इटारसी। गर्मी का सीजन प्रारंभ होते ही खेतों में आगजनी की घटनाएं होने लगी हैं। इस सीजन में पहली बार ग्राम जमानी में खेतों ने आग पकड़ी। हालांकि ग्रामीणों की सजगता और सक्रियता से आग अधिक नहीं फैल सकी और महज पांच एकड़ की फसल जली। करीब पांच से छह सौ की संख्या में पहुंचे ग्रामीणों ने झाडिय़ों और ट्रैक्टर से परंपरागत तरीका अपनाकर आग पर काबू पा लिया। घटना की सूचना मिलते ही नायब तहसीलदार पूनम साहू और राजस्व अमला मौके पर पहुंचा और मौके पर पंचनामा तैयार किया।
शुक्रवार को दोपहर ग्राम जमानी स्थित नहर के किनारे पुराने पंप हाउस के पास स्थित एक खेत में लगी आग में 5 एकड़ गेहूं की फसल जलकर राख हो गई। आगजनी में तीन किसानों को लगभग दो लाख रुपए का नुकसान होने का अनुमान है। खेत में लगी आग का कारण अभी अज्ञात है। खेत में आग लगने की सूचना पर ग्रामीणों ने पहुंचकर आग बुझाने के प्रयास किए। किसानों ने परंपरागत तरीके अपनाकर आग पर काबू पाया। हालांकि इस दौरान फायर ब्रिगेड को भी सूचना दे दी गई थी। जब तक फायर बिग्रेड मौके पर पहुंचती किसानों ने आग पर काबू पा लिया था। जमानी स्थित खेत में लगी आग में किसान छोटे लाल यादव निवासी और श्रीमती शारदा बाई पत्नी बलराम निवासी ग्राम नयागांव एवं रामकृष्ण चिमानिया निवासी ग्राम तीखड़ की लगभग 5 एकड़ में खड़ी फसल जलकर राख हो गई। घटना में किसानों को करीब दो लाख रुपए के नुकसान का अनुमान है। छोटेलाल के बेटे दिनेश ने बताया कि घटना के वक्त वे लोग यहां मौजूद नहीं थे।
दूसरे खेतों के किसानों ने देखा
नहर किनारे स्थित खेत में लगी आग के वक्त खेत मालिक खेत पर नहीं थे। दरअसल, इन खेतों के किसान जमानी के निवासी नहीं हैं। किसान छोटेलाल यादव और श्रीमती शारदा बाई ग्राम नयागांव में रहती हैं जबकि रामकृष्ण चिमानिया ग्राम तीखड़ निवासी हैं जिन्होंने खेत को सिकमी लेकर बोया था। आसपास के खेतों में कुछ किसान काम कर रहे थे जिन्होंने इनके खेतों में आग लगते देखा तो गांव में खबर की और स्वयं जलते खेतों की ओर दौड़े। किसानों ने झाडिय़ों से आग बुझाना प्रारंभ किया। इस बीच गांव से कुछ किसान ट्रैक्टर लेकर खेतों में पहुंच गए और आग की दिशा तरफ आगे से ट्रैक्टर चलाकर फसल को आड़ी कर दी जिससे आगे अधिक नहीं फैल सकी। इस बीच दमकल को भी खबर कर दी गई थी, लेकिन जब तक शहर से गांव तक दमकल पहुंचती, आग पर काबू पा लिया गया था।
इसलिए जल्द काबू पाया गया
गेहूं के खेत में लगी आग पर इतना जल्दी काबू पाना मुमकिन नहीं है। दरअसल, गेहूं का सूख खेत किसी बारूद से कम नहीं होता है। यदि गेहूं के खेत में आग लग जाए तो उसे बुझाना काफी मुश्किल होता है। किसानों को इसका अच्छा खासा तरीका मालूम होता है और वे अपने तरीके से आग पर काबू पाने का भरपूर प्रयास भी करते हैं। जमानी के खेतों में लगी आग पर जल्दी काबू पाने का एक बड़ा कारण यह भी था कि किसान सूचना मिलने पर तेजी से खेतों में पहुंच गए थे। इसके अलावा आसपास के गांवों से भी वाहनों से किसान खेत की आग बुझाने पहुंचे। बावजूद इसके फसल में लगी आग तेजी से इसलिए नहीं फैली क्योंकि अभी फसल गीली है और उसे पूरी तरह से सूखकर पकने में एक सप्ताह से पंद्रह दिन का वक्त लग सकता है। सूखी फसल होती तो इतनी जल्दी नहीं बुझती सकती थी।
सरकारों की योजना पर सवाल
खेतों में आगजनी की घटनाएं हर वर्ष पूरे प्रदेश में होती हैं और हर वर्ष लाखों एकड़ में खड़ी फसल जलती और करोड़ों का नुकसान अन्नदाता को उठाना पड़ता है। बीते एक दशक से अधिक समय से कृषि उपज मंडियों को दमकल खरीदने के लिए किसान दबाव बना रहे हैं, लेकिन हर वर्ष मांग के बावजूद मंडी बोर्ड इसका प्रावधान नहीं होने की बात कहकर इसे टाल देता है। बीते करीब दो वर्ष पूर्व तो इटारसी मंडी में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी घोषणा कर गए थे, लेकिन मंडी बोर्ड ने फिर वही राग अलापा कि इसका प्रावधान नहीं है। आश्चर्य इस बात का है कि मंडी बोर्ड को राजस्व कृषि से ही मिलता है। इसी फसल से राजस्व मिलता है जो खेतों से होकर मंडियों में पहुंचती है। लेकिन इसी फसल को बचाने के लिए बोर्ड में कोई प्रावधान नहीं है। यदि प्रावधान नहीं है तो कौन ऐसा प्रावधान लाएगा, सरकार या अधिकारी? फसल बचाने कुछ न कुछ तो प्रावधान करना ही होगा न ?
इस पर भी नहीं दे रहे ध्यान
मंडी बोर्ड ने जब कृषि उपज मंडी समितियों द्वारा दमकल खरीदने के प्रावधान नहीं होने का कहकर इससे हाथ खींचे थे तो एक विचार और जन्म लिया था, पंचायतों के पास बेकार पड़े वाटर टैंकरों को फायर फाइटर बनाने का। करीब दो वर्ष पूर्व हमने अपनी खबरों के माध्यम से यह मसला उठाया भी था कि विधायक निधि से पंचायतों को मिले टैंकरों में महज पांच से दस हजार रुपए खर्च करके उनको फायर फाइटर बनाया जाए ताकि आगजनी की घटनाओं पर शहरों से दमकल आने का इंतजार करने की जगह अपने टैंकर से आग पर काबू पाना प्रारंभ कर दिया जाए। जब तक दमकल आए, ये टैंकर बेहतर साथी साबित हो सकते हैं। इस सुझाव को भी अधिकारियों ने हवा में उड़ा दिया और पंचायतों में सैंकड़ों की संख्या में टैंकर पड़े-पड़े या तो खराब हो रहे हैं या फिर उनका दुरुपयोग हो रहा है।