लोगों की प्यास बुझाने अब शहर में नहीं दिखते प्याऊ

इटारसी। अब वो जमाने सिर्फ यादों के दायरे में कैद होकर रह गये हैं जब जेठ की भीषण लू, तपती धरती और चिलचिलाती दोपहरी में सवारियों को ढोते हुए पसीने से तरबतर बेहाल कोई रिक्शेवाला, माल ढोने वाले ठेले पर लदे बोझ को घसीटने हुए मजदूर या प्यास से बुरी तरह बेहाल कहीं दूर से आते राहगीरों की निगाहें पानी को तलाशती थीं तो थोड़ी-थोड़ी दूर पर प्यास बुझाने के लिये सज्जन व्यक्तियों द्वारा लगवाये गये प्याऊ से शीतल जल पीने को उन्हें मिल जाता था। वक्त बीतने के साथ-साथ जैसे-जैसे जमाने ने करवट ली और समाज के आधुनिकीकरण ने कम्प्यूटर क्रांति के युग में कदम रखा, पश्चिम की आयातित संस्कृति और स्वार्थी प्रवृत्ति के असर के चलते दो शहरों के मार्ग में और शहरों में गली मोहल्ले के नुक्कड़ों पर लगने वाली प्याऊ तो खत्म ही हो गयी, नगरों, कस्बों और गांवों में भी प्याऊ के दर्शन दुर्लभ हो गये। साथ ही प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाकर पुण्य कमाने की भारतीय संस्कृति की अवधारणा दिलों से लुप्त होने लगी। ईंटा और रस्सी के इस शहर में भी बीते कुछ वर्षों तक गर्मी आते ही जगह-जगह सार्वजनिक सेवा प्रारंभ हो जाती थी।
नीमबाड़ा में महावीर जैन समाज, बस स्टैंड पर मां नर्मदा टैक्सी एसोसिएशन, चिकमंगलूर चौराहे पर झूलेलाल सेवा समिति, श्री द्वारिकाधीश मंदिर के पास व्यापार संघ प्याऊ की व्यवस्था करते थे। इनके अलावा भी बाजार क्षेत्र में ग्रामीण अंचलों और शहर के ग्राहकों के लिए गर्मी में ठंडे जल की व्यवस्था समाजसेवियों द्वारा की जाती थी। लेकिन वक्त ने करबट बदली और इन स्थानों पर आज एक भी प्याऊ नहीं हैं। गर्मी में पानी के लिए सबसे अधिक परेशानी बस स्टैंड पर होती है। यहां के सुभाष पार्क में दो फाइवर की टंकियां नगर पालिका द्वारा रखी गयी हैं जिनको सुबह के समय टैंकरों से भरा जाता है। इनमें पानी दोपहर होते-होते खत्म हो जाता है। इसके बाद यात्रियों को पीने के लिए होटलों से बमुश्किल पानी मिलता है। ज्यादातर लोगों को बोतल बंद पानी खरीदकर पीना पड़ता है। यहां सार्वजनिक पेयजल समस्याओं को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष दुबे ने बताया कि यहां लगा हुआ नलकूप लंबे समय से बंद है, इसलिए पानी की समस्या बनी हुई है।
बस स्टैंड के पास ही नीमवाड़ा, सराफा बाजार, चावल बाजार, पहली लाइन जैसे क्षेत्र में अनेक व्यावसायिक संस्थान हंै जहां प्रतिदिन हजारों लोग आना जाना करते हैं। यहां दो वर्ष तक दो प्याऊ गर्मी में लगती थी। इस वर्ष एक भी नहीं है। हालांकि नगर पालिका ने लायंस क्लब के सहयोग से यहां नलकूप खनन कर सार्वजनिक प्याऊ स्थापित की है। लेकिन, इसके पास लगने वाले दो चाट के ठेले के ग्राहकों की भीड़ ही इतनी होती है, कि आम लोगों को उस प्याऊ का पानी मिलती ही नहीं है। मुख्य बाजार में स्थित चिकमंगलूर चौराह पर बीते साल तक झूलेलाल सेवा समिति बड़ा प्याऊ लगाती थी। इस साल यहां प्याऊ नहीं बल्कि चश्मे की दुकान है।
इसी प्रकार बड़े मंदिर, पुराना फल बाजार आदि में भी इस वर्ष सार्वजनिक प्याऊ नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता सोनू गोयल बताते हें कि बाजार में आने वाले ग्राहकों में पचास फीसदी संख्या उन ग्रामीण क्षेत्र के उन लोगों की होती है जो अपनी प्यास बुझाने के लिए सार्वजनिक प्याऊ पर ही निर्भर रहते हैं, वे यहां होटलों अथवा दुकानों से संकोच में पानी नहीं मांग पाते हैं। उनके लिए तो गर्मी के दौर में प्याऊ बहुत जरूरी है। इस तरह से गर्मी के इस दौर में इटारसी के बाजार क्षेत्र में शीतल पेयजल के लिए मटकों की जो सार्वजनिक प्याऊ स्थापित होती थी, वह नहीं होने से आमजन को अपनी प्यास बुझाने परेशान होना पड़ता है।

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