इटारसी। मेहरागांव निवासी प्रवीण तिवारी को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का आरोपी सूदखोर जितेन्द्र भट्ट को पुलिस ने तेंदूखेड़ा, जिला दमोह से गिरफ्तार किया था। उसे कोर्ट 5 मई को कोर्ट में पेश किया था जहां से उसे जेल भेज दिया था। उसने कोर्ट में जमानत की अर्जी लगायी थी। पुलिस ने उसके पास मिले दस्तावेजों की गंभीरता को देखते हुए सरकारी वकील के माध्यम से उसकी जमानत का विरोध किया था। कोर्ट ने आज उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी।
उल्लेखनीय है कि मेहरागांव निवासी प्रवीण तिवारी ने सूदखोर जितेन्द्र भट्ट की लगातार प्रताडऩा से तंग आकर 27 फरवरी 2019 को रेल से कटकर आत्महत्या कर ली थी। पुलिस ने मामले में अपराध दर्ज कर विवेचना में लिया था। जितेन्द्र पर आम्स एक्ट का भी प्रकरण पंजीबद्ध किया था। घटना के बाद से ही आरोपी पुलिस को चकमा दे रहा था।
दमोह जिले के ग्राम हर्रई में मिला
मामले की विवेचना एसआई पंकज वाडेकर कर रहे थे। आरोपी की गिरफ्तारी के लिए मुखबिरों को लगाया था। सूचना मिली कि वह दमोह जिले के तेंदूखेड़ा अंतर्गत ग्राम हर्रई में है तो पुलिस ने उसे वहां जाकर गिरफ्तार किया और इटारसी न्यायालय में पेश किया, कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया था। अभी वह जेल में ही है। आरोपी की ओर से कोर्ट में जमानत की अर्जी लगायी गयी थी। उसकी जमानत का सरकारी वकील भूरेसिंह भदौरिया ने विरोध किया। उनका तर्क रहा कि आरोपी कुख्यात सूदखोर है, पुलिस ने उसके पास से अनेक रजिस्ट्री, बैंक की पासबुक, चेकबुक जब्त की है। सरकारी वकील के तर्क से सहमत होते हुए न्यायाधीश संजय पांडे ने जितेन्द्र भट्ट की जमानत का आवेदन खारिज कर दिया।
हर्रई का है रहने वाला सूदखोर
सूदखोर जितेन्द्र भट्ट मूलत: दमोह के तेंदूखेड़ा स्थित हर्रई का रहने वाला है। वह करीब दस वर्ष पूर्व मेहरागांव आया था। यहां उसे कौन लाया, कैसे आया, इसकी उसने जानकारी नहीं दी। वह इतना शातिर है कि संपर्क में आये लोगों की जानकारी आरटीआई के माध्यम से जुटाता था और फिर जरा भी गलत लगने पर लोगों को ब्लेकमेल करता था। सूदखोरी के माध्यम से लोगों से काफी पैसा जमा कर लिया था। जानकारी मिली है कि उसने 11 माह में 8-10 लाख रुपए जमा कर लिये थे। उसने यहां जमीन खरीद ली और उसका यहां मकान भी बन रहा था। पता चला है कि वह लोगों को ब्लेकमेल करता और जो उसकी बात नहीं मानते थे उनके खिलाफ उसने झूठे मुकदमे भी पंजीबद्ध कराये हैं।
जगह बदल-बदलकर रहता था
सूदखोर मेहरागांव में जगह बदल-बदलकर रहता था। उसका यहां कोई नहीं है। उसके पास कई लोगों की रजिस्ट्री मिली है। एक रजिस्ट्री 2010 की है जिससे यह तो पता चलता है कि वह दस साल ये यहां रह रहा था। वह मेहरागांव में ही किराये के मकान में रहता था और उसने जल्दी-जल्दी कई बार मकान बदले हैं। इसके पीछे क्या मकसद रहा है, पुलिस उसकी भी जांच कर रही है। वर्तमान में वह जिस मकान में रहता था, वहां जब पुलिस पहुंची तो उसमें केवल एक चटाई के अलावा कोई अन्य सामान नहीं मिला है। इसके अलावा यहां मिले कई कागजातों से पता चला है कि वह तहसील आफिस में आईटीआई लगाकर जानकारी निकालता था और लोगों को उसके आधार पर ब्लेकमेल करता था।