जीवन में सुख या दुख परिस्थितियों पर निर्भर है : पांडेय
इटारसी। सुख क्या है एवं दु:ख क्या है, इसकी सांसारिक परिभाषा कर पाना बहुत मुश्किल है। इसकी परिभाषा हमें अपने जीवन में करना है तो श्रीमद् भागवतमहापुराण के उन प्रसंगों को आत्मसात करना होगा जिनमें सुख-दुख के कारणों को अध्यात्मिक रूप से परिभाषित एवं प्रतिपादित किया है। उक्त उद्गार कथा वाचक जगदीश पांडेय ने व्यक्त किये।
नया यार्ड भट्टी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा समारोह के द्वितीय दिवस में व्यास गादी से कथा को विस्तार देते हुये श्री पांडेय ने कहा की जीवन में सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलूओं के समान भी हैं। वर्तमान वातावरण को भी इसी प्रसंग के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुये कहा कि शीत ऋतु में प्रात:काल सूर्य सुहाना लगता है। उसकी किरणों से निकली धूप शरीर को सुख प्रदान करती है। किन्तु कुछ समय बाद इसी सूर्य की दोपहर की कड़ी धूप से शरीर को बचाने छाया तलाश करनी पड़ती है। फिर कैसे कहा जाये की सूर्य की धूप सुखद है या दुखद यह तो परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसी प्रकार सुख और दुख भी जीवन की सामायिक परिस्थितियों पर ही निर्भर है। कथा के प्रारंभ मं संयोजक रामेश्वर वर्मा एवं मुख्य यजवान मनोज वर्मा सहित अन्य समिति सदस्यों ने प्रवचनकर्ता श्री पाण्डेय का स्वागत किया।