हेमू कालानी का शहीदी दिवस 21 को मनेगा

हेमू कालानी का शहीदी दिवस 21 को मनेगा

इटारसी। पूज्य पंचायत सिंधी समाज और भारतीय सिंधु सभा मुख्य शाखा, युवा शाखा और महिला शाखा के संयुक्त तत्वावधान में शहीद हेमू कालानी का शहीदी दिवस 21 जनवरी, मंगलवार को मनाया जाएगा।
भारतीय सिंधु सभा की ओर से दी गई जानकारी में बताया गया है कि 21 जनवरी को सिंधी कालोनी में नगर पालिका कार्यालय के पास शाम 5 बजे शहीद हेमू कालानी के शहीदी दिवस के अवसर पर गरीबों को वस्त्र प्रदान किये जाएंगे। इस अवसर पर समाज के सभी लोगों का सहयोग इस कार्यक्रम में रहेगा।
भारतीय सिंधु सभा के गोपाल सिद्धवानी ने बताया कि हेमू कालानी बचपन में हाथों में तिरंगा लिए अपने गांव की गलियों में देश प्रेम के गीत गुनगुनाया करते थे। जब थोड़ा होश संभाला तो फांसी के फंदे को अपने गले में डालकर क्रांतिकारियों को याद किया करते थे। जब कोई उनसे पूछता कि ऐसा क्यूं करते हो, तो जवाब था। मैं भी भगत सिंह की तरह देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक जाना चाहता हूं। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते हेमू अंग्रेजों के निशाने पर आ गए थे। इनको ब्रिटिश सरकार ने महज 19 साल की आयु में ही फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। सिंध के भगत सिंह कहे जाने वाले हेमू कलानी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सक्खर में हुआ। इनके पिता का नाम पेसूमल कलानी था। इनकी माता जेठीबाई एक गृहिणी थीं, पिता एक सम्मानित व्यक्ति और इज्जतदार खानदान से थे, जिनके ईटों के भट्टे थे। हेमू का पूरा परिवार देशभक्ति से ओत-प्रोत था। उन्हें बचपन में भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों के किस्से कहानियां सुनाई जाती थी, इससे वे बहुत प्रभावित हुए। उनमें बचपन से ही देश पर कुर्बान होने की भावना उत्पन्न हो चुकी थी।
हेमू को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों, वाहनों को जलाने व क्रांतिकारी जुलूसों जैसी क्रांतिकारी के तौर पर पहचाना जाने लगा था। 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तो हेमू अपने साथियों के साथ बड़े जोश व खरोश के साथ उसमें कूद पड़े। अक्टूबर 1942 में जब हेमू को पता चला की अंग्रेजों का एक दस्ता हथियारों से भरी ट्रेन को उनके नगर से लेकर गुजरने वाले हैं, उन्होंने अपने साथियों के साथ पटरी की फिश प्लेट खोलकर रेल को पटरी से उतारने का एक प्लान बनाया। वो अपने साथियों के साथ इस काम को अंजाम दे ही रहे थे कि अंग्रेजों ने उन्हें देख लिया। उनको अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेजों ने हेमू को जेल के अंदर बहुत प्रताडि़त किया। वे उनसे उनके साथियों के नाम उगलवाना चाहते थे। मगर, कई सारी यातनाएं झेलने के बाद भी हेमू ने मुंह नहीं खोला। अंत में उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। 19 साल की उम्र में 23 जनवरी 1943 को फांसी के फंदे पर लटका दिया।

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