इटारसी। श्रीमद् भागवत कथा विश्राम के सप्तम दिवस बुधवार को सातवें दिन आचार्य भगवती प्रसाद तिवारी को श्रीमद् भागवत ज्ञानयज्ञ समारोह समिति के द्वारा व्यासपीठ से विदाई दी। समिति के अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह ठाकुर ने शाल श्रीफल से महाराज का सम्मान किया एवं उन्हें भगवान कृष्ण का चित्र भेंट किया। समापन दिवस पर भंडारे में हजारों भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।
इस अवसर पर सुरेन्द्र सिंह ठाकुर ने अपने संबोधन मे कहा कि मन, वचन, कर्म से सातों दिन में समिति के किसी भी सदस्य या मुझसे कोई गलती हुई हो तो मैं आपसे खुले हृदय से क्षमा चाहता हूं। समिति की ओर से उन्होंने ललित तिवारी, अशोक पुरोहित, ब्रजेन्द्र तिवारी, सुनील व्यास, संतोष तिवारी, आलोक भार्गव, जुगल किशोर मालवीय, अखिलेश भार्गव, राकेश एवं आर्गन पर संगत देने वाले विशाल, ढोलक पर संगत देने वाले बिट्टू भाई एवं पेड पर संगत देने वाले दीपू भाई का स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया। इसके अलावा सुमित दुबे, रामगोपाल त्रिपाठी, नरेन्द्र भार्गव का भी सम्मान किया गया।
आयोजन में सहयोग देने के लिए प्रमोद पगारे, मंगल सिंह चंदेल, राहुल गौर, राहुल चौहान, राजेश सूद, मयंक तिवारी, विकास दुबे, प्रदीप प्रजापति, राहुल गहलोत, रिंकू पारासर, विष्णु मिश्रा, कृष्णा यादव, दीपक बड़कुर, गोविंद रावत, घनश्याम तिवारी, रोहित गौर, राजेश कनोजिया, आकाश राजपूत, राहुल वर्मा, भूरू, अनिल, बबलू, मनोज, लालसिंह, रमेश, नितेश राजपूत, मोहित राजपूत आदि का स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया।
विश्राम दिवस की कथा को विस्तार देते हुए व्यासपीठ से आचार्य भगवती प्रसाद तिवारी ने कहा कि पिछले सात दिनों में जाने अनजाने मेरे शब्दों से किसी को पीड़ा पहुंची हो तो मैं आप सभी से व्यासपीठ से क्षमा चाहता हूं। उन्होंने कहा कि जिस अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को सात दिन का समय दिया गया था, उन सात दिनों में प्रभु की आज्ञा मानकर परीक्षित ने अपने जीवन के उद्धार के लिए श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण किया और सातवें दिन तक्षक नाग आया आत्मा, परमात्मा में विलीन हो गई एवं राजा परीक्षित का शरीर जलकर राख हो गया। उन्होंने कहा कि मानव जीवन का परम लक्ष्य सारे दुखों से सदा के लिए मुक्त हो जाना है, और आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य को किसी भी प्रकार का दुख नहीं होता।
ये काम विकास में बाधक
व्यासपीठ से श्री तिवारी ने कहा कि वो काम जिनको करने से मनुष्य दुखी रहता है, उदास, चिन्तित, रोगी, अज्ञानी व गरीब रहता है वो है – नकारात्मक सोचना, गलत लोगों की संगत करना, सुबह देर तक सोते रहना, उचित भोजन ना करना, कामों को टालते रहना, बुरे कामो को करने की कोशिश करते रहना, जीवन में कोई विशेष योग्यता हासिल नहीं करना, नशा (बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा, गांजा, भांग व शराब) का सेवन करना, अनावश्यक पैसे खर्च करना, दूसरो की चुगली करना, कामों को करने में आलस्य करना, हीन-भावना से ग्रस्त होकर जीवन जीना, यह सब कारण व्यक्ति के विकास में बाधक होते है। जो भी काम करों, पूरी ईमानदारी से करों, ईमानदारी से अपना काम करों, नौकरी, व्यापार, खेती, सत्संग, कथा सुनना, योग करना, पढ़ाई करना आदि अपना प्रत्येक काम भगवान की पूजा, भक्ति, समझ कर पूरी ईमानदारी से करें। प्रतिदिन अपने घर में परिवार में सभी लोग एकत्रित होकर अच्छे विषयों पर चर्चा करें, सत्संग करें, ध्यान करें। शरीर छूटने से पहले काम, क्रोध, मोह, लालच, नकारात्मक सोच आदि विकारों से मुक्त हो जाओं, तभी मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी बन पाओगे।