झरोखा: पंकज पटेरिया – मातृभूमि पितृ भूमि धर्म भूमि महान, भरत भूमि महान है, महान है, महान। निसंदेह बहुत सुंदर है हमारा महान देश भारत। एक बहुत खूब सूरत बाग की तरह, जहा खिले रहते तरह-तरह के रंग बिरगे नयनाभिराम फूल, झूमते, मुस्कुराते, एक दूसरे से गुफ्तगू करते। भीनी भीनी सुगन्ध संवाद करते। सब के रंग अलग, महक अलग प्रकृति भी अलग, लेकिन सब एक रूप भारतीय अंतरंग में रंगे। प्यार, मोहब्बत, भाईचारे के रिश्ते में बंधे गूंधे आपसदारी से रहते है। कही कोई भेदभाव नहीं, कोई गिला शिकवा नहीं। सभी धर्म, संप्रदाय के प्रति समभाव, समादर। ईद, दिवाली, होली, क्रिसमस, बैसाखी एक साथ मिलजुल, हर्षउल्लास से मनाते।
यही हमारे संस्कार ओर संस्कृति है, जिस पर हमे गर्व है। वसुदेव कुटुंबकम के आराधक हम, सबके सुख शांति कल्याण की कामना करते। कर्म योग से बग़ैर ईर्ष्या द्वेष अपने राह स्वयम बनाते चलते। हमारे पौरुष ने ओर छोर आसमान नापे, सागर तल खगारे, प्रभु कृपा से मिले तेजस्वी नेतृत्व से हमारी कीर्ति, ध्वजा, विश्व शिखर पर फहरा रही है। इससे कुपित फिरकापरस्त मौकापरस्त, विस्तारवादी तत्व हमारी एकता, अखंडता, सौहाद्र को बिगाड़ने की नकाम कोशिश करते रहते है। इनकी कुटिल चालो से हमे सदा सावधान रहना है। वक्त आने पर राष्ट्र की बलिवेदी देने के अपने पूर्वजों की तरह आहुति देने के लिए सदा तैयार रहना है। गणतंत्र के पावन दिवस पर यही संकल्प मंत्र दोहराते हुए आइए एक स्वर में बोलें जय हिन्द। देश की आन बान शान के लिए तैयार रहे, प्राण दान के लिए। सदभाव की सरयू सदा अविराम बहती रहे इसी कामनाओं के जय गणतंत्र जय लोक तंत्र।
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार कवि ज्योतिष सलाहकार
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