अभिनेता से पहले इंसान हूँ : फिल्म अभिनेता मुकेश तिवारी

सुनील सोन्हिया भोपाल द्वारा विशेष साक्षात्कार
मध्य प्रदेश के सागर में जन्मे मुकेश तिवारी ने चाइना गेट, रिफ्यूजी, आप मुझे अच्छे लगने लगे, गंगाजल, दिलवाले, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह, अपहरण, गोलमाल, गोलमाल रिटर्न ,गोलमाल 3, गैंग्स ऑफ वासेपुर, टाइगर ,खिलाड़ी 786 चेन्नई एक्सप्रेस, फटा पोस्टर निकला हीरो, बॉस, मंगल पांडे जैसी लगभग 180 फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा है। चाहे कॉमेडी हो, सीरियस हो या विलेन सभी भूमिकाओं में अपनी अलग छाप छोड़ी है।
एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में भोपाल आए मुकेश तिवारी से हमारे विशेष प्रतिनिधि सुनील सोन्हिया ने विशेष चर्चा की
बॉलीवुड की अभिनय यात्रा में आप अपने आप को कहां पाते हैं ?
बॉलीवुड में अलग-अलग स्तर पर मूल्यांकन होता है। पेज 3 की बात करें तो मैं कहीं भी रैंकिंग में नहीं हूं। अभिनय की बात करें तो मुझे निष्ठावान अभिनेता कहा जाता है। मेरी अभिनय के प्रति प्रतिबद्धता के कारण मुझे बार बार वहीं निर्देशक फिल्मों में ले लेते हैं जिनके साथ मैंने एक दिन भी काम किया हो।

भारतीय फिल्मों को समाज का दर्पण कहा जाता है, इसमें कितनी सच्चाई है?
यह सही है कि हमारी फिल्में समाज की सच्ची तस्वीरें पेश करती हैं। भारत में हर धर्म और जाति के लोग रहते हैं। यहां हर एक शख्सियत की अपनी एक अलग कहानी है। फिल्म बनाने के लिए समाज के किसी भी हिस्से की, किसी भी शख्स की, कहानी उठाओ और लीजिए फिल्म तैयार।

लोगों को हंसाना जैसे मुश्किल काम को इतनी सहजता से कैसे कर लेते हैं?
लोगों के लिए हंसना कोई बड़ी बात नहीं है, पर लोगों को हंसाना एक एक्टर के लिए बहुत बड़ा चैलेंजिंग काम है। मैं जब इस तरह का रोल करता हूं तो मैं एक निश्चल बच्चे की तरह बन जाता हूं और वही अभिनय लोगों को पसंद आ रहा है।

आज तक कि आपकी ऐसी कोई फिल्म जो आपके दिल को छू गई हो ?
यह तो वही बात हुई सुनील दादा, अपने बच्चों में से कोई एक बच्चे को सर्वश्रेष्ठ कहे। मेरे लिए तो सभी बराबर है। अच्छी या बुरी फिल्म कोई हो ही नहीं सकती। सभी लोग ईमानदारी से काम करते हैं यह सही है। कोई सफल होती है और कोई असफल।

नवोदित कलाकार के बॉडी फिटनेस के बारे में आपके क्या विचार हैं?
मैंने सन 2002 में ऋतिक रोशन के साथ एक फिल्म आप मुझे अच्छे लगने लगे की। उस दौरान देखा बॉडी फिटनेस को लेकर ऋतिक इतने केयर रहते हैं। यहां तक कि मैंने उनसे कह दिया था कि मैं तुम्हारे सामने विलेन ही नहीं लग रहा हूं। तुम एक फूंक मार दोगे तो मै उड़ जाऊंगा। उसके बाद अजय देवगन को देखा। फिर मैंने भी जिम जाना तथा खान पान पर नियंत्रण किया और मैं लगातार 2 घंटे वर्कआउट करता हूं। किंतु सिक्स पैक्स बनाने से काम नहीं चलेगा अभिनय तो करना ही पड़ेगा।

आजकल थिएटर आर्टिस्ट को फिल्मी दुनिया में बहुत नाम और काम मिल रहा हैं इस बारे में आपके क्या विचार है?
पहले भी काम मिलता रहा है। देख लीजिए नसरुद्दीन शाह, ओमपुरी, अनुपम खेर, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल इन्होंने भी अपनी पहचान बनाई है। वैसे भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से डिप्लोमा कोर्स करने के बाद कोई भूखा नहीं रह सकता। मैं तो एक साधारण परिवार से निकला हूं तो मुझे यह कहने में कोई शर्म नहीं है की मूंगफली बेचने वाला, जिस गर्व से मूंगफली बेचता है उसी तरह से मैं अभिनय बेचता हूँ।

युवाओं के लिए कोई संदेश?
सबसे पहले युवाओं को अपना उद्देश्य डिसाइड करना चाहिए कि उन्हें अभिनेता बनना है या राइटर बनना है या फिर निर्देशक बनना है। जो भी करना चाहे उसके लिए अच्छी फिल्में देखें। पढ़ाई करें, वर्कआउट करें। लोगों को सुनें और थिएटर भी करें जरूरी नहीं है कि कोई स्कूल एक्टिंग स्कूल ही ज्वाइन करें जो भी करें दिल लगाकर करें।

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