दस्यु सरगना मोहर सिंह से एक मुलाकात

दस्यु सरगना मोहर सिंह से एक मुलाकात

– पंकज पटेरिया होशंगाबाद

पूजा-पाठ, प्रार्थना, रामायण, भजन, गाने भी मंडली में चलते थे।आत्म समर्पित दस्यु मोहर सिंह का निधन हो गया। वे करीब 93 बरस के थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ लोक नायक जय प्रकाश नारायण जी की पहल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के चित्र के समक्ष बंदूक रख कर आत्म समर्पण किया था। इसके बाद 1973 में गुना जिले में निर्मित खुली जेल में मोहर सिंह सहित उनके कुछ साथियों को रखा गया था। मैं उन दिनों दैनिक भास्कर का होशंगाबाद संवाददाता था। साथ ही फ्री लांसर के रूप में देश की अन्य पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी लिखता रहता था। कोलकता की एक मैगज़ीन से मुगावली खुली जेल जाकर इन दस्युओं से इंटरव्यू लेकर रिपोर्ट भेजने का आफर मिला। इस ऑफर से मैं खुशी से नाच उठा और अपने एक अनुज मित्र अवधेश श्रीवास्तव को लेकर ट्रेन से डाकुओं से मुलकात करने चल पड़ा। मन में डर था, पता नहीं क्या प्रतिक्रिया मिले? लेकिन उत्साह भी कम नहीं था।
बहरहाल होशंगाबाद से हम बीना पहुंचे और उधर से दूसरी ट्रेन से दोपहर 2-3 बजे अशोक नगर पहुंचे। एक स्वमित्र आरके शर्मा का पत्र लेकर लॉज मालिक उनके मामा से मिले। कुछ जानकारी मिली फिर मुझे पता लगा कि अग्नि नर्तक भाई राजेन्द्र जैन पास में जैन मन्दिर में रहते हैं। धधकते अंगरों पर वे नंगे पैर अद्भुत नृत्य करते थे। हम उनसे मिले चर्चा की। एक बड़ी जानकारी या मसाला और मिल गया था। अब हम रेल पटरियों की बाजू की पगडंडी से मुगावली खुली जेल की ओर निकल पड़े। 3-4 किलो दूर ही थी, मगर बरसाती जूते काटने लगे तो जूते हाथ में लेकर लंगड़ाते, कष्ट उठाते पहुंचे। सामने जेल का बोर्ड देख सारी पीड़ा भूल गये। खुला अहाता, खाटें पड़ी थीं। उनमें एक पर दस्यु मुखिया मोहरसिंह लुंगी पहने लेटे थे। कुछ साथी इधर-उधर बैठे थे। सामने बैरक बने थे। सब तरफ खुला वातावरण था। हमने अपना परिचय दिया पत्रकार हंै। आपसे मुलाकात करने आए हैं। बीहड़ छोड़ यहां कैसा लग रहा? ठहाका लगा कर मोहरसिंह बोले पड़े रहत, अच्छा ही लगत है। बहुत सारे अन्य सवालों के जवाब। वे बोले अब जे बातें बोहत हो गई। का, का जुर्म को, सरेंडर कर दओ, इते आ गए। बहरहाल दस्यु जीवन के पीछे की वजह शोषण, अत्याचार, रहे हैं, और अच्छे खासे बन्दूक उठाकर बागी बने और गोली बोली। बोले खुली जेल की इनकी दिनचर्या स्व अनुशासित देख भला लगा। पूजा-पाठ, प्रार्थना, रामायण, भजन, कभी गाने भी इनकी मंडली में चलते थे। समर्पन की बात चलते मोहर सिंह ने लोक नायक जय प्रकाश नारायण जी की बहुत सम्मान से याद की और कहा वो बाबूजी नेई जिंदगी तार दई ने तो जा ने कब लो भगत रेते। बोले, अच्छे घर के लगत हो कौन बिरादरी से हो? मैने सहज कहा ब्राह्मण हूं। मोहर सिंह उठकर बैठ गए। पूछा रामायन जी पड़त हो, मैने कहा जी। अरे बा कोई भजन आवै तो सुनाओ। मैंने श्री हरि ओम शरणं का साई तेरी याद महासुख दाई भजन सुनाया। वे बहुत खुश हुए दो चार और बागी भी बैठकर सुन रहे थे। सबने ताली बजाई। सबने प्रेम-प्यार से बातें कीं। हमें भजिए, जलेबी बाजार बुलाकर खिलाये, चाय पिलाई और जयराम जी कर विदा ली। आगे बैरक में माधोसिंह से मिलने पहुंचे। वे बाजार गए थे, कुछ देर में आ गये। उन्हें पूजा करनी थी, लिहाजा बात करने में रुचि नहीं ली।
शाम ढल रही थी। लिहाजा पुन: पैदल चलते स्टेशन आठ बजे आने वाली गाड़ी पैसेंजर सात घंटे लेट थी। पेपर बिछाकर मुसाफिर खाने में लेटकर भयंकर जाड़े की रात ठिठुरकर बितायी। 3-30 बजे गाड़ी आई, बीना आए फिर गाड़ी बदली। 8-9 बजे होशंगाबाद वापसी। घर पहुंच कर सुकून मिला। जीजाजी आदरनीय मिश्रा जी बोले थक गए। कैसी रहीं यात्रा? प्यारी बहन स्व अरुणा मिश्रा जिन्हें मैं बाई बोलता था दौड़ते आई, आ गये भैया? बहुत चिंता लगी थी। दादा जी की धूनी हो आओ। खाना खा लो, आंखे गीली हो गई दोनों की। बाई के हाथों की गरम-गरम पुडी, आलू की सब्जी, बेसन खाई सारी थकान भूल कर सो गया।

Pankaj Payeriya

 

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं)

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AUTHORRohit

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