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मनोज कुमार : एक देशभक्त अभिनेता का प्रेरणादायक सफर

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  • अखिलेश शुक्ल

हिंदी सिनेमा की चमचमाती दुनिया में कई चेहरे आए और चले गए, लेकिन कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जिनकी छवि समय के साथ और निखरती है। मनोज कुमार ऐसे ही अभिनेता थे जिनके नाम से ही देशभक्ति की भावना जुड़ जाती है। हिंदी सिनेमा के परदे पर जब उन्होंने ‘भारत’ का किरदार निभाया, तो लोगों ने उन्हें उनके असली नाम से कम और ‘भारत कुमार’ के नाम से ज्यादा याद रखा। मनोज कुमार केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक विचार, एक दर्शन, और एक युग की पहचान बन चुके हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी था। उनका जन्म 24 जुलाई 1937 को हुआ। उनका बचपन सामान्य आर्थिक स्थिति में बीता, लेकिन उनके भीतर बड़े सपने पलते थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से पढ़ाई पूरी की। बचपन से ही उनके भीतर अभिनय के प्रति लगाव था, लेकिन वह इसे तब तक मंच पर नहीं लाए जब तक उन्होंने इसे जीवन का लक्ष्य नहीं बना लिया।

‘मनोज’ नाम की रोचक कहानी

यह नाम उन्हें किसी परिवारजन ने नहीं दिया था, बल्कि उन्होंने खुद चुना था। एक दिन जब वह अपने मामा के साथ फिल्म ‘शबनम’ देखने गए, जिसमें दिलीप कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी, तो वह उनके अभिनय से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया – “अगर मैं कभी अभिनेता बना, तो मेरा नाम मनोज ही होगा।” यही वह क्षण था, जब ‘हरिकिशन’ से ‘मनोज कुमार’ बनने की शुरुआत हुई।

सिनेमा में प्रवेश और पारिवारिक समर्थन

मनोज कुमार के फिल्मों में आने की शुरुआत भी एक खास कहानी से जुड़ी है। जब उन्हें पहली बार किसी फिल्म में लीड रोल का ऑफर मिला, तो उन्होंने कहा कि वह अपनी मंगेतर शशि गोस्वामी की अनुमति के बिना काम नहीं करेंगे। जब शशि ने सहमति दी, तभी उन्होंने फिल्म स्वीकार की। यह दर्शाता है कि उनके जीवन में परिवार और मूल्यों का कितना महत्व था।

देशभक्ति की आत्मा वाले अभिनेता

मनोज कुमार ने भारतीय सिनेमा को एक नया आयाम दिया। उन्होंने अभिनय के माध्यम से राष्ट्रभक्ति, सामाजिक जिम्मेदारी, और मानवीय मूल्यों को पर्दे पर जीवंत किया। 1965 में आई फिल्म ‘शहीद’, जिसमें उन्होंने भगत सिंह का किरदार निभाया, उन्हें दर्शकों के दिलों में अमर कर गई। यह फिल्म स्वतंत्रता संग्राम के एक अमर सेनानी की गाथा थी और मनोज कुमार ने उसे पूर्ण निष्ठा के साथ प्रस्तुत किया।

‘उपकार’ और ‘भारत कुमार’ की पहचान

देशभक्ति को समर्पित फिल्मों की बात हो और मनोज कुमार का जिक्र न हो, यह संभव नहीं। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया, तो उन्होंने मनोज कुमार को इस विषय पर फिल्म बनाने को कहा। मनोज कुमार ने ‘उपकार’ बनाई, जो एक किसान और एक सैनिक की दोहरी भूमिका को दर्शाती है। यह फिल्म न सिर्फ सुपरहिट हुई, बल्कि दर्शकों के दिलों में ‘भारत कुमार’ की छवि को स्थायी रूप से बसा गई।

