
आयुर्वेद के पितामह आचार्य जैन का देवलोक गमन
इटारसी। शहर में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के मूर्धन्य वैद्यरत्न आचार्य राजकुमार जैन (Vaidyaratna Acharya Rajkumar Jain) का 83 वर्ष की दीर्घायु में निधन हो गया। आयुर्वेद के पितामह कहलाने वाले आचार्य राजकुमार जैन ने जीवन पर्यन्त आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों, औषधियों और उपचार के कीर्तिमान स्थापित किए। वे महेन्द्र राजा जैन (लंदन) (Mahendra Raja Jain (London)), बीरेन्द्र जैन (Virendra Jain), सुभाष जैन (Subhash Jain Itarsi) के भ्राता थे। उनका अंतिम संस्कार इटारसी में संपन्न हुआ। जहां सभी वर्गों के प्रतिष्ठित नागरिकों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये।
आचार्य राजकुमार जैन आयुर्वेदिक औषधियों तथा उपचार पद्धति के उत्कृष्ट ज्ञाता थे। उन्हें यह वरदान उनके पिता वैद्यराज पं. सुंदर लाल जैन से प्राप्त हुआ था। पिता सुन्दर लाल वैद्य (Sunder Lal Vaidya) ने लगभग 100 साल पूर्व इटारसी में शुद्ध जड़ी बूटियों से आयुर्वेद उपचार को नींव डाली थी, जिसे आचार्य राज कुमार जैन ने आयुर्वेद उपचार में नए आयाम स्थापित किये। वृद्धावस्था व अस्वस्थता के बावजूद वह परिवार की विरासत में निरंतर अपनी सेवाएं देते रहे।
भारत सरकार की सेंट्रल काउन्सिल आफ इन्डियन मेडिसन (Central Council of Indian Medicine) के सचिव रहने के जरिये आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में कई नए आयाम स्थापित किये। देश-विदेश में आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से उन्होंने याति अर्जित की। आचार्य द्वारा लिखित आयुर्वेद ग्रंथों आयुर्वेद के सिद्धांत, योग और आयुर्वेद जैन धर्म और आयुर्वेद आदि को अनेक प्रांत की सरकारों आयुर्वेदिक और शैक्षणिक संस्थानों ने आचार्य वैद्य राजकुमार जैन को सम्मानित किया और अनेक उपाधियां दी। देश विदेश में कई सम्मानजनक पदों के प्रस्ताव होने पर भी उन्होंने इटारसी में ही रहकर गरीबों की सेवा करने के लिये अपना पूरा जीवन आयुर्वेद चिकित्सा को अर्पित कर दिया। वे सादगी और सरलता की प्रतिमूर्ति थे।