इटारसी। ग्राम तारारोड़ा में बने विशाल मंच की व्यासपीठ से संबोधित करते हुए अंर्तराष्ट्रीय कथाकार कागपीठाधीश्वर श्रीमहंत प्रज्ञा भारती ने कहा कि सृष्टि में भारत सहित कई देशों में विवाह के नाम पर विवाह होते हैं और कलयुग में लिव रिलेशन नाम से भी लोग साथ-साथ रह रहे है, लेकिन यह पापाचार है। दुनिया में विवाह को सनातन धर्म में जो मान्यता दी गई है ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता।
उन्होंने कहा कि पहले शौर्य के बल पर दूल्हे को दुल्हन मिलती थी आजकल पैसा, मकान और नौकरी पहले देखी जाती है और बेमेल विवाहो के कारण एक से तैरह दिन के भीतर भी दुल्हन की पहली विदाई के पहले ही दुल्हन आत्महत्या कर लेती है। श्रीमंहत प्रज्ञा भारती ने भावुक होकर कहा कि बेटी की विदाई करना किसी पिता के लिए कभी भी कोई आसान कार्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 9 माह तक एक मां प्रसव पीड़ा झेलती है उसके बाद बेटी का लालन पालन करती है एवं उसके शिक्षित कराने में भी माता-पिता की अहम भूमिका होती हैं। जीवन का एक चौथाई हिस्सा माता-पिता अपनी बेटी को स्वयं के बल पर खड़ा करने में लगा देते है, तब जाकर कन्या के पीले हाथ होते हैं।
श्री महंत प्रज्ञा भारती ने कहा कि श्री सीताराम विवाह समाज को संदेश देने के लिए है। यदि आप सार्मथवान है तो आपको अपने सार्मथ के साथ वह प्राप्त हो सकता है। जिसकी आपको कल्पना हो और न भी हो। आज के समाजों में पारिवारिक कलह और दहेज के कारण बेटियों की हत्या होती है अथवा बेटियां आत्महत्या कर लेती हैं, यह सभ्य समाज के लिए उपयुक्त नहीं है। उन्होंने कहा कि अब तो सरकारें भी सामूहिक विवाह के लिए कन्यादान पर काफी कुछ खर्च करती है। समाज में कुरीतियों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए और एक पिता से दहेज मांगना यह भी पाप है। यदि सनातन संस्कृति में सीताराम जैसे विवाह होते रहेंगे तो परिवारों में आनंद और खुशी रहेगी। क्योंकि सीताराम विवाह से समाज को आर्दश संदेश मिलता है।