ह वायें रंग की पर्ची उड़ाने लगीं, खुशबू ये खिड़की दरवाजे बजाने लगी, लो आ गया मौसम रंगीला मौज मस्ती का। कोई नीलिमा, कोई नजमा, कोई रूबी, कोई-कोई और झूमती गाती धमाल मचाने लगी। भाभियां देवरों को इशारे से बुलाती हैं। गुजियां, पपडिय़ां का लालच दिखाती हैं और कहीं कोने में छिपी भैया की साली साहिबा अचानक प्रकट होकर रंग की बंदूक दाग जाती हैं।
ऐसे मंदिर मोहक दृश्य इन दिनों घर-घर आंगन-आंगन उपस्थित हो उठते हैं। रंग गुलाल का महापर्व हमारे देश का ऐसा अद्भुत अपनेपन का त्योहार है, जहां सारे गिले शिकवे भूलकर हम एक दूसरे को गले लगाते और प्यार, अपनेपन और भाईचारे के रंग में डूब जाते। मौज-मस्ती के इस मोहक पर्व का यह अद्भुत मंदिर आमंत्रण में बंधे, रूठे हुये भी जादुई सम्मोहन में दौड़ चले आते, और बाहों में भर लेते। मदभरे रंग उत्सव के चलते, कई सुर्ख गुलाबी, केशरिया यादें मन के आकाश पर उतर आती।
आज जिंदगी में कितनी दूर आ गए, लेकिन इन यादों के इत्र की भीनी-भीनी महक साथ-साथ चली आ रही है। आइए रंग और गुलाल के मादक, मधुर पावन पर्व पर स्वीकारिए, चुटकी भर गुलाल टीका, और स्नेह रंग केसरिया। इन पंक्तियों साथ चुटकी भर गुलाल, अंजुरी भर रंग, कान्हा जी खेले होली राधाजी संग। तो मुझसे नाराज रहने वाले जो हैं, जो नहीं हैं उन्हें, इस लोक वासी, उस लोकवासी, अपने घर परिवार के आस पास वाले, उन्हें जिनसे कोई रिश्ता नाता नहीं लेकिन वे जो कुछ भी न होकर बहुत कुछ हैं, अपने हैं, यानी उन सबको आपको होली पर्व की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।
ईश्वर सदा सुखी रखे।। नर्मदे हर, जय साईं राम।

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार, कवि
संपादक शब्द ध्वज
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