इटारसी। संसार सागर में जीवन जीने वाले सभी जनमानस किसी ना किसी प्रकार की कामवासना व मोहमाया के वशीभूत रहते हैं लेकिन जो मनुष्य सत्संग एवं संतों के निकट रहते हैं, वासना उनके निकट नहीं आती। चूंकि संतों के सत्य वचन से वासना नष्ट हो जाती है। उक्त ज्ञानपूर्ण उदगार नगर के प्रसिद्ध प्रवचनकर्ता पं. रामेश्वर शर्मा ने व्यक्त किये।
तवा कॉलोनी व दीवान कॉलोनी के मध्य आयोजित श्रीमद्भागवत् कथा महापुराण ज्ञान यज्ञ समारोह के तृतीय दिवस में श्रोताओं के समक्ष ज्ञान की गंगा प्रवाहित करते हुए आचार्य रामेश्वर शर्मा ने कहा, वचन यदि सत्संगी हो तो कामी पुरूष को भी आध्यात्मिक बना देते हैं। जिसका सुन्दर उदाहरण गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन चरित्र से मिलता है। जिनके जन्म के समय ही 32 दांत निकल आए थे और मुंह से पहला शब्द राम नाम का निकला, इसलिए नाम पड़ा रामबोला। परन्तु विवाह के बाद वह काम वासना में इतने लीन रहने लगे कि एक दिन इनकी पत्नी अपने मायके गई। सूचना इन्हें रात में मिली, तो वह रात में ही भारी बारिश के बीच पत्नी से मिलने चल दिए। रास्ते में बड़ी नदी पड़ी जिसमें बाढ़ आयी हुयी थी और उस बाढ़ में एक मुर्दा बहकर आ रहा था लेकिन यह मुर्दा कामी तुलसीदास को नाव नजर आयी और वह उस मुर्दे के सहारे नदी पार कर अपनी ससुराल पहुंच गए। ससुराल के घर दरवाजे रात में बंद थे लेकिन यह पता था तुलसी को कि उनकी पत्नी ऊपर के कक्ष में होगी। वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने दीवार पर लटकते एक सांप को रस्सी समझकर उसका सहारा लिया और पहुंच गए पत्नी के पास, तो तुलसीदास जी की पत्नी ने अपने पति की यह वासनापूर्ण व्याकुलता देखकर कहा, स्वामी यदि इतनी तल्लीनता और इतना समय आपने राम नाम के सत्संग में लगाया होता तो, आप संत ज्ञानी बन जाते। पत्नी के यह वचन तुलसीदास जी को इतने भाए कि उन्होंने उसी समय वासना को त्यागकर राम नाम का सत्संग शुरू किया और अपनी सामथ्र्र्यपूर्ण भक्ति से प्रभु श्रीराम के दर्शन भी किए और प्रभु भक्ति के तप से महर्षि वाल्मिकि संस्कृत रामायण को श्रीरामचरित मानस में परिवर्तित कर उसे जनजन तक पहुंचाया। तृतीय दिवस की कथा के प्रारंभ में मुख्य यजवान गणेश प्रसाद वर्मा, संयोजक संदीप वर्मा, डॉ ब्रजमोहन चैधरी, रमेश परिहार, निर्मल सिंह राजपूत, मदनलाल चौरे आदि ने आचार्य श्री का स्वागत किया। संचालन प्रवक्ता गिरीश पटेल ने किया।