20 वर्षों से उपेक्षित, आधी अधूरी सौगातों ने ओर पीछे किया
बनखेड़ी। लोकसभा चुनाव की बेला पर राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर बहस और तर्क वितर्क का दौर चला पर चुनाव दर चुनाव यदि क्षेत्र के विकास का आंकलन करें तो बनखेड़ी क्षेत्र अति पिछड़ेपन की चपेट से अब तक नही उबर सका है। रेल सुविधाओं से लेकर जल संकट की आहट और रोजगार से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़कें जैसे बुनियादी मुद्दे पिछले 20 वर्ष में गायब ही नहीं हुए बल्कि इन्हें हर बार नजरअंदाज किया जाता रहा है।
बनखेड़ी संसदीय क्षेत्र की बनखेड़ी तहसील विकास से कोसों दूर खड़ी हैं जो सौगातें लंबे इंतजार के बाद मिली वे आधी अधूरी होकर ठहर गई जिनके चलते मूलभूत सुविधाओं में से कुछ ऐसी भी है जो लगभग 20 वर्ष पहले भी मुद्दा थीं और आज भी मुद्दा है। क्षेत्र का दायरा भी बढ़ा और जरूरतें भी पर क्षेत्र की नजरंदाजगी बदस्तूर जारी रही। 130 गांव का तहसील मुख्यालय जिसे 20 वर्ष से भी पहले तहसील का दर्जा तो मिला पर तहसील स्तर की दर्जनों जरूरतों के लिए आज तक इंतजार करना पड़ रहा है। बात स्वास्थ्य सुविधाओं की करें या शिक्षा की या आवागमन की तो बनखेड़ी समीपस्थ नगरों के विकास की चकाचौंध में आर्थिक मददगार होते हुए भी क्षेत्र के रूप में उन्ही पर निर्भर रहा है। इस दौरान राजनीतिक बड़े चेहरे इस क्षेत्र में राजनीतिक लाभ लेने कामयाब रहें पर उनके कद का क्षेत्र न तो लाभ उठा सका न ही ऐसी बड़ी उपलब्धि मिली जिसे क्षेत्र के विकास में योगदान के तौर पर याद रखा जा सकें।
आधी अधूरी सौगातें
दर्जनों ऐसी सौगातें जिनका बकायदा राजनीतिक श्रेय लिया गया पर हकीकत में आधे अधूरे विकास में क्षेत्र अब तक आत्मनिर्भर नही हो सका जबकि बीते कुछ वर्षों में एक मात्र ट्रेन स्टॉपेज और नगर परिषद का दर्जा सतत आंदोलनों के जरिये मिला। आनन फानन में नगर परिषद का बेतरकीब सीमांकन भी अपना असर दिखाने लगा है। लंबे संघर्ष के बाद ट्रेन स्टॉपेज की सौगात का जश्न ही मनाया था कि शटल ट्रेन जिसे एक्सप्रेस बनाकर चलाया गया पर बनखेड़ी से स्टॉपेज छीन लिया गया जिसका नतीजा यह हुआ कि रोजमर्रा के लिए आम आदमी की शटल का लाभ बनखेड़ी के हिस्से नहीं आया। अमरावती ट्रेन स्टॉपेज का श्रेय सांसद सांसद राव उदय प्रताप को मिला तो शटल ट्रेन न रूकवा पाने का रोष भी लोगों में देखा गया। उमरधा रोड के शिलान्यास कर भाजपा ने जो सपने दिखाए थे 20 किमी के रोड निर्माण ठप्प होने से लगभग आधा क्षेत्र रोड के चलते पिछड़ गया जिसका शेष निर्माण भी जहां के तहां थम गया। दुधी नदी पर 15 सौ करोड़ की डीपीआर बनी पर वह फाइल भी सत्ता परिवर्तन की चपेट में भेंट चढ़ती नजर आती है। शासकीय कॉलेज की बहुप्रतीक्षित सौगात का लाभ क्षेत्र को मिल पाता पर पांच वर्षों में अब तक स्थायी स्टॉफ न मिलने से न संकाय बड़े न ही निर्भरता हालांकि करोडों की कॉलेज बिल्डिंग निर्माणाधीन है। खेल मैदानों में इंडोर स्टेडियम का कागजी जिक्र बार बार हुआ पर केंद्रीय मॉडल स्कूलों को राज्य सरकार के अधीन होते ही शिक्षा और खेल से जुड़ी सौगाते भी कागजों में दफन हो गए।
इन मांगों पर सियासी चुप्पी
बीते 20 वर्षों में कई चुनाव हुए जिनमें राष्ट्रीय मुद्दों पर तो कभी प्रदेश की बेहतरी का लगातार जिक्र हुआ और उपेक्षित रह गया क्षेत्र बनखेड़ी में हॉस्पिटल बड़ा हो गया पर एक महिला विशेषज्ञ डॉक्टर सहित एक्सरे मशीन अब भी सपना देखने जेंसा है। सिविल कोर्ट हो या रेलवे स्टेशन पर व्याप्त भारी असुविधाएं लगातार आम जनमानस को पिछड़े क्षेत्र का अहसास कराती रहीं हैं। सरकारें बदली जनप्रतिनिधि अजेय रहें बावजूद उन्हें क्षेत्र लगातार सहयोग करता रहा इस उम्मीद पर की बनखेड़ी क्षेत्र भी विकसित किया जा सकता है पर राजनीतिक इक्छा शक्ति में कमी के चलते क्षेत्र का राजनीतिक उपयोग हुआ न कि लाभ मिल सका।