काली के सबसे विकराल रूप की होती है आठ दशकों से पूजा-आराधना

काली के सबसे विकराल रूप की होती है आठ दशकों से पूजा-आराधना

भूपेंद्र विश्वकर्मा की विशेष रिपोर्ट आज नवरात्रि के पंचम दिवस पर हम आपको अपनी विशेष रिपोर्ट में शहर की उस देवी के दर्शन कराएंगे जिसे उसके भक्त सिर्फ उसके संहारक रूप में ही पसंद करते है। जिस समिति द्वारा यह प्रतिमा स्थापित की जाती है वह इतनी पुरानी है कि तब हमारा शहर भी पूरी तरह नहीं बसा था।
आज हम आपको पुरानी इटारसी की देवल मंदिर काली समिति द्वारा स्थापित की जाने वाली विशालकाय माँ काली की प्रतिमा की शुरूआत से लेकर आज तक की सफर की जानकारी देंगे।

पुराने शहर में मां काली का इतिहास
समिति के वर्तमान संरक्षक जयप्रकाश पटेल से हुई विस्तृत बातचीत में उन्होंने बताया कि देवल मंदिर और समिति की स्थापना कब और कैसे हुई है यह तो शहर में कोई नहीं बता सकता और न ही कही अभिलिखित है। परंतु सारे पुरानी इटारसी क्षेत्र के लगभग 300 परिवारों की तीसरी पीढ़ी समिति में शामिल है, जिनके पूर्वज प्रारंभिक वर्षों से ही समिति के सदस्य के रूप में अपना योगदान देते आ रहे है। समिति और मंदिर तब से है जब इस क्षेत्र के इटारसी अर्थात् नयी इटारसी का कोई अस्तित्व ही नहीं था। शहर के जिस क्षेत्र को सभी पुरानी इटारसी के नाम से जानते है। पहले वही मुख्य इटारसी थी और उसी समय से काली समिति यहां माँ काली की स्थापना, आराधना करती आ रही है।
काली समिति द्वारा मूर्ति स्थापना का सही प्रारंभिक वर्ष तो किसी को भी विदित नहीं परन्तु अंग्रेजो के ज़माने से ही लगभग सन् 1937 में यहां मूर्ति प्रथम बार स्थापित की गयी थी, ऐसा वर्षों पहले छपी देवल मंदिर काली समिति की एक पुस्तक में लिखा है। हालांकि समिति के वरिष्ठ सदस्य इस बात को भी मानते है कि यह प्रतिमा उससे पहले भी कई वर्षों से लगातार विराजित होती चली आ रही है।
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भगवान राम समिति के अध्यक्ष और हनुमान जी हैं उपाध्यक्ष
देवल मंदिर काली समिति का इतिहास उस समय का है जब इटारसी नाम से जाने वाले हमारे शहर में ईंट और रस्सी बनाने का कार्य देवल मंदिर के पास ही किया जाता था, जिससे शहर का नाम इटारसी पड़ा था। समिति के एक वरिष्ठ सदस्य से जब हमने समिति के पदों पर बैठे व्यक्तियों के बारे में जानना चाहा तो पता चला की समिति में शुरुआत से ही कोई अध्यक्ष, उपाध्यक्ष नहीं है। बल्कि लगभग तीन सौ से ज्यादा सदस्य समिति में प्रारंभिक वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे है और तन मन धन से माँ की सेवा करते आ रहे है। सिर्फ ये तीन सौ सदस्य ही नहीं अपितु इन सभी के परिवार भी माँ काली की भक्ति में कोई कसर नहीं छोड़ते। वही एक अन्य वरिष्ठ ने इसी प्रश्न का एक रोचक जबाब देते हुए कहा कि यहां भगवान राम समिति के अध्यक्ष है जो माँ काली के अनन्य भक्त है। हनुमान जी समिति के उपाध्यक्ष है जो अपने अध्यक्ष स्वामी और माँ की भक्ति में अपना सर्वस्व देकर पूर्ण सहयोग देते है। समिति में शामिल सदस्यों की बात करें तो समिति में आधे से ज्यादा सदस्य वरिष्ठजन है जो माँ काली के उनके पूर्वजों के समय से ही सेवा करते चले आ रहे है। वहीं इन सभी के उत्तराधिकारी भी समिति में सक्रिय सदस्य है तथा वे भी अपने पूर्ण जोश से माँ की आराधना करते है।
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शहर की सबसे बड़ी प्रतिमा
वर्तमान में माँ काली की प्रतिमा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थापित की जाती है परन्तु प्रारंभिक समय में मूर्ति की स्थापना देवल मंदिर में ही की जाती थी। वहीं आज शहर की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित करने वाली काली समिति शुरुआती समय में अभी से आधी ऊंचाई की प्रतिमा की स्थापना करती थी। परंतु बीच के वर्षों में जब पहली पीढ़ी को अलविदा कहकर, दूसरी पीढ़ी ने समिति का कार्यभार संभाला था तब उन्होंने प्रतिमा को भव्य रूप में स्थापित करना शुरू किया। इस तरह शहर ही नहीं जिले की सबसे बड़ी और प्रदेश की सबसे विशाल प्रतिमाओं में यहां विराजित होने वाली माँ काली का जिक्र होने लगा।

