विषमता में समरसता शिव परिवार से सीखे : प्रज्ञा भारती
इटारसी। श्री द्वारिकाधीश मंदिर परिसर तुलसी चौक पर 56 वें वर्ष के द्वितीय दिवस के श्रीराम जन्म महोत्सव प्रवचन देते हुए काग पीठाधीश्वर श्रीमहंत प्रज्ञा भारती श्री धाम वृदांवन ने शिव परिवार की समरसता और विषमता पर प्रकाश डाला। उन्होंने लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, परंतु राष्ट्र प्रमुख उसे बनाना जिसकी जीत पर पाकिस्तान में फटाखे न फूटें। उन्होंने कहा कि मैं किसी राजनीतिक दल में नहीं हूूं, लेकिन भारत में हिंदू धर्म को यदि जीवित रखना है तब हमें हिंदू राष्ट्र की कल्पना को साकार करने के लिए निरंतर प्रयास में कोई कमी नहीं रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमारे पड़ोसी मुल्क के कारण अरबों खरबों रुपए राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा पर खर्च करना पड़ रहा है। श्रीराम कथा के माध्यम से श्रीमहंत प्रज्ञा भारती ने शिव परिवार की समरसता और विषमता पर बोलते हुए कहा कि शिव की जटा में जल है और तीसरे नेत्र में अग्नि है। शिवजी के कंठ में विष है तो शीश पर विराजत चंद्रमा में अमृत है। सिंह शक्ति का वाहन है और नंदी भगवान शिव का। भगवान शिव के पुत्र कार्तिक का वाहन मोर है और गणेश का चूहा है, जबकि शिवजी के गले में सर्प रहता है।
श्रीमहंत प्रज्ञा भारती ने कहा कि घर परिवार में शिव परिवार जैसे विषमता में समरसता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जल के विरूद्ध अग्नि और नन्दी के विरूद्ध शेर एवं सांप के विरूद्ध मोर विषम होकर भी साथ-साथ रहते है, क्योंकि एक दूसरे का भय बना रहता हैं। श्रीमंहत प्रज्ञा भारती ने कहा कि सती जब राजा दक्ष के यज्ञ में पहुंची और राजा दक्ष ने अपनी बेटी से बात भी नहीं की और यज्ञ शाला में सभी देवताओं के आसन थे, किंतु भगवान शिव का आसन नहीं था। अपने पिता द्वारा अपने पति के अपमान से सती इतनी दुखी हुई कि उसने वहीं पर अग्नि दाह करके अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली, लेकिन अग्नि प्रवेश के समय ही उसने ईश्वर से यहीं मांगा कि मैं दूसरे जन्म में भी भगवान शिव की पत्नि बनकर ही आऊं ताकि इस जन्म का प्रायश्चित कर सकूं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में समिति अध्यक्ष सतीश अग्रवाल सांवरिया, कार्यकारी अध्यक्ष जसबीर सिंघ छाबड़ा, कार्यकारी अध्यक्ष संजय खंडेलवाल, कोषाध्यक्ष संदीप मालवीय, वरिष्ठ सदस्य ओमप्रकाश राठी आदि ने श्रीमहंत प्रज्ञा भारती का पुष्पहार से स्वागत किया। कार्यक्रम संचालक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल ने कहा कि हमारे सौभाग्य के उदय से प्रज्ञा जी का बार-बार इटारसी आना होता है। इस कारण हमें रामचरितमानस के गूढ़ रहस्यों का पता चलता है। उन्होंने कहा कि शिव परिवार और वर्तमान कलयुगी परिवारों में विषमता में समरसता के तार्किक उदाहरण निश्चित ही हर परिवार को सोचने को मजबूर करेंगे। आभार प्रदर्शन कोषाध्यक्ष संदीप मालवीय ने किया।