अशून्य शयन व्रत क्‍यों है महत्‍वपूर्ण जाने, सम्‍पूर्ण जानकारी 2022

Post by: Aakash Katare

अशून्य शयन व्रत

अशून्य शयन व्रत क्या हैं जाने, पूजा विधि, महत्व, व्रत मंत्र, महत्‍वपूर्ण उपाय, व्रत कथा सम्‍पूर्ण जानकारी 2022

अशून्य शयन व्रत (Ashunya Shayan Vrat)

चातुर्मास के चार माह के दौरान हर माह के कृष्ण पक्ष की द्वितिया तिथि‍ को यह व्रत श्रावण मास से शुरू होकर भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को भी किया जाता है। इस व्रत का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया है।

इस व्रत में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस व्रत को सच्‍चे मन से पूर्ण करता है, उसके जीवन और घर-परिवार में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। इस व्रत को पति-पत्नी दोनो एक साथ पूर्ण करे तो जन्‍मों तक साथ मिलता हैं।

अशून्य शयन व्रत क्या हैं (What is Ashunya Shayan Vrat)

अशून्य शयन द्वितिया का अर्थ है कभी अकेले ना रहना। जिस तरह से महिलाएं अपने पति की दीर्घ आयु के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं ठीक बैसे ही पुरूष अपनी पत्‍नी की लंबी उम्र के लिये यह व्रत रखते हैं, ऐसा माना जाता हैं यह व्रत को करने से पति-‍पत्नि का साथ 7 जन्‍मों तक बना रहता हैं। अशून्य शयन व्रत को विधि-विधान से पूर्ण करने पर पति-पत्नी के रिश्तों में कभी खटास नहीं आती।

अशून्य शयन व्रत महत्व (Importance of Ashunya Shayan Vrat)

अशून्य शयन व्रत

अशून्‍य शयन व्रत का हिन्‍दू धर्म में एक विशेष महत्‍व होता हैं। इस व्रत को रखने से पत्नी की आयु लंबी होती है। और पति-पत्‍नी का रिश्‍ता और भी मधुर होता है और दांपत्य जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं। इस व्रत को करने से स्त्री वैधव्य तथा पुरुष विधुर होने के पाप से मुक्त हो जातें है। यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूरा करने और मोक्ष की प्राप्‍ति के लिए माना जाता है। इस व्रत से गृहस्थ जीवन हमेशा में शांति बनी रहती है।

अशून्य शयन व्रत की पूजा विधि (Worship method of Ashunya Shayan Vrat)

  • अशून्‍य शयन व्रत के दिन प्रात: जल्‍दी स्नान आदि करके स्‍वच्‍छ कपड़े धारण करना चाहिए।
  • इसके घर के मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
  • इसके बाद शाम के सयम भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्‍थापित कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
  • इसके बाद माता लक्ष्मी को श्रृंगार साम्रगी चढ़ाना चाहिए।
  • पूजा के बाद आरती कर व्रत कथा को पढना या सुनना चाहिए।
  • इसके बाद चंद्रोदय के समय पर चंद्रमा को दही, फल तथा अक्षत् से अर्घ्य करना चाहिए।
  • इसके बाद ही व्रत खोलना चाहिए।
  • अशून्य शयन व्रत के अगले दिन ब्राह्मण एवं कन्‍याओं को भोजन करा कर, दक्षिणा देनी चाहिए। साथ ही गरीबों को भी दान-दक्षिणा देनी चाहिए।

यह भी पढें:  दशहरा 2022 : जाने तिथि, शुभ मुहूर्त और सम्‍पूर्ण जानकारी

अशून्य शयन व्रत मंत्र (Aashnoya Shayan Vrat Mantra)

अशून्य शयन व्रत

“लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा।

शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।”

इस मंत्र का अर्थ होता है हे वरद, जैसे आपकी शेषशय्या लक्ष्मी जी से कभी सूनी नहीं होती, वैसे ही मेरी शय्या अपनी पत्नी से सूनी न हो, मतलब मैं उससे कभी अलग ना रहूं।

अशून्य शयन व्रत महत्‍वपूर्ण उपाय (Aashnoya Shayan Vrat Important Remedies)

अशून्य शयन व्रत

  • यदि पति-पत्‍नी के रिश्‍ते में किसी प्रकार की कोई लडाई या मन-मुटाव चल रहा हैं तो एक सिंदूर की डिब्बी में पाँच गोमती चक्र रखकर उस डिब्‍बी को घर के मंदिर या पत्नी के श्रृंगार के सामान के साथ रखें। इसके साथ ही एक भोजपत्र या सादे सफेद कोरे कागज पर लाल कलम से हं हनुमंते नमरु लिखकर मंत्र का जाप करते हुए घर के किसी कोने में रख दें। ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच में प्यार बढ़ेगा और रिश्‍ते मधुर होगें।
  • अपनी पत्नी को अपनी और आकर्षित करने के लिये शाबर मत्रं ऊँ क्षों ह्रीं ह्रीं आं ह्रां स्वाहा का जाप लगातार 7 दिनों करें। इस मंत्र के जाप से आपकी पत्नी का प्यार आपके लिये बढ़ेगा। यदि आपको इस मंत्र के जाप करने में कोई कठिनाई आती हैं, तो आप केवल ओम् ह्रीं नमः मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।

अशून्य शयन व्रत कथा (Aashnoya Shayan Vrat Fast Story)

अशून्य शयन व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय राजा रुक्मांगद ने जन रक्षार्थ वन में भ्रमण करते हुए महर्षि वामदेवजी के आश्रम पर गयें। वहां महर्षि के चरणों में साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया वहां महर्षि ने राजा का विधिवत सत्कार आने का कारण पूछां। तब राजा रुक्मांगद ने कहा- ‘भगवन मेरे मन में बहुत दिनों से एक संशय है।

मुझे किस अच्‍छे कर्म के फल से त्रिभुवन सुंदर पत्नी प्राप्त हुई है, जो सदा मुझे अपनी दृष्टि से कामदेव से भी अधिक सुंदर देखती है। परम सुंदरी देवी संध्यावली जहां-जहां पैर रखती हैं, वहां-वहां पृथ्वी छिपी हुई निधि प्रकाशित कर देती है। वह सदा शरद्काल के चंद्रमा की प्रभा के समान सुशोभित होती है।

बिना आग के भी वह षड्रस भोजन तैयार कर लेती है और यदि थोड़ी भी रसोई बनाती है, तो उसमें करोड़ों मनुष्य भोजन कर लेते हैं। वह पतिव्रता, दानशीला तथा सभी प्राणियों को सुख देने वाली है। उसके गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न हुआ है, वह सदा मेरी आज्ञा के पालन में तत्पर रहता है। प्रभु मुझे ऐसा लगता है, इस भूतल पर केवल मैं ही पुत्रवान हूँ, जिसका पुत्र पिता का भक्त है, गुणों के संग्रह में पिता से भी बढ़ गया है। किस प्रकार मैं इन सुखों को भोगता रहूँ और मेरी पत्नी और परिवार मेरे से कभी अलग न हो ऐसी कोई विधि बताएं।

तब मऋषि ने कहा : तुम भगवान विष्णु और लक्ष्मी का ध्यान करते हुए, श्रावण मास से शुरू करके भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को अशून्‍य शयन व्रत करों। जन्मों-जन्मों तक तुम्हें अपनी पत्नी का साथ मिलता रहेगा, सभी भोग-ऐश्वर्य पर्याप्त मात्रा में मिलते रहेंगे।

Leave a Comment

error: Content is protected !!