इटारसी। सरकार चाहे कितनी बदल जाएं, चाहे अस्पताल का नाम ही क्यों न बदल दिया जाए। यदि यहां कुछ नहीं बदलना है तो वह है, सरकारी अस्पताल की व्यवस्थाएं और यहां के डाक्टर्स सहित नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही। इसी लापरवाही के कारण रविवार को एक युवा ने अपनी जीवनलीला खत्म कर ली।
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद दावे किये जा रहे थे कि इस अस्पताल की व्यवस्थाएं भी बदल दी जाएंगी। लेकिन, कुछ नहीं बदला। केवल एक चर्म रोग विशेषज्ञ आए लेकिन स्टाफ के मन में मानवीय मूल्य विकसित नहीं हुए तो फिर समझो कुछ नहीं बदला। न कुछ बदलना था, ना ही कुछ बदला। इसी घोर लापरवाही का नतीजा यह रहा कि दो दिन पूर्व यहां उपचार के लिए भर्ती हुए एक मरीज ने अस्पताल से भागकर होशंगाबाद डबल फाटक पर आत्महत्या कर ली। सुरेन्द्र पिता बद्रीप्रसाद चौधरी नामक 24 वर्षीय युवक को सरकारी अस्पताल में 16 अगस्त की रात करीब 11 बजे भर्ती कराया था। उसके पिता बद्रीप्रसाद ने अपने दामाद रामदास और भाई राजा ने उसे लेकर आये थे। हालांकि वे तत्कालिक उपचार के बाद उसे घर ले जाना चाहते थे लेकिन, स्वयं युवक ने भर्ती होने की इच्छा जाहिर की थी। ड्यूटी डाक्टर अर्पित त्रिवेदी ने उसे भर्ती कर उपचार प्रारंभ किया था। डॉ. त्रिवेदी ने बताया कि मरीज सामान्य था और उसे सामान्य उपचार ही दिया जा रहा था। हालांकि उसके परिजनों का कहना था कि युवक मानसिक रोगी है। युवक का कहना था कि उसे किसी ने कोई ऐसी दवा खिला दी है जिससे वह परेशान हो गया है।
रविवार को सुबह करीब 6 बजे मरीज सुरेन्द्र अस्पताल से बिना बताये लापता हो गया और होशंगाबाद स्थित डबल फाटक पर जाकर एक ट्रेन की चपेट में आ गया। युवके के परिजन जब अस्पताल आए तो सुरेन्द्र नहीं मिला। उनको खबर मिली कि युवक होशंगाबाद में ट्रेन की चपेट में आ गया है तो वे वहां पहुंचे और उसकी शिनाख्त की। मृतक के भाई धर्मेंद्र चौधरी ने बताया कि आज सुबह उसे देखने अस्पताल पहुंचे थे लेकिन वह सुबह 6 बजे अस्पताल से लापता हो गया था। यहां किसी के ट्रेन के सामने आने की सूचना के बाद जब भी पहुंचे तो मृतक की शिनाख्त अपने भाई के रूप में की है। बताया जाता है कि युवक सुबह 6 बजे इटारसी अस्पताल से भाग कर आया था और डबल फाटक के पास खंबा नंबर 759 के पास ट्रेन से आत्महत्या कर ली।
आखिर कैसी है लापरवाही
पथरोटा का 24 वर्षीय युवक सुरेन्द्र चौधरी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी शासकीय अस्पताल में 16 अगस्त की रात 11 बजे भर्ती हुआ था। अस्पताल के हर वार्ड के मुख्य दरवाजे पर ही नर्सिंग ड्यूटी रूम होता है और इसमें बनी खिड़की से पूरा वार्ड दिखता है, मरीज वार्ड से बाहर जाता है तो दरवाजे के सामने से ही जाता है। ड्यूटी नर्स ने मरीजों को जाने से क्यों नहीं रोका ?
अस्पताल प्रबंधन की दलील है कि हर रोज कई मरीज अस्पताल से बाहर चाय पीने के लिए सुबह जाते हैं फिर वापस आ जाते हैं। सवाल यह है कि जब मरीज काफी देर तक नहीं आया तो नर्स ने अस्पताल के प्रबंधन को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी। यदि जानकारी दी तो अस्पताल प्रबंधन ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी? लापरवाही इतनी होती है कि मरीज रात को घर चले जाते हैं और सुबह फिर आ जाते हैं।
इन हालातों में इस मरीज ने जो कदम उठाया है और एक परिवार का जवान सदस्य इस दुनिया को छोड़कर चला गया तो यह किसकी जिम्मेदारी बनती है। क्या यह अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही नहीं मानी जाएगी? खुद अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एके शिवानी मानते हैं कि यह स्टाफ की लापरवाही है, लेकिन वे स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई पर कोई बयान देने से बचते हैं?