- पचमढ़ी में आयोजित तीन दिवसीय संपदा समारोह का समापन
पचमढ़ी। पारम्परिक कलाओं का समारोह सम्पदा का आयोजन 21 से 23 मार्च 2025 को ओल्ड होटल ग्राउण्ड- पचमढ़ी (नर्मदापुरम्) में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में 23 मार्च 2025 को मध्यप्रदेश के गोंड जनजातीय का गुदुमबाजा नृत्य, तेलंगाना की गोण्डकोया का कोमूकाया और उड़ीसा की कंध जनजातियों ढप नृत्य के साथ श्री रामचंद्र सिंह, भोपाल के निर्देशन में वीरांगना रानी दुर्गावती नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी गई। साथ ही समरोह में भक्तिमति शबरी, निषादराज गुह्य एवं वीरांगना रानी दुर्गावती के जीवन ओर अवदान केंद्रित प्रदर्शनी का संयोजन किया गया। समारोह में निदेशक, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे एवं अन्य अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित रहे।
प्रस्तुति के क्रम में काथले श्रीधर एवं साथी, तेलंगाना द्वारा गोण्डकोया जनजाति का कोम्मूकोया नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कोम्मू का अर्थ है ‘सींग’ और ‘कोया’ जनजाति को संदर्भित करता है। कोया समुदाय में भूमि पंडगा का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें इस नृत्य के माध्यम से बारिश और अच्छी फसल के लिये ईश्वर की आराधना की जाती है। मोजीलाल डांडोलिया एवं साथी, छिंदवाड़ा द्वारा भारिया जनजातीय नृत्य भड़म की प्रस्तुति दी गई। भारिया जनजाति के परम्परागत नृत्यों में भड़म, सैताम, सैला और अहिराई प्रमुख हैं। भड़म नृत्य के कई नाम प्रचलित है। इसे गुन्नु साही भडनी, भडनई, भरनोट या भंगम नृत्य भी कहते हैं। विवाह के अवसर पर किया जाने वाला यह नृत्य भारियाओं का सर्वाधिक प्रिय नृत्य है।
वासुदेव एवं साथी, उड़ीसा द्वारा ढप नृत्य की प्रस्तुति दी गई। उड़ीसा के पारंपरिक लोक और आदिवासी नृत्यों के साथ ढप नृत्य की परम्परा बहुत पुरानी है। उड़ीसा के पश्चिमी भाग की यह सांस्कृतिक विरासत एक बहुत ही अनोखी कला है। इस नृत्य के माध्यम अपने देवताओं की पूजा करते हैं। गांव का मुखिया अपने कंधे पर कुल्हाड़ी रखकर नृत्य करता है, जो इस बात का प्रतीक है कि पुरुष अपने गांव की महिलाओं की अखंडता की रक्षा करेंगे।
भानसिंह धुर्वे एवं साथी, डिंडोरी द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य गुदुमबाजा की प्रस्तुति दी गई गुदुमबाजा नृत्य गोंड जनजाति की उपजाति ढुलिया का पारंपरिक नृत्य है। समुदाय में गुदुम वाद्य वादन की सुदीर्घ परम्परा है। विशेषकर विवाह एवं अन्य अनुष्ठानिक अवसरों पर इस समुदाय के कलाकारों को मांगलिक वादन के लिए अनिवार्य रूप से आमंत्रित किया जाता है। इस नृत्य में गुदुम, डफ, मंजीरा, टिमकी आदि वाद्यों के साथ शहनाई के माध्यम से गोंड कर्मा और सैला गीतों की धुनों पर वादन एवं रंगीन वेश-भूषा और कमर में गुदुम बांधकर लय और ताल के साथ, विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया जाता है।
रामचंद्र सिंह, भोपाल के निर्देशन में वीरांगना रानी दुर्गावती नृत्य की प्रस्तुति दी गई। प्रस्तुति में बताया कि कालिंजर के राजा महाराज कीर्ति सिंह चंदेल की पुत्री दुर्गावती का विवाह गढ़ा के गोंड राजवंश के महाराज संग्राम सिंह के पुत्र दलपत शाह से हुआ। दलपत शाह और दुर्गावती दोनों ही अस्त्र-शस्त्र शिक्षा में पारंगत थे, साथ ही दोनों धार्मिक और जनहित के कार्यों में भी रुचि लेते थे। रानी को एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। पुत्र अभी छोटा ही था कि दलपत शाह का निधन हो गया। गद्दी पर वीर नारायण को बिठाया गया, लेकिन राजकाज रानी देखती रहीं।
मुगल सम्राट अकबर दुर्गावती के सौंदर्य और बहादुरी के चर्चे सुन चुका था और गढ़ा राज्य को अपने अधीन करना चाहता था। इस हेतु उसने रानी को एक सोने का पिंजरा भिजवाया। रानी पिंजरा भेजने का आशय समझ गईं और उन्होंने जवाब में उतने ही वजन का सोने का पिंजरा भिजवाया, जिसे जुलाहे लोग काम में लाते हैं। अकबर पिंजरा देखकर आगबबूला हो गया और उसने अपने सूबेदार आसिफ खां को हमला करने के लिए हुक्म जारी कर दिया। पहले हमले में आसिफ खां ने शिकस्त खाई, लेकिन लगातार दूसरे हमले में रानी बहादुरी के साथ लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हो गईं।
चौरागढ़ के किले में उनके किशोर वय के वीर पुत्र वीर नारायण भी लड़ते हुए शहीद हुए। किले के अंदर की सैकड़ों महिलाओं ने जौहर कर लिया। मातृभूमि की रक्षा करने के लिए महारानी दुर्गावती का बलिदान हमारे सामने एक ऐसा आदर्श उदाहरण है, जो हजारों वर्ष तक समस्त भारतवासियों को देश के लिए मर-मिटने की प्रेरणा देता रहेगा।