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काली समिति के संरक्षक श्री पटेल ने बताया कि प्रारंभिक वर्षों में समिति से जुड़े सभी सदस्य मात्र एक एक रुपए का चंदा देते थे जो उस समय में आज के एक हजार रुपए की योग्यता रखता था। उस समय शहर में सिर्फ एक विशेष क्षेत्र नहीं अपितु पूरा शहर ही नवरात्रि में माँ काली की भक्ति में डूबा रहता था। प्रारंभिक वर्षों में जब मूर्ति की स्थापना होती थी तो नवरात्रि के लगातार नौ दिन ही माँ काली के पंडाल के सामने एक सामान भीड़ रहती थी जो सुबह शाम आरती और भजन पूजन में शामिल होने आती थी। वर्तमान में देवल मंदिर काली समिति जिले की सबसे विशाल जनसमूह की समिति है। साथ ही यहां विराजित होने वाली प्रतिमा जिले में सबसे विशालकाय और माँ काली के साक्षात् संहारक रूप का परिचायक होती है।

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वो सत्य और रोचक बातें जो आपको जानना जरूरी है

•यहां विराजित होने वाली माँ काली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिस भव्य और साक्षात संहारक स्वरुप में माँ काली की प्रतिमा यहां विराजती है जिले भर में ऐसी प्रतिमा कही नहीं विराजती।

•यहां विराजने वाली माँ काली की प्रतिमा प्रारंभिक वर्ष से ही मुन्ना पेंटर के परिवार द्वारा ही बनायी जाती है। सबसे पहले रामप्रसाद कुम्हार द्वारा ही यहां विराजने वाली माँ की मूर्ति की निर्माण किया जाता था। आज भी उन्ही के वंशज मुन्ना पेंटर माँ काली की प्रतिमा को बनाते है।

•जिले भर में कोई ऐसी समिति नहीं है जिसमें की तीन सौ सदस्य परिवार सहित मूर्तिस्थापना में सहयोग करते हों। यह केवल आज से नहीं अपितु पिछले लगभग आठ दशकों से होता चला आ रहा है।

•देवल मंदिर समिति द्वारा ही लगभग तैंतीस वर्ष पूर्व शहर में रामविवाह के अंतर्गत सामूहिक विवाह के आयोजन की शुरुआत की गयी। वर्तमान में इटारसी के अलावा सिर्फ रामजन्म भूमि अयोध्या में ही रामविवाह महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

•शहर में नवरात्रि के अंतर्गत विराजित होने वाली सबसे पुरानी प्रतिमा यहीं माँ काली की है। समिति सदस्यों के अनुसार जिस समय शहर में माँ काली की स्थापना की शुरुआत हुई। उस समय शहर में शायद ही कोई अन्य प्रतिमा स्थापित की जाती हो।

इस वर्ष का आकर्षण
काली समिति द्वारा हर वर्ष नवरात्री के पंचम दिवस पर माँ काली का विशेष श्रृंगार किया जाता है। आज भी समिति ने श्रृंगार करके माँ को एक अनोखी आकर्षकता प्रदान की है। साथ ही नवरात्रि में नवमी के दिन समिति के द्वारा विशाल भण्डारे-प्रसादी का आयोजन भी किया जायेगा।

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