चना करके की। इस अवसर पर पार्षद, सभापति और गणमान्य नागरिक मौजूद थे।
श्री द्वारिकाधीश मंदिर में पं. प्रभातकुमार श्याम सुंदर शर्मा के निर्देशन में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त श्री बालकृष्ण लीला संस्था द्वारा लीला का मंचन किया जा रहा है। संस्था के कलाकारों ने स्वामी प्रभात कुमार श्यामसुंदर के निर्देशन में भगवान की लीला से भक्तों का मन मोह लिया। पहले दिन हनुमान चालीसा, गणेश पूजन के बाद कलाकारों ने नारद मोह की लीला प्रस्तुत की। नारद मोह की लीला में बताया है कि नारद जी को श्राप था कि एक ही स्थान पर ढाई घड़ी से अधिक नहीं ठहर सकते। इसी दौरान एक बार नारद जी हिमालय की तलहटी में विचरण कर रहे होते हैं, यह स्थान उन्हें इतना अधिक प्रिय लगता है कि वे वहीं तपस्या करने बैठ जाते हैं। यह देख इंद्र घबरा जाते हैं और उन्हें अपना आसन डोलता हुआ महसूस होता है। वे यह पता करने कामदेव को भेजते हैं कि कौन तपस्या कर रहा है। कामदेव देखने के बाद जाकर बताते हैं कि ब्रह्मा के पुत्र नारद तपस्या कर रहे हैं। इंद्र उनकी तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भेजते हैं। कामदेव वहां वसंत ऋतु का निर्माण करते हैं, अप्सराएं नृत्य करती हैं, लेकिन नारद जी की समाधि भंग नहीं होती है। अंतत: कामदेव नारद जी के पैर पकड़कर क्षमा मांगते हैं। नारद जी की आंख खुलती है तो वे बताते हैं कि इंद्र के कहने पर उन्होंने यह सब किया।
नारद जी को महसूस होता है कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया। वे देवताओं में इसका प्रचार करते हैं तो भगवान शंकर कहते हैं कि विष्णु से यह मत कहना। उन्हें लगता है कि भगवान शंकर तो क्रोध को नहीं जीत पाए, उन्होंने सबको जीत लिया। नारद जी विष्णु से सब कह डालते हैं। भगवान विष्णु को महसूस होता है कि उनके भीतर के इस घमंड को खत्म करना होगा। वे श्रीनगर का निर्माण करते हैं, वहां के राजा शीलनिध की पुत्री विश्वमोहनी पर नारद जी मोहित हो जाते हैं और वे उसे पाने की सोचते हैं। वे विश्वमोहनी को रिझाने के लिए भगवान विष्णु से रूप मांगते हैं, लेकिन विष्णु उन्हें बंदर का रूप दे देते हैं और स्वयं सुंदर रूप धारण करके विश्व मोहनी के स्वयंवर में जाते हैं। विश्व मोहनी भगवान के गले में माला डाल देती है। यह देख नारद क्रोधित होते हैं और श्राप देते हैं कि वे नर शरीर धारण करेंगे और जब उन पर संकट आएगा तो वे लता-पत्तों से मदद मांगेंगे, बंदर ही उनके काम आएंगे। जैसे विश्व मोहनी के लिए मैं तड़प रहा हूं, वे अपनी पत्नी के लिए तड़पेंगे। यदि वे शिव के सहस्त्रनाम का पाठ करेंगे तो ही इस पाप से छूटेंगे।
रासलीला का आयोजन 30 को
श्री द्वारिकाधीश मंदिर में रामलीला के मंच पर ही 30 सितंबर को दोपहर 2 बजे से भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का मंचन भी पं. प्रभातकुमार श्याम सुंदर शर्मा के निर्देशन में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त श्री बालकृष्ण लीला संस्था के कलाकार करेंगे। पहले दिन श्रीकृष्ण जन्म के साथ ही श्रीकृष्ण का गोपियों के संग मयूर नृत्य आकर्षण का केन्द्र रहेगा।