मोर नृत्य और बालकृष्ण ने मोह लिया मन

श्री द्वारिकाधीश मंदिर में आज से रासलीला प्रारंभ

श्री द्वारिकाधीश मंदिर में आज से रासलीला प्रारंभ
इटारसी। नगर पालिका परिषद के तत्वावधान में आज से श्री द्वारिकाधीश मंदिर में रासलीला का तीन दिवसीय आयोजन प्रारंभ हुआ। श्री बाल कृष्ण लीला संस्थान वृंदावन कलाकार पं.प्रभातकुमार श्याम सुंदर शर्मा के नेतृत्व में लीला का मंचन कर रहे हैं।
दोपहर में नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष श्रीमती सुधा अग्रवाल, आयोजन की संयोजक अमृता मनीष ठाकुर सहित सांवरिया सखी संगम की सदस्यों ने राधे-कृष्ण की पूजा करके लीला प्रारंभ करायी। विधायक प्रतिनिधि कल्पेश अग्रवाल, जसबीर सिंघ छाबड़ा, गोविन्द श्रीवास्तव ने भी भगवान की पूजा की। पहले दिन मंदिर परिसर में ऊखल बंधन की कथा का मंचन किया। इससे पूर्व राधा रानी की इच्छा पर श्रीकृष्ण का मयूर नृत्य पर भक्त झूम उठे।

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ऊखन बंधन लीला
रासलीला के अंतर्गत ऊखल-बंधन माखनचोरी की अंतिम लीला है। ऊखल-बंधन लीला को वात्सल्य-रस का रास कहते हैं। यह लीला कार्तिक मास में हुयी थी जिसे दामोदरमास भी कहते हैं क्योंकि इसी मास में यशोदामाता ने श्रीकृष्ण को रस्सी (दाम) से उदर पर बांधा था इसीलिए उनका एक नाम दामोदर हुआ। उस दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा थी। श्रीकृष्ण 2 वर्ष, 2 मास 8 दिन के हो चुके थे। अभी वे माता का दूध ही रुचिपूर्वक पीते थे। घर की दासियां अन्य कामों में व्यस्त थीं, क्योंकि आज गोकुल में इन्द्रयाग (इन्द्र की पूजा) होना था। यशोदामाता ने निश्चय किया कि आज मैं अपने हाथ से दधि-मन्थन कर स्वादिष्ट माखन निकालूंगी और उसे लाला को मना-मनाकर खिलाऊंगी। जब वह पेट भरकर माखन खा लेगा तो उसे फिर किसी गोपी के घर का माखन खाने की इच्छा नहीं होगी।

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यशोदामाता सुबह उठते ही दधि-मन्थन करने लगीं क्योंकि कन्हैया को उठते ही तत्काल का निकाला माखन चाहिए। यशोदामाता शरीर से दधि-मन्थन का सेवाकार्य कर रही हैं, हृदय से श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण कर रही हैं और मुख से उनका गान भी करती जा रहीं हैं। हर रोज का नियम था कि यशोदामाता के मंगलगीत गाने पर ही कन्हैया जागते थे। कन्हैया कब उठ गये, मैया देख न सकी। श्रीकृष्ण उठे, फिर शैया से उतरकर आये और मैया के पास आए और भूख लगने का कहकर माखन मांगने लगे। मैया बोली, एक दिन का बासा दूध और रोटी रखी हैं, वे खा लो, क्योंकि अभी माखन मथ रही हैं, इसे तैयार होने में टाइम लगेगा। श्री कृष्ण ताजा माखन की ही जिद कर रहे हैं। किसी तरह से श्रीकृष्ण भूख से व्याकुल बासा माखन खाने को तैया हो जाते हैं। इस बीच चूल्हे पर गर्म हो रहा दूध देखने मैया चली जाती है और लौटकर देखती हैं तो दहेड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं। उन्होंने दूध-दही के पात्र फोड़ दिये, वहां पर दूध-दही फैलने से समुद्र सा हो गया। पूरा घर दधिसागर बन गया है मैया को हंसी आ गयी। फिर उसने सोचा, ऐसे तो बालक बिगड़ जायेगा। माता ने लाला को दूध पिलाने की जगह दण्ड देने का विचार किया। अत: एक छड़ी लेकर श्रीकृष्ण को धमकाने चलीं। कन्हैया ने मैया को छड़ी लेकर अपनी ओर आते देखा तो ऊखल से उतर कर आंगन में भागे। यशोदाजी पीछे-पीछे दौड़ीं। बोली ठहर, आज मैं तुझे बिल्कुल छोडऩे वाली नहीं हूं। तूने जिस ओखली पर चढ़कर चोरी की है उसी से आज तुझे बांधे देती हूं। यशोदामाता ने सोचा कि ऊखल भी चोर है; क्योंकि माखनचोरी करते समय इसने श्रीकृष्ण की सहायता की थी। चोर का साथी चोर। इसलिए दोनों बंधन के योग्य हैं। यह ऊखल भी कृष्ण के साथ बंधकर दूसरों के उद्धार में समर्थ हो गया।

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