श्रीराम के अनुसार, अधर्म करने वाले अपनों के खिलाफ खड़े होना ही धर्म है

Post by: Rohit Nage

श्रीराम जन्म महोत्सव अंतर्गत श्रीराम कथा का सप्तम दिवस

इटारसी। धर्म की रक्षा के लिए अपने सगे संबंधियों से अगर बैर करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। ईश्वर के दिए हुए जीवन का उद्देश्य धर्म से जीना है। रावण ने माता सीता का हरण करके अपने सहस्त्रो पुण्य नष्ट करके सबसे बड़ा अधर्म किया। श्रीराम का तो जन्म ही धर्म की स्थापना के लिए हुआ था, यह बात समझकर विभीषण ने रावण के सोने की लंका का त्याग किया और वनवासी राम के पास जा पहुंचा। विभीषण एक उदाहरण है कि संसार में जब कोई अपना अधर्म करता है तो हमें उनका विरोध कर धर्म का पक्ष लेना चाहिए। अगर अधर्मी को खुला छोड़ दिया तो यह संसार जीने लायक नहीं बचेगा।

उक्त उद्गार जगद्गुरु रामभद्राचार्य की परम शिष्या मानसमणि साध्वी पंडित नीलम गायत्री ने श्री राम जन्म महोत्सव समिति द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा के सप्तम दिवस सोमवार को व्यक्त किए। कथाव्यास साध्वी गायत्री ने कथा को विस्तार देते हुए कहा कि माता सीता की खोज में निकले हनुमान जी, जामवंत, अंगद और वानर सेना समुद्र किनारे पहुंची तो वहां से आगे जाने का रास्ता खत्म हो गया। तब जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण कराते हुए कहा कि कहे रीछपति सुन हनुमाना, का चुप साध रहा बलवाना। पवन तनय बल पवन समाना, बल बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना। ऐसा कहते ही हनुमान जी विशालकाय रूप धारण करके लंका की ओर उड़ गए। लंका में माता सीता का पता लगाया, अक्षय कुमार का वध किया।

इतना ही नहीं रावण की सोने की लंका अहंकार खत्म करने पूरी लंका को जला दिया। कथाव्यास ने लंका दहन, रावण हनुमान संवाद, माता सीता की खबर लेकर श्री राम के पास पहुंचने की खबर विस्तार से श्रोताओं को सुनाई। समिति के प्रवक्ता भूपेंद्र विश्वकर्मा ने बताया कि श्रीराम नवमी के अवसर पर बुधवार की कथा सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक होगी। वहीं दोपहर 12 बजे प्रभु श्रीराम का भव्य जन्मोत्सव मनाया जायेगा। साथ ही शाम को श्रीराम नवमी का विशाल धर्म जुलूस निकलेगा। जिसमे सभी धर्म प्रेमी जनता के शामिल होने का अनुरोध आयोजन समिति ने किया है।

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