इटारसी। भारत संचार निगम लिमिटेड के समस्त कर्मचारी तथा अधिकारी सोमवार से तीन दिनों की हड़ताल पर हैं। हड़ताली कर्मचारियों ने सोमवार को दोपहर में जोरदार नारेबाजी करते हुए धरना प्रदर्शन किया। हड़ताली अधिकारी-कर्मचारियों की आठ सूत्री मांग है जिसको लेकर तीन दिवसीय हड़ताल की जा रही है। पहले दिन कर्मचारियों ने धरना प्रारंभ कर अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी की।
देश की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड के अधिकारी और कर्मचारी ऑल यूनियन एंड एसोसिएशन ऑल बीएसएनएन के बैनर तले अपनी आठ सूत्री मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं। पहले दिन कर्मचारियों ने कंपनी के गांधीनगर स्थित दफ्तर का गेट बंद करके उसके सामने ही बैनर लगाकर धरना दे दिया है। संघर्ष की इस राह पर ये कर्मचारी सोमवार से धरने पर हैं और यह धरना 10 एवं 20 फरवरी को भी जारी रहेगा। इनकी प्रमुख मागें हैं कि बीएसएनएल मैनेजमेंट द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव के अनुसार कंपनी का 4-जी स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाए। संचार राज्यमंत्री के पेंशन रिवीजन को पेरिवीजन से पृथक करने के आश्वासन का क्रियान्वयन किया जाए। सरकारी की नियम के अनुसार बीएसएनएल द्वारा पेंशन कॉन्ट्रीव्यूशन का भुगतान हो। इसके अलावा चार अन्य मांगें हैं। संगठन के नेता आलोक रैकवार ने कहा कि सरकार निजी कंपनियों को तो 4-जी स्पेक्ट्रम दे रही है, जबकि बीएसएनएल को यह नहीं दिया जा रहा है। पेरिवीजन सहित अन्य आठ सूत्री मांगों को लेकर हम हड़ताल कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार की गलत नीतियों के कारण दूरसंचार क्षेत्र संकट में है। संगठन की अन्य मांगों में दूसरे पे रिवीजन कमेटी के शेष मुद्दों का निराकरण, बीएसएनएल की भूमि प्रबंधन नीति का वगैर देरी किए शीघ्र अनुमोदन, बीएसएनएल की स्थापना के समय ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स द्वारा लिए गए निर्णय अनुसार बीएसएनएल के वित्तीय जीवंतता सुनिश्चित करें, कंपनी के मोबाइल टॉवर का आउटसोर्सिंग के माध्यम से संचालन व रख-रखाव का प्रस्ताव रद्द किया जाए।
ये है संयुक्त बयान
बीएसएनएल यूनियनों के संयुक्त बयान के अनुसार सरकारी की गलत नीतियों की वजह से दूरसंचार क्षेत्र संकट में है। 4-जी सेवाओं से कंपनी को न केवल अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी बल्कि उपभोक्ताओं को उच्चकोटि की 4-जी सेवाओं का विकल्प उपलब्ध होगा। थर्ड पे रिवीजन का लाभ न दिए जाने से लाखों कार्यरत एवं सेवानिवृत्त कर्मचारियों का भविष्य अंधकार में हो गया है। जब भी देश में सुनामी, बाढ़ या उत्तराखंड जैसी त्रासदी आयी है, बीएसएनएल ने ही आगे बढ़कर संचार सेवाएं प्रदान की हैं, उस वक्त निजी कंपनियों कहां थीं। सरकार ने बीएसएनएल को संचार विभाग से अलग करते हुए वादा किया था कि उनके हितों की सुरक्षा की जाएगी परंतु सरकार अपने वादे से मुकर रही है, जिससे कर्मचारियों के वेतन, मेडिकल भत्ते एवं अन्य सुविधाओं पर असर पड़ रहा है। सरकार केवल जिओ कंपनी को फायदा पहुंचाने की दिशा में काम कर रही है।