बहुरंग : महिला लेखन और स्त्री विमर्श

बहुरंग : महिला लेखन और स्त्री विमर्श

– विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwah) :
एक दौर था जब महिला लेखन की बात करने पर सुभद्राकुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) से महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)तक आकर हम रुक जाते थे क्योंकि कविता तब भी पहली पसंद थी और आज भी पहली पसंद है । मगर इनकी चर्चा करते हुए हम बंगाल की महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) और आशापूर्णा देवी (Ashapurna Devi) को विस्मृत न करें जिनका गद्य लेखन भुलाए नहीं भूलता । यही वजह है कि कभी उपन्यास को महिलाओं की विधा ही माना जाता था । शायद सिर्फ इसी कारण बाद के दौर में महिला उपन्यासकारों का बोलबाला रहा । कृष्णा सोबती , मन्नू भंडारी , मैत्रेयी पुष्पा , ममता कालिया, अमृता प्रीतम, शिवानी, मृदुला गर्ग, नासिरा शर्मा , गीतांजलि श्री , अलका सरावगी , मृणाल पांडे , मनीषा कुलश्रेष्ठ आदि कितने ही ऐसे नाम हैं जो उंगलियों पर गिनाए जा सकते हैं । अमृता प्रीतम तो उनके व्यक्तिगत् जीवन और उससे जुड़े विवादों के कारण ज्यादा चर्चा में रहीं । साहिर और इमरोज की वजह से उनके लेखन पर उतनी बातचीत नहीं हुई जिसकी वे हकदार थीं । जबकि उन्होंने गद्य और पद्य में समान रूप से लेखन किया । उनका ‘ नागमणि ‘ मेरा पसन्दीदा उपन्यास है । आज के दौर में अलका सरावगी और मनीषा कुलश्रेष्ठ सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली उपन्यासकार हैं । यदि मैं खुद की बात करूं तो मैं मनीषा को ज्यादा नम्बर दूंगा ।
आगे हम मध्यप्रदेश की बात नहीं करेंगे। न ही हम नर्मदांचल की चर्चा करेंगे। हम बात करेंगे सिर्फ और सिर्फ इटारसी की क्योंकि हमारी कहानी इटारसी से शुरू होकर इटारसी पर ही खत्म होती है ।
इटारसी में भी महिला लेखन में गद्य की परंपरा नहीं के बराबर रही । गद्य लेखन में एक ही नाम उभरकर सामने आता है । वह हैं नीता श्रीवास्तव जो वर्षों इटारसी में रहकर मौन साधना करती रहीं और किसी ने नोटिस नहीं किया । वर्तमान में वे महू में निवास कर रही हैं लेकिन इटारसी उनकी रग – रग में बसा है । ये उनका बड़प्पन है। नीता श्रीवास्तव से इटारसी के उन गीतकारों , गज़लकारों को सबक लेना चाहिए जो वर्षों इटारसी के टुकड़े तोड़ने के बाद भी इटारसी के न हो सके। जबकि इस शहर ने उन्हें क्या नहीं दिया। सर आंखों पर बिठाया बदले में पीठ पर खंजर मिले। इतना ही नहीं उन्होंने विपिन जी की महान परंपरा तक को दांव पर लगा दिया। नीता श्रीवास्तव से उन मंचीय कवियों को भी सबक लेना चाहिए जो दूसरे शहरों के नाम अपने नाम के आगे लिखकर इटारसी का नाम बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं जबकि उनकी जड़ें इसी शहर में गड़ी हुई हैं। यही कारण है कि वे जब – जब इटारसी शहर में चुटकुलेबाजी करने मंच पर खड़े हुए हैं तब – तब इटारसी के सुधि श्रोताओं ने उनको बुरी तरह हूट किया है क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है। इन सबके अलग – अलग मठ बन गए हैं । उनके चेले चपाटी भी इटारसी का नाम हटाकर दूसरे शहरों का नाम अपने नाम के आगे जोड़ने में गर्व का अनुभव करते हैं । वो तो यही बात हुई है कि खायेंगे यहां का , गायेंगे कहीं और का । खैर । गद्य लेखन में नीता श्रीवास्तव के अलावा एक नाम और है । जिन्होंने कथा लेखन के क्षेत्र में अभी कदम रखा ही है । हालांकि वे मूलतः कवयित्री हैं । स्वर्णलता छेनिया । वैसे तो वे भी इटारसी की नहीं हैं लेकिन उनका बड़प्पन है कि स्वर्णा नामदेव छेनिया स्वयं को इटारसी का ही मानती हैं । अंत में बात लघु कथा की । इसमें एकमात्र नाम क्षिप्रा विज का ही है जो शासकीय सेवा में होने के बाद भी लेखन के लिए अपने हिस्से का समय निकाल ही लेती हैं । देश की प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं ने समय – समय पर उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया है । क्षिप्रा नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं ।
अब आते हैं महिला लेखन में पद्य लेखन पर। इसमें सबसे पहला नाम आता है सावित्री मौसी का। यानी सावित्री शुक्ल ‘निशा’ का । उन्होंने तब कविता की बाहरी दुनिया में प्रवेश किया था जब महिलाओं का घर की देहरी तक लांघना भी वर्जित था । मगर आज भी इटारसी की पहचान उनसे ही है । वर्तमान में वे अपने मंझले पुत्र मेरे मित्र असीम शुक्ल के साथ गुजरात में निवास कर रही हैं परन्तु उनका लेखन बदस्तूर जारी है । उनकी परम्परा को स्वयंप्रभा श्रीवास्तव , दीपाली शर्मा , कल्पना सक्सेना, आशा पवार, ममता वाजपेयी, स्वर्णलता छेनिया ने आगे बढ़ाया है। लिस्ट तो बहुत लंबी है। शेष की चर्चा फिर कभी। उपरोक्त कवयित्रियों में स्वयंप्रभा श्रीवास्तव , कल्पना सक्सेना तो रही नहीं और दीपाली शर्मा ने ये शहर छोड़ दिया । वर्तमान में वे होशंगाबाद में निवास कर रही हैं । सावित्री मौसी के बाद दीपाली शर्मा ही पहली ऐसी कवयित्री हैं जिन्होंने मंच और शाश्वत साहित्य में तालमेल बिठाया । आशा पवार भी उसी श्रेणी की कवयित्री हैं । उनके गीत और गज़लें आला दर्जे के हैं । यही वजह है कि ” श्रीमती शांति देवी महादेव पगारे स्मृति समिति ” ने उनके कविता संग्रह का प्रकाशन किया है । ममता वाजपेयी और स्वर्णा छेनिया भी इन दिनों अपनी प्रस्तुति से कवि – सम्मेलनों के मंचों पर छाई हुई हैं । इनके अतिरिक्त नई पीढ़ी का लेखन भी उल्लेखनीय है लेकिन वह एक साप्ताहिक समाचार पत्र तक सिमट कर रह गया है । जबकि मंजिलें और भी हैं । अंत में उक्त साप्ताहिक अखबार का आभार जिसने अपने अखबार का पूरा एक पेज इस पीढ़ी के नाम कर दिया है । अन्यथा इस शहर में अपने आप को बरगद और पीपल समझने वाले कुछ कवि न तो नई पीढ़ी को छाया दे पा रहे हैं और न ही नए पौधों को पनपने दे रहे हैं ।

vinod kushwah
विनोद कुशवाहा
Contact : 96445 43026

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