ऑटिज्म बीमारी नहीं व्यवहार की समस्या है : कलेक्टर

Post by: Manju Thakur

ऑटिज्म के प्रति लोगो को जागरूक करना आवश्यक : कलेक्टर
होशंगाबाद। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म दिवस घोषित किया गया है। इस अवसर पर होशंगाबाद में जिला पंचायत सभागार में 1 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन सामाजिक न्याय विभाग द्वारा किया गया। कार्यशाला में ऑटिज्म के कारणों, ऑटिज्म प्रभावित व्यक्तियो के पंजीयन एवं पुर्नवास तथा निरामय बीमा योजना पर चर्चा की गई। कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कलेक्टर श्री अविनाश लवानिया ने कहा कि तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी लोगो को आटिज्म की जानकारी नही है। इसके प्रति लोगों को जागरूक करना आवश्यक है। ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है, यह मुख्य रूप से व्यवहार की समस्या है। विभिन्न कारणों से कुछ बच्चें असमान्य व्यवहार करते है। उनकी अपनी दुनिया होती है। वे न तो मंद बुद्धि होते है, न मानसिक रूप से बीमार होते है। लेकिन ऑटिज्म से पीडित बच्चे समान्य व्यवहार और आदतो के विपरीत व्यवहार करते है। यदि उन्हें उचित थेरपी दी जाए तो बहुत हद तक उन्हें समान्य बनाया जा सकता है।
कलेक्टर ने कहा कि जिला पुर्नवास केन्द्र में ऑटिज्म से पीडित बच्चो के लिए उपचार की उचित सुविधा नि:शुल्क दी जा रही है। इसका व्यापक प्रचार प्रसार करें। उप संचालक सामाजिक न्याय ऑटिज्म पीडित बच्चो का संवेक्षण कराके उनका पंजीयन कराएं। उन्हें उपचार तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराएं। ऑटिज्म से बच्चे को उबारने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उनके माता पिता की होती है। लगातार प्रयास करने पर इसमें सफलता मिलती है।
कार्यशाला में मनोचिकित्सक डा राजेन्द्र बैरागी ने ऑटिज्म के कारणों तथा उपचार की विस्तार से जानकारी दी। उन्होने बताया कि ऑटिज्म जन्म से ही होता है। यह न तो मानसिक रोग है ना बुद्धि की कमी है। ऑटिज्म पीडित बच्चे की पहचान बहुत आसान है। यदि बच्चा बुलाने पर माता पिता को देखकर किसी तरह की प्रतिक्रिया ना दे। सुनने के बावजूद कोई उत्तर ना दे तथा आंख मिलाकर बात ना करें तो वह ऑटिज्म से पीडित है। इसका प्रकोप जन्म से होता है। ऑटिज्म भाषा और संवाद की समस्या है, इससे पीडित व्यक्ति अपने आप में खोया रहता है। उसका व्यवहार असमान्य होता है। जन्म के 9 माह बाद भी यदि बच्चा मुस्कुराता नहीं है या प्रतिक्रिया नही देता है तो वह ऑटिज्म से पीडित है।
उन्होने बताया कि ऑटिज्म पीडित व्यक्ति का दुनिया के प्रति दृष्टिकोण अलग होता है। जिसे हम समान्य व्यवहार मानते है, उसे वे स्वीकार नही करते है। उन्हें अपनी मर्जी का कार्य तथा व्यवहार करने पर आंनद आता है। यदि काउंस्लिग करके हम उनके व्यवहार में परिवर्तन कर दे तो वे पूरी तरह से ठीक हो सकते है। इसकी प्रक्रिया लंबी होती है। इसके लिए माता पिता को निदान केन्द्र से उचित प्रशिक्षण लेना आवश्यक होता है। लगातार प्रयास करने पर बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते है। आइस्टीन तथा एडिशन जैसे वैज्ञानिक भी बचपन में ऑटिज्म का शिकार थे, लेकिन उन्होने इस पर विजय प्राप्त करके बडे बडे वैज्ञानिक कार्य किए। उन्होने कहा कि ऑटिज्म को मानसिक रूप से अलग मानेंगे तभी इसका उपचार सम्भव है। बच्चे के असमान्य व्यवहार को ठीक करने के लिए माता पिता झाड फूक तथा अन्य टोने टोटके का सहारा लेते है, यदि बच्चे में ऑटिज्म के लक्षण है तो उसे तत्काल मनोचिकित्सक को दिखाएं। उनकी सलाह के अनुसार उपचार कराएं।
कार्यशाला में उप संचालक पंचायत एवं सामाजिक न्याय श्रीमती प्रमिला वाईकर ने कार्यशाला के उद्देश्यो की जानकारी दी। उन्होने कहा कि जिला पुर्नवास केन्द्र में आटिज्म के उपचार की पूरी व्यवस्था है। डां राजेन्द्र बैरागी प्रत्येक शुक्रवार को जांच एवं उपचार करते है। केन्द्र में प्रतिदिन भी थेरेपी की भी सुविधा है। होशंगाबाद में 2011 में किए गए सर्वेक्षण में 3500 आटिज्म पीडित पाए गए थे। इनका पंजीयन करके 2075 को नि:शक्त पेंशन का लाभ दिया जा रहा है। कार्यशाला में डां एनीबीसेंट ऑटिज्म स्कूल के संचालक डां आरती दत्ता ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में ऑटिज्म पीडित बच्चो के अभिभावक, शोर्यादल के सदस्य, स्वास्थ्य विभाग एवं सामाजिक विभाग के कर्मचारी तथा जिला पुर्नवास केन्द्र के चिकित्सक एवं फीजियो थेरेपिस्ट उपस्थित रहें।

error: Content is protected !!