असफलता से घबराने वाले लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते

Post by: Manju Thakur

इटारसी। 24 वें वर्ष में चल रहे श्री विष्णु महायज्ञ के पांचवे दिन जीआरपी के शिव मंदिर परिसर में बने विशाल यज्ञ मंडप की व्यास गादी से संबोधित करते हुए आचार्य मनमोहन शास्त्री ने कहा कि त्रेता और द्वापर दोनों ही युगों में सफलता उसी व्यक्ति को मिली जिसने संघर्ष से मुंह नहीं मोड़ा।
आचार्य शास्त्री ने कहा कि कहा कि विश्राम परिस्थियां में जीना ही संघर्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला था। लेकिन लक्ष्मण और सीता को वनवास नहीं मिला था। परंतु अपने बड़े भाई को कोई पीड़ा न हो और 14 वर्ष तक वह वन में स्वयं को अकेला न समझे इसलिए उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण वन में उनके साथ रहे। आचार्य मनमोहन शास्त्री ने कहा कि भरत राम के भाई थे कैकई के दो वचनों को अगर हम समझें तो भरत को राजगादी और राम को वनवास था। लेकिन भरत ने चित्रकूट से प्रभु राम की चरणपादुका लाकर उसे ही राज गादी पर बिठाया। महाराज होते हुए ही भरत ने तब तक राजगादी स्वीकार नहीं की। जब तक प्रभु श्रीराम रावण का वध करके अयोध्या वापस नहीं आए। त्रेता का यह प्रसंग हमें यह शिक्षा देता है कि यदि परिवार में किसी पर संकट है तो भी हमें उसमें सहभाग बनना चाहिए। मंदिर के पुजारी पं. रामस्वरूप मिश्रा ने बताया कि 14 मार्च को श्री विष्णु महायज्ञ की पुर्णाहुति होगी एवं उसी दिन नगरभोज (भंडारे) का आयोजन सायंकाल 6 बजे से किया है। यज्ञाचार्य पं. अशोक भार्गव एवं अन्य ब्राम्हणों ने यज्ञ में आहुतियां भी छोड़ी। मंगलवार को यज्ञ की परिक्रमा करने वालों की भारी भीड़ थी।

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