होशंगाबाद इटारसी रोड पर आदमगढ पहाड़ी से लगभग एक फर्लांग पहले जेल रोड पर जाते स्टेडियम के पास बुझी-बुझी सी सहमी खड़ी है, अपने अस्तित्व पर मंडराते संकट से। कभी हरे भरे पेड ओर खेतो के मध्य स्थित रही यह छोटी पहाड़ी जिसे लोग छोटी पहाड़ी ही कहते है, बहुत खूबसूरत और मनोरम दर्शनीय स्थल रही है। लेकिन आज इसकी कत्थई गुम होती मोहक सुंदरता पर उपेक्षा ओर उदासीनता के चलते, ग्रहण लग गया है। पुराने वाशिंदे कहते है, यह विश्व प्रसिद्ध बडी यानी आदमगढ पहाडी के कुनबे की ही बेटी है। दशाब्दियों पहले अर्ध चन्द्राकार में कुछ हिस्से को आलिकन करती पटेल बाबा के यहां से जाकर पीछे पड़ी पहाड़ी तक फैली थी।
अनुमान है, फिंरगी दौर में जब विकास के नाम सड़क आदि के नाम यहा वनश्री समाप्त हुई होगी, तभी इसका पाषाणी सौंदर्य खंड-खंड हुआ होगा, ओर लावारिश सी कुनबे काट दी गई होगी, ओर अलहदा अपाहिज सी छिटक गई। बहरहाल कुदरत ने इसे गले से लगा कर इसके रूप नकश निगार को सबारा था, और फिर सलोनी लगने लगी थी। पत्रकारिता के दौर में लेंड सिपिग के महत्व कांशी प्रोजेक्ट के चलते विश्व बैंक की टीम मुयायने पर आती तो इसे निहारने भी आती थी।
मुझे भी अनेक बार यह सौभाग्य मिला है। बाद में शहर से कटी-हटी यह उपेक्षा की शिकार रही, महज वे लोग जिनके खेत इधर है उनका ही आना-जाना रहा। पुरातत्व विभाग ने जाने क्या वजह रही कि अपना सारा ध्यान बड़ी पहाडी पर ही केन्द्रित रखा, नतीजन यहां विकास का रथ चल पड़ा और यहां बसीयत होने लगी। आगत का स्वागत, लेकिन छोटी पहाड़ी उजड़ती ओर बेनूरी पर किसी की तब्बजो नहीं है। अभी भी वक्त रहते चेता जाए तो विदा होती अपनी इस धरोहर को बचाया जासकता। कम से कम चार न सही दो चांद ही इसकी रुखसद होती खूबसुरती में बचे रहेंगे। शाम जब सूरज अपने सात अश्वों की लगाम समेट लोटने लगता है तो जाती किरणों से इसके बड़ते जख्म भी चमक उठते है, तो किसी भी भूले भटके आए किसी व्यक्ति की दृष्टि दुख जाती ओर क्यों क्या के क्यों सुलगते सवाल। जवाब मांगने लगते हैं।
पंकज पटेरिया(Pankaj Pateria),वरिष्ठ पत्रकार कवि
संपादक शब्द ध्वज,9893903003