रानी दुर्गावती बलिदान दिवस 2022 : क्‍यो मनाया जाता हैं जाने इतिहास…

Post by: Aakash Katare

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रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

जाने गोंडवाना राज्य की शासिका रानी दुर्गावती बलिदान दिवस 24 जून को क्‍यो मनाया जाता हैं सम्‍पूर्ण जानकारी…

रानी दुर्गावती जीवन परिचय (Rani Durgavati Biography)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस
क्र.बिंदु परिचय
1नामरानी दुर्गावती
2जन्म तिथि5 अक्टूबर 1524
3जन्म स्थानकालिंजर किला (बाँदा, उत्तर प्रदेश)
4पिता का नामकीरत राय
5पति का नामदलपत शाह
6संतान का नामवीर नारायण
7धर्महिन्दू
8प्रसिद्धीगोंडवाना राज्य की शासिका
9विशेष योगदानइन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं और  धर्मशालाएं बनवाई
10मृत्यु तिथि 24 जून 1564
11मृत्यु स्थानमहाराष्ट्र

रानी दुर्गावती का शुरूआती जीवन (Early life of Rani Durgavati)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजवंश के कालिंजर किला, बाँदा उत्तर प्रदेश में हुआ था। रानी दुर्गावती का जन्म दुर्गाष्टमी के दिन हआ था इसलिए इनका नाम दुर्गावती रखा गया। रानी दुर्गावती को बचपन से ही तीरंदाजी, तलवारबाजी, घुड़सवारी और बन्दूक चलाने का अच्छा खासा अभ्यास था। यह बचपन से ही शेर, चीते का शिकार किया करती थी।

इन्हें वीरतापूर्ण और साहस से भरी कहानी सुनने और पढ़ने का भी बहुत शौक था। इनके पिता उन भारतीय शासकों में से एक थे। जिन्होंने महमूद गजनी को युद्ध में खदेड़ा था। रानी अपने पिता के साथ ज्यादा वक्त गुजारती थी जिससे उन्‍होंने अपने पिता से राज्य के कार्य भी सीख लिए थे।

रानी दुर्गावती का विवाह (Marriage of queen durgavati)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती के विवाह योग्य होने के बाद उनके पिता ने विवाह के लिए राजपूत परिवार मे योग्‍य वर की तलाश शुरू कर दी। परंतु रानी दुर्गावती दलपत शाह की वीरता और साहस से बहुत प्रभावित थी इसलिए उन्हीं से शादी करना चाहती थी। किन्तु गोंढ जाति के होने के कारण रानी दुर्गावती के पिता को यह स्वीकार नही था।

दलपत शाह के पिता संग्राम शाह थे। जो गढ़ामंडला के शासक थे। संग्राम शाह रानी दुर्गावती की प्रसिद्धी से प्रभावित होकर उन्हें अपनी बहु बनाना चाहते थे। और रानी दुर्गावती के पिता के ना मानने पर उन्‍होंने कालिंजर में युद्ध कर रानी दुर्गावती के पिता को हरा दिया। और सन् 1542 रानी दुर्गावती का विवाह दलपत शाह से करा दिया।

कैसे बनी रानी दुर्गावती शासिका (How Rani Durgavati Became The Ruler)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती और दलपत शाह की शादी के बाद गोंढ ने बुंदेलखंड के चंदेल राज्य के साथ गठबंधन कर लिया। जिसके कारण शेरशाह सूरी ने सन् 1545 को कालिंजर पर हमला कर दिया। शेरशाह बहुत ताकतवर था। मध्य भारत के राज्यों के गठबंधन होने के बावजूद भी वह अपने प्रयासों में सफल हुआ।

लेकिन एक आकस्मिक बारूद विस्फोट में उसकी मृत्यु हो गई। उसी वर्ष रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। इसके बाद सन् 1550 में राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई। तब वीर नारायण सिर्फ 5 वर्ष के थे। रानी दुर्गावती ने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर खुद राज्य की शासक बन गई थी।

रानी दुर्गावती का शासनकाल (Queen Durgavati’s reign)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती के गोंडवाना राज्य की शासिका बनते ही उन्होंने अपनी राजधानी  दमोह जिले के सिंग्रामपुर मे स्थित, सिंगौरगढ़ किले को नरसिंहपुर जिलें के गाडरवारा में स्थित, चौरागढ़ किला में स्थानांतरित कर दिया। उन्होंने अपने राज्य को जंगलों और नालों के बीच स्थित कर एक सुरक्षित जगह बना ली। और अच्छी सेना को बनाने में सफल हो गयी। जिसके कारण उनके राज्य की शक्ल ही बदल गई उन्होंने अपने राज्य में कई मंदिरों, भवनों और धर्मशालाओं का निर्माण करा कर एक सम्पन्न राज्‍य बनाया।

