सिर्फ आत्मा ही अपनी है, शेष मोह : प्रज्ञानंद
इटारसी। श्री तत्वार्थ साधना आराधना शिविर में संध्याकालीन प्रवचन में प्रज्ञानंद महाराज ने मम दो अक्षर डुबाते होते हैं, नमम तीन अक्षर तारते हैं, विषय पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि मम शब्द का अर्थ मेरा है। यह भी मेरा है, वह भी मेरा है इस प्रकार संसार के समस्त पदार्थों को मेरा-मेरा कहना महत्व या मोह कहलाता है। वास्तव में देखा जाए तो इस संसार में एक आत्मा ही अपनी है। जीव अपनी अज्ञानता के कारण पर पदार्थों को भी अपना मानकर यह शरीर मेरा है, यह पुत्र मेरा है यह स्त्री मेरी है, यह घर मेरा है, यह सब विभूति मेरी है। इस प्रकार मेरा मेरा करता रहता है पर पदार्थ को अपना मानना भूल है। इस भूल के कारण कर्मों का बंध करता रहता है। मम दो अक्षर से यही जीव कर्मों से बंध जाता है और नमम इन तीन अक्षरों से छूट जाता है।
प्रात: कालीन प्रवचनों में बाल ब्रहमचारी बसंत महाराज ने बताया कि पाप जिस तरह के कर्म का बंद करते हैं उसी प्रकार फल भोगना होता है। किसान खेत में जैसा बीज बोता है उसे वैसी ही फसल काटना पड़ती है। मनुष्य शरीर एक खेत है मन वाणी और कर्म किसान है पुण्य। पाप के दो बीज है अब जीव जैसा बीज डालेगा, वैसा ही उसे फल प्राप्त होगा। संसार में कहावत है जैसी करनी वैसी भरनी इस सिद्धांत को समझकर मनुष्य को अपने मन में अच्छे विचार रखने चाहिए।