गांधी मैदान में छह राज्यों की लोक संस्कृति के हुए दर्शन

Post by: Manju Thakur

इटारसी। संगीत नाटक अकादमी नयीदिल्ली द्वारा नगर पालिका परिषद इटारसी के सहयोग से गांधी मैदान में चल रहे देशज महोत्सव का बुधवार को समापन हो जाएगा। मप्र शासन की संस्कृति मंत्री विजयलक्ष्मी साधौ और विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा समापन समारोह में अतिथि रहेंगे।

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समापन के पूर्व दिवस पर गांधी मैदान पर छह राज्यों की लोक संस्कृति के दर्शन हुए। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू नाटी, मणिपुर के थांग-टा एवं ढोल चेलम, राजस्थान के भवई नृत्य, हरियाणा के फॉग, झारखंड के मानभूम छऊ और सूर्य के प्रदेश अरुणाचल प्रदेश के यॉक नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों को बांधे रखा।

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कुल्लू नाटी की प्रस्तुति सूत्रधान कला मंच कुल्लू ने की। यह कुल्लू घाटी का प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो खुशी या मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। लोग रात-रातभर समूहों में नाचते हैं, जिसे नाटी कहा जाता है। मणिपुर के थांग-टा एवं ढोल चेलम नृत्य की प्रस्तुति संगीत कला संगम इम्फाल ने दी। थांग-टा दो शब्दों से मिलकर बना है। थांग का शाब्दिक अर्थ होता है तलवार और टा का अर्थ है भाला। टा, दरअसल मणिुपर की युद्धकला है।

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इस नृत्य में नर्तक तलवार और भाला लेकर काल्पनिक युद्ध करते हैं। ढोल चोलक वसंत, होली आदि के अवसर पर होने वाले भारतीय त्योहार की तरह है जो मणिपुर में याओशांग के नाम से प्रसिद्ध है। मणिपुर में यह उत्सव पांच दिन चलता है।

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राजस्थान का भवई नृत्व सपेरा जनजातीय का पारंपरिक लोक नृत्य है। यह अत्यंत कठिन है और इसे केवल कुशल कलाकार ही करते हैं। इसमें नर्तकी सिर पर कई मटकों को एक साथ संतुलित कर नृत्य करती है। फाग हरियाणा में सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह फागुन माह में किया जाता है। यहां अधिकतर विवाह फागुन में होती है और इस नृत्य में देवर भाभी के पवित्र प्रेम व मीठी नोंकझोंक का दर्शाया जाता है। यह पूरे फागुन माह चलता है। इसमें भाभी देवर को कोड़े से मारती है और देवर भाभी को रंग गुलाल लगाता है।

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मानभऊ छऊ झारखंड की युद्धकला से जुड़ा नृत्य है, जो वास्तव में कुर्मी समुदाय द्वारा किया जाता है। इसमें नर्तक भारी भरकम मुखोटा धारण करते हैं और बेहद चमकीली वेशभूषा में मंच पर अवतरित होते हैं। याक नृत्य अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के मोनपा जनजाति का पारंपरिक नृत्य है। इसमें नर्तक याक की पोशाक और मुखोटा पहनकर नृत्य करते हैं।

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