क्विनोआ से बदल सकती है किसानों की तकदीर

दक्षिण अमेरिकी देशों की फसल अब नर्मदांचल में भी बोयी जाने लगी

दक्षिण अमेरिकी देशों की फसल अब नर्मदांचल में भी बोयी जाने लगी
इटारसी। कृषि में नवाचार को आगे बढ़ाते हुए अब नर्मदांचल में भी दक्षिणी अमेरिकी देशों में होने वाली क्विनवा की खेती होने लगी है। हरदा जिले की टिमरनी तहसील के ग्राम करताना में रवि केशव बंसल ने इसे प्रायोगिक तौर पर उगाया है।
उन्होंने बताया कि उन्होंने पहले मिट्टी परीक्षण कराया और पाया कि यह मिट्टी और वातावरण क्विनोआ की खेती के लिए अनुकूल है तो उन्होंने इसकी बुवाई की। उन्होंने बताया कि यह खेती नवंबर से जनवरी के बीच की जाती है। इस फसल को जड़ पानी की जरूरत नहीं होती, इसलिए यह सभी किसान आसानी से बो सकते हैं। इसके बीज को 1 से 3 सेमी की गहराई में बोया जाता है। बुवाई के समय बीज की दूरी 45 से 60 सेमी रखी जाती है। फसल सौ से एक सौ बीस दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमें एक एकड़ में 2 से 3 किलो बीज बोया जाता है जिसका उत्पाद 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होता है और इसके भावन करीब 50000 रुपए प्रति क्विंटल होते हैं।
क्या है क्विनोआ..
यह बथुआ प्रजाति का सदस्य है, जिसे रबी में उगाया जाता है। इसका वानस्पितक नाम चिनोपोडियम क्विनवा है। इसके बीज को सब्जी, सूप, दलिया और रोटी के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। पोषक तत्वों की बहुलता की वजह से इसे सुपर फूड और मदर ग्रेन कहा गया है। इसे क्षारीय और बंजर भूमि में भी उगाया जा सकता है। क्विनवा का पेड़ सूखा और पाला सहन करने के साथ कीट रोग सहनशील भी है। इसकी खेती करने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण और तकनीक की आवश्यकता नहीं है, सामान्य खेती की तरह इसकी खेती की जा सकती है। किसानों को परंपरागत फसलों के मुकाबले 20 फीसदी अधिक आय इसकी खेती से हो सकती है।
अन्तरराष्ट्रीय बाजार में क्विनवा 500 से 1000 रुपए किलो तक बिकता है। 100 ग्राम क्विनवा में 14 ग्राम प्रोटीन, 7 ग्राम डायटरी फाइबर, 197 मिलीग्राम मैग्नेशियम, 563 मिलीग्राम पोटेशियम और 0.5 मिलीग्राम विटामिन बी-6 पाया जाता है।
बीमारियों के लिए रामबाण
हार्वड विश्वविद्यालय के एक शोध में पाया गया है कि क्विनवा के रोज सेवन से डायबिटी, हृदय रोग, कैंसर, श्वसन रोग सहित कई अन्य गंभीर बीमारियों में लाभ मिलता है। क्विनवा की महत्ता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन ने वर्ष 2013 को क्विनवा वर्ष घोषित किया था। नासा इसे लाइफ सस्टेनिंग ग्रेन मानते हुए अपने अंतरिक्ष यात्रियों को क्विनवा उपलब्ध कराता है। इस सुपर फूड को गेहूं और चावल की तरह प्रयोग में लिया जा सकता है। इसके पत्तों को बथुआ, पालक की तरह बनाकर खाया जा सकता है। इसमें आयरन प्रचुर मात्रा में होता है।
इनका कहना है…
यह फसल न सिर्फ किसानों की किस्मत बदल सकती है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभदायक मानी जाती है। वर्षों से दक्षिण अमेरिकी देशों के पहाड़ों में यह पारंपरिक खेती के तौर पर बोयी जा रही है जो अब धीरे-धीरे अपने यहां भी चलन में आ रही है, किसानों को इसकी तरफ अपना रुझान करना चाहिए।
रवि बंसल, किसान ग्राम करताना हरदा

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