मूंग के रूप में शरीर में पहुंच रहा खतरनाक ज़हर

इटारसी। जब डाक्टर किसी मरीज को हल्का सुपाच्य खाना खाने की सलाह देते हैं तो सबसे पहले हमारे जेहन में मूंग की दाल की खिचड़ी आती है। मूंग को सेहत के लिए अच्छा और सुपाच्य अनाज माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही मूंग अब आपकी सेहत के लिए लाभदायक नहीं बल्कि नुकसानदायक है। जी हां! हमारी इस रिपोर्ट में आपको जानकारी मिलेगी कि आखिर मूंग अब कैसे नुकसानदायक हो गयी है। दरअसल, अब जो मूंग बोयी जा रही है, उसमें केमिकल का इतना प्रयोग हो रहा है कि वह जहरीली हो गयी है।
किसानों को अर्थलाभ, आमजन को रोग
खेती को लाभ का धंधा बनाने में अपना अहम रोल निभाने वाली तीसरी फसल किसानों को तो लाभ दे रही है, लेकिन आमजन के लिए यह नुकसान का सबब बन रही है। ग्रीष्मकालीन मूंग में इतना केमिकल का प्रयोग होता है कि इसे जहरीली मूंग कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। लाभ कमाने की खातिर कई किसान रसायन के सहारे महज 50 दिन में मूंग का उत्पादन पूर्ण कर लिया जाता है। सीजन की इस तीसरी फसल का उत्पादन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। कुछ वर्ष पहले तक यह सोयाबीन या धान के समय ही खरीफ मौसम में लगायी जाती थी और इसका समय भी 90 से 100 दिन का होता था। लेकिन कुछ आधुनिक सोच वाले कृषि वैज्ञानिकों ने इसका समय कम करने और उत्पादन बढ़ाने का तरीका ढूंढ निकाला और तरीका साठ दिन में फसल को कंपलीट कर लेता है। किसानों को यह तरीका पसंद आया और रबी और खरीफ के गेहूं, चना, धान, सोयाबीन की फसल के मध्य यह साठ दिन के फासले में मूंग की फसल लगायी जाने लगी।
जल्दी पकाने करते हैं रसायन का प्रयोग
तीसरी फसल के शुरुआती दिनों में किसानों को लाभ पहुंचाने सरकार ने भी इसे प्रोत्साहित किया और तवा बांध से पानी दिया। लेकिन कम बारिश की वजह से तवा में ही कम पानी संग्रहित हो सका तो सरकार ने पानी देना बंद कर दिया। अब किसानों को इसके फायदे समझ आये तो उन्होंने अपने खेतों में नलकूप लगाना प्रारंभ कर दिया है। यानी अब हर उस खेत में नलकूप है जहां मूंग की फसल बोयी जा रही है। किसान मूंग से निरंतर उत्पादन कर रहे हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में प्री मानसून की बारिश ने किसानों को डरा दिया और वे मूंग की फसल को जल्दी पकाने के लिए रसायन का प्रयोग करने लगे हैं। यह इतनी तेज और खतरनाक है कि मंूग के हरे पौधे को सुखा देती है। इस मामले में क्षेत्र के उन्नत किसान एवं रोटेरियन रामनाथ चौरे ने बताया कि उन्होंने वर्तमान वर्ष में इसकी उत्पादन क्षमता को लेकर बताया कि अगर 20 जून तक समय मिल गया तो उत्पादन 12 से 15 क्विंटल प्रति एकड़ होगा।
बिना दवा के हो सकता है उत्पादन
उन्होंने ग्रीष्मकालीन मूंग के विषय में कहा कि यह एक ऐसी फसल है जिसकी बोवनी से लेकर कटाई तक रसायनिक दवाओं के भरोसे ही उत्पादन होता है। शार्टकट के चक्कर में मूंग उत्पादक किसान ऐसी तेज पावर वाली दवाईयों का उपयोग कर रहे हैं जो फसल में लगने वाले खपतवार व कीड़ों को समाप्त करने के साथ ही फसल के दानों में भी उनका प्रवेश कर जाता है। यह स्वास्थ्यवर्धक मूंग स्लो पॉयजन का रूप ले लेती है। इस बात को वरिष्ठ किसान रामनाथ चौरे ने स्वयं स्वीकार करते हुए कहा कि किसान चाहें तो वगैर रसायनिक दवाओं के इसका उत्पादन कर सकते हैं। लेकिन, वह गेहूं के खेतों में नहीं चने के खेतों में होगा।

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