प्रेमचंद की कहानियों पर साहित्यक विमर्श

प्रेमचंद की कहानियों पर साहित्यक विमर्श

पाठक मंच की द्वितीय मासिक बैठक हुई
इटारसी। साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्, भोपाल द्वारा होशंगाबाद जिले के लिए इटारसी में गठित पाठक मंच की द्वितीय बैठक शासकीय महात्मा गांधी स्मृति स्नातकोत्तर महाविद्यालय के दृश्य-श्रृव्य सभागार में आयोजित की गई। बैठक में लेखक कमल किशोर गोयनका द्वारा रचित प्रेमचन्द की कहानियों का काल क्रमानुसार अध्ययन तथा लेखक रमेशचन्द्र शाह द्वारा रचित आवाहयामि पुस्तक पर समीक्षार्थ चर्चा आयोजित की गयी। पुस्तक विमर्श आरंभ करने से पूर्व डॉ. धीरेन्द्र शुक्ल ने इटारसी नगर के साहित्य मर्मज्ञों, साहित्यिक आलोचकों का स्वागत किया और स्वागत उद्बोधन के पश्चात् पुस्तक विमर्श की श्रृंखला में डॉ. केएस उप्पल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पाठकों को इस पुस्तक के शीर्षक से ही इसके विषय वस्तु के अतिरिक्त अत्यंत ही दुर्लभ तथ्यों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
दीपाली शर्मा ने कहा कि प्रेमचन्द की 1908 से अक्टूबर 1936 तक की संपूर्ण कहानियों को लेखक ने अपनी इस समीक्षा में शामिल किया है। उनके देवावसान के बाद भी उनकी कहानियों के छपने का सिलसिला चल रहा है। ममता बाजपेई ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां हृदय को छू जाती है। उसे कालखंड में बांटना अनुचित है। राजकुमार दुबे ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों के कालक्रमानुसार अध्ययन का यह प्रथम प्रयास है। श्री गोयनका से पूर्व किसी आलोचक ने अभी तक इस दृष्टि ने नहीं सोचा है। राजेश दुबे ने कहा कि प्रेमचंद मुस्लिम अदीबों और कवियों का हिन्दुओं से तुलनात्मक विवेचन भी करते हैं। मनोज गुलबाके ने कहा कि अमृतलाल नागर ने अपने एक लेख में उर्दू की साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, हिन्दी विरोध, हिन्दू लेखकों के प्रति हीन भावना तथा फारसी लिपि के प्रति दुराग्रह की कटू आलोचना की है। विकास उपाध्याय ने बताया कि प्रेमचंद उर्दू दां तो थे परंतु मौलवी न थे क्योंकि उन्होंने अरबी फारसी से मुक्ति पा ली थी। मुकेशचन्द्र मैना ने कहा कि प्रेमचंद ने साहित्यकार के परंपरागत स्वरूप व दायित्व को खंडित करके नए युग की नई चेतना का संवाहक बनाया। जीपी दीक्षित ने कहा कि सामाजिक समरसता उनकी कहानियों में दिखती है। अनिरूद्ध कुमार शुक्ल ने बताया कि प्रेमचंद जी विश्व के लेखकों में से एक है। उनकी कहानियों की संख्या में विवाद है। ब्रजमोहन सिंह ने कहा कि श्री गोयनका ने प्रेमचंद की रचनाओं को प्रकाशन को ही क्रमबद्धता का आधार माना है न कि लेखन की क्रमबद्धता। छात्रा जूली राजपूत ने कहा कि यदि हम साहित्य के विद्यार्थी हैं तो कालक्रम आवश्यक है किंतु पाठक के लिए काल क्रम का अत्याधिक ज्ञान उतना आवश्यक नहीं है। डॉ. धीरेन्द्र शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं में उपस्थित काल आज भी प्रतिबिंबित होता है।

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