पुस्तक का प्रकाशन और प्रतिमा लगाने पर हुआ विचार

Post by: Manju Thakur

इटारसी। भारत कृषक समाज के तत्वावधान में ग्राम नंदरवाड़ा में महान कृषि वैज्ञानिक डॉ आरएच रिछारिया की पुण्य तिथि पर उनकी जन्म स्थली ग्राम नंदरवाड़ा में जिले के किसानों के लिए कृषि सभा का आयोजन किया गया। इस सभा की अध्यक्षता श्रीमती नीलकमल उपाध्याय ने की। इनके अलावा सभा में मधुसुदन यादव, सब्बर सिंह मंडलोई, मोहन झलिया, विजय बाबू चौधरी, हेमंत दुबे, लीलाधर राजपूत, डॉ कश्मीर सिंह उप्पल, योगेश दीवान, कृष्णकांत राजपूत, सुरेश दीवान मौजूद थे। सभी अतिथियों में यहां सभा को संबोधित भी किया। इस सभा में ये तय हुआ कि डॉ रिछारिया की जयंती 19 मार्च को उनके ग्राम गांव में उनकी प्रतिमा की स्थापना करना और उनके कामों की पुस्तक का प्रकाशन किए जाने पर सहमति बनी है। पुस्तक के प्रकाशन का खर्च जमानी के किसान हेमंत दुबे ने वहन करने की घोषणा की। इसके अलावा यहां से सरकार से ये मांग उठी कि होशंगाबाद जिले में स्थापित एक मात्र कृषि महाविद्यालय का नाम डॉ रिछारिया के नाम पर हो ताकि विद्यार्थियों को देशी बीजों पर शोध करने की प्रेरणा प्राप्त हो।
यहां सभा में शिक्षाविद् डॉ कश्मीर सिंह उप्पल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ रिछारिया ने 19 हजार धान के बीजों का संरक्षण किया था लेकिन मल्टी नेशनल कंपनियों के दबाव में इन्हें पद से हटाया गया और बीजों पर कब्जा कर लिया था। इन बीजों की विशेषता ये थी कि इन बीजों में न कोई बीमारी लगती थी और न ही कि किसी प्रकार के कीड़ों का इन पर प्रभाव होता था। ये बीज अधिक वर्षा वाले और न्यूनतम वर्षा वाले खेतों में भी सफलता पूर्वक फसल देते थे। देश की हरित क्रांति के समय से डॉ रिछारिया विदेशी बीजों का विरोध कर रहे थे क्योंकि भारतीय मौसम और मिट्टी में विदेशी बीजों पर कई बीमारियों और बीजों का प्रकोप देखा गया है। इसी कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने मिलकर उन्हें उनके पद से हटाकर उनके काम को रोक दिया। विदेशी बीजों, रासायनिक खाद का प्रकोप बढ़ जाने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिर गांधी ने डॉ रिछारिया को देशी बीजों पर एक रिपोर्ट देने को कहा था। उन्होंने वह रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंप दी परंतु तभी 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो जाने के बाद उस फाइल का क्या हुआ आज तक किसी को भी नहीं पता।

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