तीन कंपनियों को 25 करोड़ रिकवरी के आदेश

चिटफंड कंपनी जीएन डेयरी, जीएन गोल्ड, एनएनसीएल पर कलेक्टर का महत्वपूर्ण फैसला फैक्ट फाइल... 10,574 पालिसी धारकों के लिए राहत भरा निर्णय एसपी करेंगे विवेचना, 6 वर्ष तक का हो सकता है कारावास डायरेक्टरों के खिलाफ अभियोजन (प्रासीक्यूषन) भी चलेगा । प्रत्येक डायरेक्टर को तीन-तीन माह की सजा और 1000/-रुपये जुर्माना

चिटफंड कंपनी जीएन डेयरी, जीएन गोल्ड, एनएनसीएल पर कलेक्टर का महत्वपूर्ण फैसला
फैक्ट फाइल…
10,574 पालिसी धारकों के लिए राहत भरा निर्णय
एसपी करेंगे विवेचना, 6 वर्ष तक का हो सकता है कारावास
डायरेक्टरों के खिलाफ अभियोजन (प्रासीक्यूषन) भी चलेगा ।
प्रत्येक डायरेक्टर को तीन-तीन माह की सजा और 1000/-रुपये जुर्माना

इटारसी। चिटफंड कंपनी जीएन डेयरी, जीएन गोल्ड एवं एनएनसीएल के विरुद्ध कलेक्टर अविनाश लवानिया ने 25.09 करोड़ की रिकवरी एवं 12 प्रतिशत ब्याज के साथ निवेष राशि की वसूली पर 12 प्रतिशत ब्याज के आदेश एसडीएम अभिषेक गेहलोत के द्वारा 10574 पालिसियों के सत्यापन एवं आकलन से सहमत होकर पारित किये हैं। साथ ही बिना सूचना दिये होशंगाबाद जिले में वित्तीय व्यवसाय करने के जुर्म में प्रत्येक डायरेक्टर को तीन-तीन माह की सजा एवं 1000 रुपए का जुर्माना किया है।
आज शाम यहां एक पत्रकारवार्ता में निवेशकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश के साहू ने बताया कि तथाकथित तीनों कंपनियां एक ही कार्यालय से दूध उत्पाद, एवं गोल्ड दिये जाने के नाम पर आरडी/एफडी के रूप गरीब निवेशकों से राशि जमा कराती रही जब वापसी की बारी आयी तो कंपनी कार्यालयों में ताला लगाकर भाग गई तथा वर्ष 2012 से राषि अदायगी में व्यतिक्रम कर रही है।

छह निवेशकों ने दिखाया साहस
पीडि़त निवेशकों की ओर से प्रतिनिधि के रूप में विनय मालवीय, नारायण बावरिया, महेश मालवीय, प्रकाश मालवीय, छोटेलाल केवट एवं सुनील वाणी सामने आये तथा साहस करके मप्र निक्षेपको के हितों का संरक्षण अधिनियम 2000 एवं नियम 2003 के तहत प्रकरण समक्ष प्राधिकारी कलेक्टर होशंगाबाद के समक्ष अधिवक्ता रमेश के साहू के माध्यम से दर्ज कराया। त्वरित संज्ञान लेकर कलेक्टर ने 23 जनवरी 2017 को एसडीओ इटारसी को कंपनियों के पीडि़त निवेशकों की निवेश राशि एवं दावा राशि के आकलन और सत्यापन हेतु अधिकृत किया जिसमें हजारों पॉलिसीधारक अपना पहचान पत्र व पॉलिसी लेकर पहुंचे 7 दिन का सत्यापन कार्य चला।

देवास जेल में हैं डायरेक्टर
कंपनी के डायरेक्टर सतनाम सिंह रंधावा, देवेन्द बजाज, पंकज चौधरी, बलजीत शर्मा, डीके बजाज सहित अन्य सहयोगी पूर्व से जिला जेल देवास में बंद हैं। जेल अधीक्षक के माध्यम से नोटिस दिये। कलेक्टर ने कंपनी के सभी पतों पर भेजे नोटिस कार्यालय बंद होने से वापस आये। डायरेक्टरों पर देवास, हाट पीपल्या, हरदा, खरगौन, विजयनगर इंदौर, माधवनगर, धमतरी छत्तीसगढ़ मंदसौर, बांसवाड़ा राजस्थान सहित अनेक थानों में अपराध दर्ज हैं। देवास कलेक्टर आशुतोष अवस्थी ने कंपनियों पर अधि. की धारा 4 के तहत 24 अगस्त से 4 अक्टूबर 16 तक 13 संपत्तियां कुर्क की हैं, तथा जिनकी नीलामी की प्रक्रिया जिला न्यायाधीष देवास के अधीन प्रचलित हैं।

आगे क्या होगा…
डायरेक्टरों के विरुद्ध अभियोजन के आदेश दिए हैं तथा एसपी को मामला दर्ज कर धारा 6(2) में विवेचना हेतु भेजा जाएगा और अपराधियों के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण भी चलेगा।

संभावित धाराएं ये होंगी
– म.प्र.निक्षेपकों के हितों का संरक्षण अधिनियम 2000 व नियम 2003 की धारा 6(1) में एक लाख का जुर्माना एवं 6 वर्ष का कारावास
– धारा 420 छल करना – 7 वर्ष एवं जुर्माना
– धारा 406 आपराधिक न्यास भंग – 3 वर्ष एवं जुर्माना
– धारा 409 व्यापारी द्वारा आपराधिक न्यास भंग – 10 वर्ष एवं जुर्माना
– धारा 467 मूल्यवान प्रतिभूति (पालिसी) की कूट रचना – 10 वर्ष एवं जुर्माना
– धारा 468 छल के प्रयोजन से कूट रचना – 7 वर्ष एवं जुर्माना
– धारा 471 कूट रचित दस्तावेज को असली के रूप में उपयोग करना
– धारा 472 कूट रचना के आषय से दस्तावेज कब्जे में रखना ।
– धारा 34

किसने क्या कहा…!
मप्र निक्षेपकों के हितों के संरक्षण अधिनियम 2000 एवं नियम 2003 प्रभावी कानूनी है इसके तहत हमने 10574 पीडि़त निवेशकों की ओर से प्रकरण पेश किया जिस पर कलेक्टर ने सक्रियता से शीघ्र और सुलभ न्याय देकर विधि सम्मत आदेश पारित किया है। आदेशानुसार वसूली कार्यवाही देवास में करना होगी।
रमेश के साहू, पीडि़त निवेशकों के वकील

छोटे-छोटे गरीब लोगों का पैसा खाकर कंपनी भागी है। कलेक्टर ने आर्डर करके राहत दी है, अब जल्दी पैसा वापस मिले यही चाहते हैं।
विनय मालवीय, पीडि़त निवेशक

मप्र निक्षेपकों के हितों का संरक्षण अधिनियम 2000 एवं नियम 2003 में सजा और जुर्माना राशि का कम प्रावधान है जिससे वह प्रभावी रूप नहीं ले पा रहा है। चिटफंड कंपनियों को जिले में वित्तीय व्यवसाय करने के पूर्व ही रोका जाना चाहिये क्योंकि उनके पास ऐसा कोई लायसेंस या अधिकार नहीं होता है।
ऐश्वर्य साहू, एडव्होकेट हाईकोर्ट जबलपुर

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