बहुरंग : नवलेखन : किताबों को ही अपना “गुरू ” मान ले युवा पीढ़ी

बहुरंग : नवलेखन : किताबों को ही अपना “गुरू ” मान ले युवा पीढ़ी

– विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha) :

मध्यप्रदेश का ‘ नव लेखन ‘ निश्चित ही सराहनीय है। आये दिन हम युवा कथाकारों और कवियों को साहित्यिक पत्रिकाओं में पढ़ते रहते हैं। चाहे ” हंस ” हो या ‘ वागर्थ ‘ या फिर ” नया ज्ञानोदय ” ही क्यों न हो । युवा पीढ़ी हर साहित्यिक पत्रिका में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। नीलाक्षी सिंह , बाबुषा कोहली , इंदिरा दांगी , पंकज सुबीर , शरद कोकास , मोहन सगोरिया कितने ही ऐसे नाम हैं जो अपार संभावनाएं लिए हुए हैं।अब ये अलग बात है कि गम्भीर लेखन के चलते या लंबे समय से लिखती आ रही ये पीढ़ी क्या स्वयं को ‘ नव लेखन ‘ के दायरे में मानती है अथवा नहीं क्योंकि यहां तक आते -आते उनका काफी कुछ प्रकाशित हो चुका है। आजकल किसी भी साहित्यकार का उसके लिखे हुए साहित्य से ही आकलन किया जाता है। लिखा हुआ साहित्य ही ” शाश्वत ” भी होता है । अब मैं इटारसी की बात करूंगा । या चलिये हम समूचे ‘ नर्मदांचल ‘ की बात करते हैं। रचनाकारों के नाम नहीं गिनाऊंगा क्योंकि जिस तरह माँ नर्मदा का हर कंकर शंकर है उसी तरह यहां के हर युवा के हाथ में कलम है । कोई पद्य में लिख रहा है तो कोई गद्य में । कुछ युवाओं के हौंसले बुलंद हैं तो वे पत्रकारिता में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। इनमें से किसी की भी योग्यता पर आप प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते।
इटारसी नगर के एक साप्ताहिक समाचार पत्र ने तो पूरा एक पृष्ठ ही युवा कवियों के नाम कर दिया है । मैं रविवार को निकलने वाले इस अखबार को नियमित रूप से पढ़ता हूं। विशेषकर उस पृष्ठ को जो ” पत्र संपादक के नाम ” स्तंभ को समर्पित है। इस पेज पर ज्यादातर युवा कवियों को प्रमुखता के साथ स्थान दिया जाता है। कवि की फोटो के साथ प्रकाशित कविता पाठकों का ध्यान तो आकर्षित करती ही है परन्तु ये भी देखने में आता है कि कौन क्या लिख रहा है। मेरा अपना सोचना है कि कतिपय युवा कवियों को मार्गदर्शन की नितांत आवश्यकता है । तभी उनकी कविता कसौटी पर खरी उतरेगी। नई पीढ़ी की कलम को तराशना भी होगा। उनकी कलम न केवल धारदार होनी चाहिए बल्कि उसमें पैनापन भी जरूरी है। इटारसी में इतने ख्यातिनाम कवि और साहित्यकार हैं मगर युवा पीढ़ी को राह दिखाने की कोई जरूरत नहीं समझता । कुछ युवा कवियों को तो कतिपय वरिष्ठ कवियों ने बिना किसी तैयारी के कवि – सम्मेलनों के दलदल में धकेल दिया। इस तरह हम उनकी असल कविता से वंचित हो गए। काश् कोई इन युवा कवियों को मुक्तक , गीत , नई कविता में अंतर बताता । काश् कोई उन्हें शेर और गज़ल में फर्क समझाता । काश् उनसे कोई मात्रा , वजन , वहर , रदीफ़ , काफिये पर बात करता लेकिन कोई भी इसके लिए आगे आने को तैयार नहीं । कुछ लोगों को तो गुटबाजी से ही फुरसत नहीं है । वजह वही । अपनी डफली अपना राग । निजी स्वार्थ । उस पर तुर्रा ये कि नई पीढ़ी के लोग जैसे – तैसे पूरी ईमानदारी के साथ अपना कुछ मौलिक लिखते हैं तो मंच से सरेआम उनकी खामियां निकाली जाती हैं । उन्हें हतोत्साहित किया जाता है । बावजूद इस सबके युवा पीढ़ी खुद की सोच और समझ से कुछ लिख पा रही है तो इसका पूरा श्रेय उनकी अपनी लगन और मेहनत को जाता है ।
मैंने कुछ वर्ष पूर्व ही स्थानीय ‘ श्री प्रेमशंकर दुबे स्मृति पत्रकार – भवन ‘ में नई पीढ़ी के कवियों , कथाकारों के लिए एक कार्यशाला आयोजित की थी। अफसोस कि एक गीतकार ने हमारे शहर के ही एक प्रतिष्ठित शायर पर व्यक्तिगत् आक्षेप कर कार्यशाला को विवादास्पद बनाने का तहेदिल से प्रयास किया। उसके बाद कोई कार्यशाला आयोजित नहीं की गई । मेरे शहर की युवा पीढ़ी अब भी इस बात की प्रतीक्षा में है कि कोई तो उन्हें रास्ता दिखाए । अन्यथा वे अंधेरे में यूं ही भटकते रहेंगे। … मगर मेरी तो उनको यही सलाह है कि वे किसी मसीहा का इंतज़ार न करें। किसी सदगुरु की राह न देखें । अच्छा तो यही होगा कि नई पीढ़ी हिंदी – उर्दू अदब की किताबों को ही अपना ” गुरु ” मान ले क्योंकि जितना वे पढ़ेंगे उतना ही अच्छा लिख पायेंगे। ‘ गुरु पूर्णिमा ‘ के पावन पर्व के शुभ अवसर पर ” नर्मदांचल ” की ओर से नई पीढ़ी के लेखकों को यही मशविरा है । सलाह है । समझाईश है। शुभकामनाएं।

vinod kushwah
विनोद कुशवाहा
Contact : 96445 43026

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