नर्मदांचल के वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रो. आरएन घोष नहीं रहे

होशंगाबाद। देश-विदेश में शिक्षा के क्षेत्र में एक नई अलख जगाने वाले नर्मदांचल के वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ रविन्द्र नाथ घोष का गुरूवार को सुबह के समय निधन हो गया। वे करीब 90 वर्ष के थे। नर्मदा तट के हर्बल पार्क घाट पर उनके भतीजों ने मुखाग्नि दी। उन्होंने भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। शव यात्रा में सैंकड़ों लोग शामिल हुए।
विद्यार्थियों को अंग्रेजी सीखने में होने वाली कठिनाईयों के जड़ तक पहुंचने की ओर कदम बढ़ाने वाले डॉ घोष ने कई महत्वपूर्ण फोरम जैसे एसआईएलटी, एनसीआरटी, बीएसई और यूजीसी के लिए प्रारूप व नियमावली निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाई है। वे अंग्रेजी के विद्वान रहे लेकिन हिन्दी के पक्षधर रहे हैं। डॉ घोष ने पूर्व मंत्री मधुकर राव हरणे को भी पढ़ाया था। धीर-गंभीर और सौम्य प्रकृति के व्यक्तित्व, सहज सरल और मृदुभाषी डॉ घोष धीमी आवाज में ही बात करते थे और दूसरों से भी यही अपेक्षा रखते थे। उनका बचपन का नाम गोपाल था। उन्होंने इंग्लैंड में पढ़ाई करने के बाद भी सादा जीवन उच्च विचार को ही अपनाया। उन्होंने अमेरिका के मिसिगन विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में पीएचडी की थी। इसके बाद भी गीता और हनुमान चालीसा सदैव उनके सिरहाने रखे रहे। पुस्तकों के बहुत शौकीन होने के कारण उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी लायब्रेरी बनाई।
कई देशों में दिए वक्तव्य
वे अनेक देशों में भ्रमण करते रहे हैं। जिनमें यूके, यूएसए,कनाड़ा, हांगकांग जैसे देशों का अतिथि वक्ता के बतौर वर्ष 1957 से 1958 में भेजे गए। इसके अतिरिक्त अन्य देशों में भी उन्होंने भ्रमण किया है। डॉ घोष यूजीसी पैनल के सदस्य रहे हैं। यहां तक कि वर्ष 1979 से 1983 तक यूजीसी के अंग्रेजी पैनल के अध्यक्ष भी रहे हैं। यहां तक कि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिश एवं फारेन लेंग्वेज में विभिन्न अध्ययनों के समन्वयक डीन अंग्रेजी विषय के विभाग में सीआईईएफएल बुलेटिन के संपादक एकेडमिक काउंसिल और सीआईएपफएल सोसायटी तथा बोर्ड आफ गवर्मेंट के सदस्य भी रहे हैं। केंद्र सरकार ने उन्हें सचिव पद के लिए आफर दिया था जिसे उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया था। इसी प्रकार सेवानिवत्ति के समय व्हाइस चांसलर बनाया जा रहा था, उक्त पद को भी उन्होंने अस्वीकार कर दिया था।

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