इटारसी। विलुप्त प्रजाति के चमर गिद्ध वर्षों बाद मोरपानी के जंगल में दिखे। होशंगाबाद सामान्य वन मंडल के डीएफओ अजय कुमार पांडेय ने सुखतवा रेंज की मोरपानी बीट में इन गिद्धों को देखा। बताया जाता है कि प्रकृति का सफाई कर्मी यानी चमर गिद्धों की संख्या वर्षों पूर्व यहां लाखों में थी जो धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गयी थी। जिले में पहली बार दिखे चमर गिद्धों का सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र की ऊंची चट्टानों में ठिकाना होने के संकेत मिल रहे हैं।
भारत में विलुप्तता की कगार पर पहुंचने वाले पक्षी चमर गिद्ध की संख्या अब धीरे-धीरे बढऩे लगी है। वैसे तो इस पक्षी को बंगाल का गिद्ध कहा जाता है। जो कि एक पुरानी दुनिया का गिद्ध है। इस प्रकार के विलुप्त हो चुके चमर गिद्ध को होशंगाबाद सामान्य वनमडंल के डीएफओ अजय कुमार पांडे ने सुखतवा रेंज की मोरपानी बीट में देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने वर्षो बाद इस तरह के गिद्धों को देखा है। माना जा रहा है कि पूरे देश में लाकडाउन होने के कारण जंगलों में वन्य प्राणी व पक्षियों में हलचल बढ़ी है। जंगलों में छाई वीरानी व शोरगुल नहीं होने के कारण एवं मानव जाति की चहलकदमी जंगलों में नहीं होने के कारण अब वन्य प्राणी सड़कों पर आ ही रहे हंै, साथ ही ऊंची चट्टानों में रहनेवाले विलुप्त प्रजाति के परभक्षी चमर गिद्ध भी अब दिखाई देने लगे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो यह परिंदे ज़हरीले जानवरों को खाने के बाद मरे हैं। मवेशी पालक अपने पालतू मवेशियों को ज्यादा दूध के लालच में जो इंजेक्शन लगाने लगते हैं, उस जानवर के मरने के बाद जो भी परिंदा उसको खायगा वो मरेगा, इसी तरह से गिद्धों की तादात घटी है।
दौरे पर देखा इन गिद्धों को
सामान्य वनमडंल के डीएफओ अजय कुमार पांडे विगत दिनों इटारसी, सुखतवा रेंज के दौरे पर गए थे। इस दौरान उन्होंने कई बीटों को भी देखा। जब वे सुखतवा रेंज की मोरपानी बीट से लौट रहे थे, तब उन्होंने सड़क से थोड़ी दूरी पर मृत पड़े मवेशी के आसपास इन चमर गिद्धों को देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने तत्काल इस दृश्य को अपने मोबाइल में कैद किया। हालांकि ये फोटो बहुत स्पष्ट नहीं आयी। उनका कहना है कि वैसे तो भारत वर्ष में आधा दर्जन से ज्यादा गिद्धों की प्रजाति पाई जाती है, जिनमें से एक प्रजाति ये भी है। यह बंगाल का गिद्ध एक पुरानी दुनिया का गिद्ध है, जो कि यूरोपीय ग्रिफऩ गिद्ध का संबंधी होना जानकारों द्वारा बताया जाता है। एक समय यह अफ्रीका के सफ़ेद पीठ वाले गिद्ध का ज़्यादा करीबी समझा जाता था और इसे पूर्वी सफ़ेद पीठ वाला गिद्ध भी कहा जाता है। 1990 के दशक तक यह पूरे दक्षिणी तथा दक्षिण पूर्वी एशिया में व्यापक रूप से पाया जाता था और इसको विश्व का सबसे ज़्यादा आबादी वाला बड़ा परभक्षी पक्षी माना जाता था। सूत्रों की मानें तो 1992 से 2007 तक इनकी संख्या 99 फीसदी तक घट गई थी और यह घोर संकटग्रस्त जाति की श्रेणी में पहुंच गए थे। अब इनका सरंक्षण होने से इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है।
ऊंची चट्टानों पर बनाते हैं ठिकाना
डीएफओ अजय कुमार पांडे का कहना है कि गिद्ध कुछ ही घंटों में वयस्क मवेशी के शव का निपटान कर सकते हैं। बताया जाता है कि इस प्रजाति के चमर गिद्ध ऊंची चट्टानों व ऊंचाई वाली जगहों पर अपना ठिकाना बनाते हंै। होशंगाबाद जिले में एसटीआर के क्षेत्र मे ऊंची चट्टानों व पहाडिय़ों पर इनका ठिकाना हो सकता है, ऐसा जानकार सूत्रों का कहना है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अधीनस्थ आने वाले कई ऊंची जगहों पर इनका ठिकाना होने के संकेत हैं। जानकार तो यह भी बता रहे हैं एसटीआर के अधीनस्थ आने वाले क्षेत्रों में इनका सरंक्षण भी हो रहा है और इनकी संख्या में तेजी से वृद्धि भी हो रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सामान्य वनमडंल होशंगाबाद के डीएफओ अजय कुमार पांडे ने स्वयं ने इस प्रजाति के चमर गिद्धों को कई वर्षों बाद देखा है। इन गिद्धों की यह प्रजाति देश के कुछ प्रान्तों में पाई जाती है। हलांकि इसे बंगलिश भी कहा जाता है। ये प्राय: मृत मवेशी का ही भोजन करते हैं। बहरहाल होशंगाबाद जिले के एसटीआर क्षेत्र में इनका सरंक्षण व ठिकाना होने से होशंगाबाद जिले के लिए गौरव की बात है।
इनका कहना है…!
हमारे क्षेत्र में ये वर्षों से नहीं देखे गये हैं। हो सकता है, सतपुड़ा टायगर रिजर्व में इनका कहीं रहवास हो। ये दूर से नहीं आये होंगे। हमारे क्षेत्र में इनका दिखना एक महत्वपूर्ण घटना है। इनका आना शुभ लक्षण हंै। पहले यह मवेशियों को खाकर पेट भरते और पर्यावरण को शुद्ध रखने का काम करते थे। बीच में यह खत्म हो गये थे, इनका इस क्षेत्र में दिखना शुभ लक्षण हैं।
एके पांडेय, डीएफओ होशंगाबाद