उत्पादन बढ़ रहा है फिर भी किसान कर्ज में

किसानों के इस हालात के लिए सरकारी नीतियां है जिम्मेदार
खेती और खेतिहर समाज के संकट पर जारी श्वेत पत्र पर संगोष्ठी
इटारसी। देश में लगातार कृषि उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन अनाज का उत्पादक किसान आर्थिक विपन्नता की ओर जा रहा है। कृषि और किसानों के लिए सरकार की नीतियां ही किसानों की इस दशा के लिए जिम्मेदार हैं। दूसरी ओर पूंजीपतियों की पूंजी लगातार बढ़ती जा रही है। किसानों को इस दशा से कैसे उबारा जाए, नीतियां कैसी हों ताकि अन्नदाता की हालत में सुधार हो और खेती पर जारी संकट का समाधान हो सके। इन्हीं सारे विषयों पर मंथन करने आज ईश्वर रेस्टॉरेंट में विषय विशेषज्ञ और किसान तथा उनके प्रतिनिधि जुटे थे।
किसानों की दशा पर विचार-विमर्श करने संगोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसमें विद्वान वक्ता रघुराज सिंह और राकेश दीवान के अलावा पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा, गोपाल गांगुड़े, लीलाधर सिंह राजपूत, प्रो. कश्मीर सिंह उप्पल सहित अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया।
गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि किसानों की देश में बड़ी संख्या है, बावजूद इसके किसान के लिए नीतियों का निर्धारण मध्यम वर्ग और उद्योगपतियों को ध्यान में रखकर होता है। उन्नत तकनीकि आने के साथ ही कृषि उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन किसान कर्ज में डूब रहा है। सरकार जो संवेदनशीलता उद्योगपतियों के लिए दिखाती है, वह किसानों के प्रति नहीं दिखती है।
04संगोष्ठी में जनसंचार विशेषज्ञ रघुराज सिंह ने कहा कि मप्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य सबसे कम आंका था। जब मध्यप्रदेश की सरकार से सुझाव मांगा गया यहां से 1530 का सुझाव दिया जबकि गुजरात से 2150, बिहार सेे 2193, पंजाब से 2140 का सुझाव मिला। उन्होंने सरकार का तर्क बताते हुए आश्चर्य जताया कि सरकार और ब्यूराक्रेसी न्यूनतम मूल्य बढ़ाने के लेकर बेतुके तर्क देती है, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा तो आमजन को महंगा अनाज मिलेगा। उन्होंने कहा कि शहरों में किसान घूम-घूमकर समर्थन मूल्य से कम में अनाज बेचते हैं और हम उनसे मोलभाव कर पैसे कम कराते हैं जबकि बड़े-बड़े मॉल में जाते हैं तो वहां मूल्य पूछ भी नहीं पाते।
वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता राकेश दीवान ने किसानों की पीड़ा को उजागर करते हुए अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, कृषि उत्पादन में लगातार वृद्धि के बावजूद किसा कर्ज में है, आत्महत्या कर रहा ह,ै देश में कुपोषण बढ़ रहा है। हालात यह है कि सरकार द्वारा यह निर्णय लेने की स्थिति बन गई थी कि अनाज समुद्र में सड़ा दिया जाए। पिछले साल बाजार में दाल 200 रुपए तक बिक रही थी लेकिन किसानों को इसका 47 रुपए किलो दाम मिला। किसानों की उपज मिट्टी के मोल नहीं बिके इसलिए समर्थन मूल्य का विचार आया बाद में सरकारी गोदाम भरने के लिए इसका निर्धारण होने लगा। एमएसपी का निर्धारण किसानों के परिवार को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा ने कहा कि किसानों के इस हालात की जिम्मेदार सरकार की नीतियां हंै। दरअसल किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है यह एक रिसर्च का विषय है। किसानों से कर्ज वसूली का तरीका बेहद गलत है। चाहे वह बैंक हो या निजी ब्याजखोर किसानों को डंडा दिखाकर वसूली करते हैं। किसानों की नियम निर्धारण के लिए स्थायी कमिशन बनना चाहिए। जो लगातार इस पर अपनी सिफारिश और सुधार करे। इसके अलावा किसानों को हर चीज के लिए सरकार पर आश्रित नहीं रहना चाहिए। किसानों को जाग्रत होकर लडऩा होगा तब किसानों के हालात में सुधार आएगा।

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