सम्मान और पुरस्कार

मनोज कुमार के योगदान को भारत सरकार और फिल्म उद्योग ने भी खूब सराहा।

  • 1992 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया।
  • 2015 में फिल्म के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें दादा साहब फाल्के अवॉर्ड दिया गया।
    ये सम्मान इस बात का प्रमाण हैं कि उनका सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि प्रेरणा भी था।

लेखन, निर्देशन और अन्य योगदान

बहुत कम लोग जानते हैं कि मनोज कुमार एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने कई फिल्मों की पटकथाएं लिखीं। खास बात यह है कि उन्होंने भूत-प्रेत पर आधारित कहानियाँ भी लिखीं, जो बाद में फिल्मों का हिस्सा बनीं, लेकिन उन्होंने कभी इसके लिए क्रेडिट नहीं लिया। उनका मानना था कि रचनात्मकता का उद्देश्य पहचान पाना नहीं, बल्कि समाज को कुछ देना होता है।

दिलीप कुमार और धर्मेंद्र से रिश्ता

मनोज कुमार दिलीप कुमार को अपना आदर्श मानते थे। अभिनय में गहराई, संवादों में वजन और चरित्र की आत्मा को पकड़ने की उनकी शैली, दिलीप कुमार से प्रेरित थी। धर्मेंद्र उनके सबसे करीबी दोस्तों में से एक रहे। फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से दूर, मनोज कुमार ने अपनी दोस्ती और आदर्शों को हमेशा जीवित रखा।

अमिताभ बच्चन को दिया पहला ब्रेक

संघर्ष के दिनों में अमिताभ बच्चन को मनोज कुमार ने अपनी फिल्म ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ में एक मौका दिया। यही वह दौर था जब अमिताभ को फिल्मों में काम नहीं मिल रहा था। मनोज कुमार का यह कदम एक युवा अभिनेता की जिंदगी को बदलने वाला साबित हुआ।

पारिवारिक विरासत

उनके बेटे कुणाल गोस्वामी ने भी फिल्मों में कदम रखा, लेकिन वह अपने पिता जैसी सफलता हासिल नहीं कर सके। मनोज कुमार ने हमेशा अपने बेटे को प्रोत्साहित किया, लेकिन उन्हें खुद की राह बनाने की स्वतंत्रता दी।

मनोज कुमार की फिल्मों के कुछ अमर गीत

मनोज कुमार की फिल्मों के गीतों में भी वही देशभक्ति और संवेदनशीलता दिखाई देती थी जो उनके किरदारों में थी। उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों का विवरण इस प्रकार है:

फिल्मगीतगीतकारसंगीतकार
उपकार (1967)मेरे देश की धरती सोना उगलेगुलशन बावराकल्याणजी-आनंदजी
पूरब और पश्चिम (1970)भारत का रहने वाला हूँइंदीवरकल्याणजी-आनंदजी
शहीद (1965)ऐ वतन, ऐ वतन, हमको तेरी कसमप्रेम धवनप्रेम धवन
रोटी कपड़ा और मकानअमर है ये प्रेमवर्मा मलिकलक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
दो बदन (1966)रिमझिम के तराने ले के आई बरसातशकील बदायूनीलक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
हिमालय की गोद मेंचांद सी महबूबा हो मेरीशैलेन्द्रकल्याणजी-आनंदजी

इन गीतों ने न केवल फिल्मों को लोकप्रिय बनाया, बल्कि आज भी लोगों की स्मृतियों में जीवित हैं।

निष्कर्ष

मनोज कुमार का जीवन सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं था, वह एक आदर्श, एक प्रेरणा और भारतीय संस्कृति के संवाहक थे। उनकी फिल्मों ने लोगों को देश से प्रेम करना सिखायासच्चाई के रास्ते पर चलना सिखाया और यह दिखाया कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का माध्यम भी हो सकता है।

आज भले ही वह हमारे बीच न हों, लेकिन उनके देशभक्ति गीत, उनके सशक्त किरदार, और उनका सादगी भरा जीवन हमें हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

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अखिलेश शुक्ल,

सेवा निवृत्त प्राचार्य, लेखक, ब्लॉगर

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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