- पंकज पटेरिया
श्यामल सुहानी सूरत, श्वेत काले केश, शिशु सा भोलापन, और जिनकी आंखों में सदा झिलमिलाती है। श्री सीताराम की मोहक मनोहर छवि। पक्की उम्र करीब 80 की। सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रभु दयाल यादव रामायणी एक ऐसे ही विनयशील राम भक्तों में डूबे व्यक्ति हैं। जिनके आराध्य भगवान श्री राम हं, और उसकी भक्ति अनुरक्ति ऐसी है कि प्रभु कृपा ने उन्हें संपूर्ण राम मय बना दिया। अब तो यह आलम है कि आती-जाती सांस भी राम राम करती है।
सिवनी मालवा के बहुत छोटे से बुझे-बुझे कस्बे में जन्मे श्री प्रभु दयाल यादव रामायणी के ऊपर राम जी की अद्भुत कृपा है। एक शिक्षक के रूप में आपने अपना कैरियर शुरू किया था। राम जी के प्रति ऐसी लगन लगी कि नित्य मानस पाठ करना आपकी दिनचर्या का हिस्सा हो गया। 1 दिन ऐसा आया की संपूर्ण रामायण यादव जी को कंठस्थ हो गई। उनके विद्यार्थी रहे सुकवि सुभाष भारती बताते हैं कि पीडी सर शुरू से ही राम भक्त हैं। विज्ञान से लेकर हिंदी साहित्य और फिर प्रज्ञान तक उनकी अभिराम यात्रा जारी है। इतना सब होने पर भी वे बेहद विनम्र सहज सरल हैं। यदि चर्चा हुई तो राम से शुरू होती है और राम पर ही समाप्ति। यादव जी कहते हैं राम ब्रह्मा संपूर्ण चराचर जगत मे व्यापत है।
राम ने ही हमें चुना है वह अपने आप को राम का चाकर मानते हैं, और उसके लिए साभार भाव से राम जी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि राम जी ने ही उन्हें अपने चारू चरण की चाकरी के लिए चुना है जबकि वे घोर योग्य हैं अपात्र हैं। तीन महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ के रचयिता यादव की नौकरी का भी बड़ा रोचक कैसा है। प्रख्यात शिक्षाविद प्रमुख एडवोकेट पंडित रामलाल शर्मा नर्मदा शिक्षण समिति के अध्यक्ष थे।
उनके शैक्षणिक संस्थान में शिक्षकों की भर्ती निकली अन्य लोगों की तरह रामायणी जी ने भी अप्लाई किया आवेदन में यादव जी ने लिखा था अन्य रुचि में मानस पाठ कंठस्थ। धर्म परायण शर्मा जी ने उसी बात को नोटिस किया फिर सीधे इनसे प्रश्न किया कि आप रामायण के अमुक कांड के अमुक प्रसंग को मुझे सुनाइए। फिर क्या था सभी के सामने प्रभु दयाल जी ने मानस के उस कांड का सस्वर अर्थ सहित पाठ किया।
सुनकर शर्मा जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें तत्काल अपने संस्थान में नौकरी दे दी थी। फिर तो राम काज का सिलसिला चल पड़ा। क्षेत्र में आसपास रामायणी जी राम कथा प्रवचन करने लगे और विद्वान रामायणी राजेश रामायणी, राजेश्वरानंद जी, अनन्य मानस मर्मज्ञ विद्वानों ने आपको रामायणी उपाधि दी। इस सबसे अप्रभावित बहुत सरलता से प्रभु दयाल जी नौकरी करते रहे। जहां तबादला हो गया वहां चले गए। कभी किसी ने कहा तो सरलता से उत्तर दे दिया।
श्री राम जी की मर्जी उनकी चाकरी में है। वही खिला रहे, वही पिला रहे, वही सुला रहे हैं, वही संभाल रहे। अत्यंत अध्ययनशील श्री रामायण जी ने बताया कि भगवान राम वनवास गमन के समय मां नर्मदा के तट उमर्दा के पास भी आए थे। उन्होंने उनके पास अयोध्या से उपलब्ध एक पुस्तक में इसका उल्लेख भी है। आज भी वयोवृद्ध श्री प्रभु दयाल जी अपने घर परिवार में राम भक्ति में लीन है। और कहते हैं, राम काज कीन्हें बिना मोहे कहां विश्राम। अंत में, अपने एक गीत राम कहानी की इन (पंक्तियों से राम सिंधु की राम बिंदु है, राम-राम की राम कहानी नर्मदापुरम न्यूज पोर्टल के सभी सुधी पाठकों को रामनवमी की हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ राम राम।
नर्मदे हर

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार कवि