रानी दुर्गावती और सुजात खान की लड़ाई (Battle of Rani Durgavati and Sujat Khan)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद सन् 1556 में सुजात खान ने मालवा को अपने आधीन कर लिया। क्‍योकि शेरशाह सूरी का बेटा बाज़बहादुर कला का एक महान संरक्षक था और उसने अपने राज्य पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।  उसके बाद सुजात खान ने रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला यह सोच कर कर दिया की वह एक महिला हैं और उसका राज्य आसानी से छीना जा सकता हैं। पर रानी दुर्गावती युद्ध जीत गई और युद्ध जितने के बाद उन्हें देशवासियों द्वारा सम्मानित किया गया।

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रानी दुर्गावती और अकबर की लडाई (Battle of Rani Durgavati And Akbar)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

सन् 1562 में अकबर ने मालवा पर आक्रमण कर मालवा के सुल्तान बाजबहादुर को परास्त कर मालवा पर राज्‍य जमा लिया। जिससे मुग़ल साम्राज्य की सीमा रानी दुर्गावती के राज्य की सीमाओं को छूने लगी थी। वही दूसरी तरफ अकबर के आदेश पर उसके सेनापति अब्दुल माजिद खान ने रीवा राज्य पर भी अपना अधिकार जमा लिया।

अकबर अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाना चाहता था। तभी उसने गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बना कर रानी दुर्गावती को सन्देश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को मुग़ल दरवार में भेज दे। तभी रानी दुर्गावती ने अकबर की बात मानने से साफ मना कर दिया और यह जानते हुऐ भी की उनकी सेना अकबर की सेना के आगे बहुत छोटी हैं और अपनी सेना को युद्ध की करने का आदेश दें दिया।

यह सुनकर अकबर ने भी अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना राज्‍य पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जैसे ही मुग़ल सेना ने घाटी में प्रवेश किया रानी के सैनिकों ने उस पर धावा बोल दिया। लडाई में रानी की सेना के  फौजदार अर्जुन सिंह मारे गये अब रानी ने स्वयं ही पुरुष वेश धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया दोनों तरफ से सेनाओं को काफी नुकसान हुआ और शाम होते ही रानी की सेना ने मुग़ल सेना को घाटी से खदेड़ दिया और इस दिन की लड़ाई में रानी दुर्गावती की विजय हुई। इसी तहर से रानी दुर्गावती ने मुगल सेना को 3 बार हराया।

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस (Rani Durgavati Sacrifice Day)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

भारतीय इतिहास मे गिनी जाने वाली गढ़मंडला की वीर तेजस्वी रानी दुर्गावती का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। उनके पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने अपने राज्य को बहुत ही अच्छे से संभाला और मुगल शासक अकबर के आगे कभी भी घुटने नहीं टेके।

इस वीर महिला योद्धा ने तीन बार मुगल सेना को हराया और अपने अंतिम समय में मुगलों के सामने घुटने टेकने के जगह इन्होंने अपनी कटार से अपनी हत्या कर ली। उनके इस वीर बलिदान के कारण ही लोग उनका सम्मान करने के लिय प्रतिवर्ष 24 जून को रानी दुर्गावती बलिदान दिवस बनाते हैं।

रानी दुर्गावती के बलिदान के बाद उनका राज्य (Her kingdom After The Sacrifice of Rani Durgavati)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती के बलिदान के बाद कुंवर वीर नारायण चौरागढ़ में मुगलों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। सम्पूर्ण गोंडवाना पर मुगलों का अधिपत्य हो गया था। कुछ समय पश्चात राजा संग्राम शाह के छोटे पुत्र (रानी दुर्गावती के देवर) और चांदा गढ़ के राजा चन्द्र शाह को अकबर ने अपने अधीन गोंडवाना का राजा घोषित किया और बदले में अकबर ने गोंडवाना के 10 गढ़ लिये।

रानी दुर्गावती की समाधि (Queen Durgavati’s Samadhi) 

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर और मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास नारिया नाला वह स्थान हैं। जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थीं। इसी स्थान के पास बरेला में रानी दुर्गावती का समाधि स्थल हैं। प्रतिवर्ष 24 जून को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लोग इस स्थान पर उन्हें श्रध्दा सुमन अर्पित करते हैं।

रानी दुर्गावती का सम्मान (Honor Of Queen Durgavati)

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस
  • रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया।
  • भारत शासन द्वारा 24 जून 1988 रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर एक डाक टिकट जारी कर रानी दुर्गावती को याद किया।
  • जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया।
  • मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया हैं।
  • इसी प्रकार कई जिलों में रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं लगाई गई हैं और कई शासकीय इमारतों का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया हैं।

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