47 साल पहले भी गणेश उत्सव Ganesh Utsav के दौरान आई थी बाढ़
होशंगाबाद। 1973 व अन्य बाढ़(Flooding) के दिनों की तरह एक बार फिर 2020 में नर्मदा(Narmada) का रौद्र रूप देखने को मिला है। इतना ही नहीं नर्मदा के साथ साथ पूरा होशंगाबाद(Hoshangabad)शहर पानी में डूबा हुआ है। यह दिन 1973 की बाढ़ को याद दिलाता है जब लोग चार-चार दिन पेड पर बैठे रहे थे। इतना ही नहीं लोगो के घरों में दो माह तक चूल्हा नहीं जला था। गणेश उत्सव(Ganesh Utsav) के दौरान लोगो ने प्रतिमाएं सार्वजनिक रूप से विसर्जित नहीं की थी। दौर ऐसा था कि बाढ के साथ ही प्रतिमा विसर्जित हो गई थी।
1973 की बाढ़ (Flood)इतिहास में भयावाह
वरिष्ठ पत्रकार पंकज पटेरिया(Pankaj Pateria) ने बताया कि 30 अगस्त 1973 की सुबह नगर के इतिहास में भयावाह रही है। इस दिन जब सुबह हुई तो चारों तरफ पानी ही पानी था। होमसाइंस काॅलेज के पास से पिचिन फूटने से रेलवे स्टेशन और कोठीबाजार को छोड़कर पूरा शहर डूब गया था। लेड़िया बाजार(Lendiya Bajar), हलवाई चौक(Halwai Chouk) पर नाव चल रही थी। दो महीने तक राहत कार्य चलाए प्रशासन पहले से तैयार नहीं था। इस दौरान इटारसी के लोगों ने बाढ़ पीड़ितों की मदद की। करीब दो महीने तक कई घरों में भोजन तक नहीं पका। तबाही के बाद शासन ने एक अव्यवहारिक निर्णय लिया। जिसके तहत कोरी घाट से भीलपुरा तक नर्मदा किनारे एक दीवार खड़ी करने का काम शुरु कराया गया। नर्मदा के तटों से लोगों विस्थापित करने की मुहिम चली। लेकिन तब लोगों ने इसका विरोध कर दिया और अपने पुस्तैनी मकान छोड़ने से इंकार कर दिया।
चार-चार दिन पेडो पर रहे थे लोग
होमसाइंस कालेज के पास से पिचिन फूटने से समुद्र की तरह पूरा शहर हो गया था। रेलवे स्टेशन और कोठीबाजार को छोड़कर पूरा शहर डूब गया था। लेंडिया बाजार, हलवाई चैक पर नाव चल रही थी। सेना के जवान राहत कार्य में जुटे थे। दो महीने तक राहत कार्य चलाए दुकानों, घरों में अनाज, सामान और मवेशियों की लाशें जहा तहा सड़ने लगी थीं। लोगों के घरों में दो माह तक खाना नहीं पका पेडो पर बैठकर रात काटी थी।
घानाबड़ में खेत में फंसे तीन लोग
नर्मदा-तवा के संगम स्थल बांद्राभान के पास के घानाबड़ गांव में बाढ़.बारिश का पानी भरा रहा है। यहां तीन लोग एक खेत में फंस गए हैं। होमगार्ड का दल मौके पर पहुंच गया है। पर्यटन कोरीघाट जलमग्न हो गया है।
बालाभेंट में भराया बाढ़ का पानी
जिला होमगार्ड कमांडेंट आरकेएस चैहान ने बताया कि तटीय गांव बालाभेंट में बाढ़ का पानी भरा रहा है। वहां गोताखोर के दल को बोट के साथ पहुंचाया गया है। घानाबड़ में कुछ लोग बाढ़ से बचने के लिए पुल के ऊपर जाकर बैठ गए हैं। बचाव दल को पहुंचाया गया है। बांद्राभान में दिवस बसेरा में शिफ्ट किया जा रहा है।
जिले में तीन बार आई बाढ़
1973: देखते ही देखते पूरे शहर में पानी भर गया था। कई मकान भी धराशायी हो गए थे। तूफानी बरसात में जनजीवन पूरी तरह से अस्त.व्यस्त हो गया था। बच्चें, महिलाएं सभी अपनी जीवन रक्षा के लिए सुरक्षित स्थानों की ओर भाग रहे थे।
1999: में आई बाढ़ में सेना और एनडीआरएफ दोनों की मदद ली गई थी। करीब आठ दिनों तक घरों में पानी भरा गया था। हेली कॉप्टरों की भी मदद ली गई थी।
2013: में आई बाढ़ में भी कई इलाके जलमग्न हो गए थे।
2020: में जब पूरा शहर हुआ जलमग्न