“रात्रिकालीन चिकित्सा सेवा” हो शहर में
महोदय, मुंबई में अब चौबीस घण्टे खुले रहेंगे मॉल और रेस्टोरेंट। नई सरकार आने के बाद ये परिवर्तन हुआ है। इससे आप सहमत भी हो सकते हैं और असहमत भी। ‘ परिवर्तन ‘ तो मध्य प्रदेश में भी हुआ है। ” शुद्धता ” के लिये ‘ युद्ध ‘ जारी है। सरकार मिलावटखोरों के खिलाफ जोरशोर से मुहिम चला रही है। परिणाम चाहे जो भी हों। भू माफिया सहमे हुए हैं। उनके खिलाफ कार्यवाही को विपक्ष बदले की भावना से प्रेरित बता रहा है क्योंकि उसका काम विरोध भर करना है। फिर विपक्ष के पास कोई और तर्क है भी नहीं।
खैर, इधर पूरे प्रदेश में कड़कड़ाती ठंड में भी अतिक्रमण के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है। कोई भी सरकार आते ही से मौसम की परवाह किये बिना गरीबों के आशियाने उजाड़ देती है। भोपाल में कुछ लोगों को तो घर से सामान तक निकालने का भी मौका नहीं दिया गया। रोता बिलखता आम आदमी फिर प्रशासन की बेरहमी, निर्दयता, निर्ममता का शिकार हो गया। क्यों हम इतने अमानवीय और असंवेदनशील हो जाते हैं ? इस पूरी प्रक्रिया में नेताओं से लेकर अधिकारियों तक किसी का भी हृदय नहीं पिघलता। अब देर से ही सही सरकार की नज़र चिकित्सा से जुड़े हुए ” धंधों ” पर भी पड़ी है जबकि प्राथमिकता के आधार पर सबसे पहले सरकार को इस ओर ही ध्यान देना था क्योंकि ये ‘ जीवन ‘ और ” मृत्यु ” से जुड़ा हुआ मुद्दा है।
चलिये वो सब छोड़िये इस सबसे हटकर मेरी और आपकी चिंता इटारसी के संदर्भ में है जहां ‘ रात्रिकालीन चिकित्सा सेवायें ‘ उपलब्ध हैं ही नहीं। 9 बजे के बाद अगर किसी को भी हार्ट अटैक आ जाता है तो उसके लिये किसी भी डॉक्टर या क्लीनिक के दरवाजे नहीं खुलते। सुबह भी कमोबेश यही स्थिति होती है। कई बार लोग इस डॉक्टर से उस डॉक्टर के पास मरीज को लेकर भागदौड़ करते रह जाते हैं और मरीज ऑटो में ही दम तोड़ देता है। कुछ मरीज होशंगाबाद या भोपाल भी नहीं पहुंच पाते और रास्ते में ही उनकी सांसें टूट जाती हैं। ये स्थिति बहुत दुखद होती है। मरीज के परिजन जीवन भर इस आत्मग्लानि या अपराध बोध से पीड़ित रहते हैं कि वे किसी “अपने” को बचा नहीं पाए । यहां ये उल्लेखनीय है कि पिछले दो सालों में चिकित्सा के अभाव में हमने कितने ही ‘अपनों ‘ को खो दिया। इसलिये पक्ष और विपक्ष दोनों ही के जनप्रतिनिधियों से फिलहाल मेरी यही गुजारिश है कि इटारसी के निजी चिकित्सालयों में “रात्रिकालीन चिकित्सा सेवाओं” के लिये पुरजोर प्रयास किये जायें। अन्यथा हम इसी तरह ‘अपनों ‘ को खोते रहेंगे क्योंकि शासकीय चिकित्सालय में भी न तो पर्याप्त संख्या में डॉक्टर हैं और न ही कोई रोग विशेषज्ञ हैं।
– विनोद कुशवाहा