अभय जी एक पुण्य स्मरण : अच्छे लोग अब किताबो में रह गए

पंकज पटेरिया :
अच्छे लोग की यादें चित में उद्दबत्ती सी जलती हैं। प्राणों में खुशबू सी बहती हैं। अच्छे लोग सदा अच्छे होते हैं। आंखे आरती उठाती है, अच्छे लोगो की। आत्मा अर्चना करती हैं। नई दुनिया के संपादक अत्यंत सौम्य विनयशील व्यक्ति अभय छजलानी (अब्बू बाबू), एक ऐसी ही शाहनी शख्सियत थे। मुझे बरबस ही अपनी यह प्रिय और प्रसिद्ध कविता जो मेरे प्रथम संकलन अपना ही बिम्ब नहीं उभरा से है याद आ गई।
दरअसल अच्छे लोग की पीढ़ी ही अब खत्म हो रही है। अब्बू बाबू ऐसे ही व्यक्तित्व थे जिन्होंने अनगिनत लोगों को एक ही बार की मुलाकात में अपना बना लिया था भले वे उनके अखबार के कर्मचारी हो या ना हो।
यह बात 70 के दशक की है जब नई दुनिया का डंका ना केवल प्रदेश बल्कि देश में भी बजाता था। बड़े-बड़े राजनेता मूर्धन्य पत्रकार विश्वस्त खबर के लिए नई दुनिया को ढूंढा करते थे। नईदुनिया की लोकप्रियता का आलम यह था कि आवागमन के साधन सीमित होने के कारण सुदूर बस्तर में 2:00 बजे दिन को नई दुनिया पहुंचता था। लोग बेसब्री से इंतजार किया करते थे। तब किरीट दोषी वहां संवाददाता होते थे।
मुझे याद है धर्म युग के यशस्वी संपादक प्रखर लेखक धर्मवीर भारती जी। जब बस्तर के दौरे पर गए थे तो मित्रों से कहते थे यार नईदुनिया पढ़ ले, फिर बौद्धिक नाश्ते के बाद आगे चलेंगे। जिस तरह धर्मयुग एक स्टेटस सिंबल था। उसी तरह कम से कम मध्यप्रदेश में नई दुनिया पढ़ने लिखने वाले लोगों के बीच एक प्रतिष्ठा प्रतीक था। छोटा बड़ा लेखक पत्रकार नईदुनिया में छपने की उत्कृष्ट चाह रखता था। मैं उन दिनों नया-नया पत्रकार बना था। मेरी भी चाह होती थी कि मैं नई दुनिया मैं लिखूं लेकिन बड़ा कठिन था।
नई दुनिया में लिखने के लिए पत्र संपादक स्तंभ की चैनल से गुजरना पड़ता था। सामायिक लेखों या जो सामग्री नई दुनिया में छपा करती थी। उन पर बेलाग राय अपने पत्र के माध्यम से संपादक स्तंभ में नई दुनिया को भेजना होती थी। उस समय में श्री शाहिद मिर्जा एक युवा पत्रकार स्तंभ को देखते थे। कई पत्र खारिज होने के बाद मालवा के मृत्यु भोज के मोहर के खिलाफ, भुट्टो की फांसी और कई मामलों पर जब मेरे पत्र नई दुनिया में प्रकाशित होना शुरू हो गए तो मेरा हौसला बढ़ा।
एक दिन में इंदौर नईदुनिया के केसर बंगला स्थित दफ्तर में पहुंच गया। गेट पर पहुंचते ही दरबान ने पूछताछ कर उंगली से बताया उस घर में चले जाइए। वहां अब्बू जी मिलेंगे। वही मालिक और संपादक हैं वह आपको सही सलाह देंगे।
मैं सीधे उस आवास की ओर पहुंच गया, घंटी बजाई, सामने सफेदझक कुर्ते पजामे में गौरवर्ण सौम्य मुस्कान, बिखरते जो विभूति उपस्थित हुई थी, वह थे अभय छजलानी जी याने अब्बू बाबू। मैंने प्रणाम कर अपने पत्रों की कटिंग बताई और आगे लिखते रहने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की। जबकि मैं एक समाचार पत्र का संवाददाता था। उन्होंने बहुत सौम्यता से उसी परिसर में नई दुनिया के कार्यालय मैं पहुंच श्री नरेंद्र तिवारी जी से मिलने की सलाह दी। कहा आप का अखबार है आप लिखिए।
मैं तिवारी जी से मिला। तिवारी जी ने मुझे बाजू की सीढ़ी से ऊपर जाकर रज्जू बाबू उर्फ श्री राजेंद्र माथुर से मिलने का कहा। मैं ऊपर जाकर रज्जू बाबू से मिला,अपनी मंशा बताई। माथुर जी ने बड़े प्रेम धैर्य से मेरी बात सुनी चाय पिलाई और कहा जरूर जरूर लिखें। होशंगाबाद में ( नर्मदापुरम ) बहुत कुछ लिखने को है। लिखिए। मुझे जो खुशी मिली थी उसका बयान में नहीं कर सकता। उसे याद कर मैं आज भी पुलकित हो उठता हूं। आज भी यकीन नहीं होता इतनी सरलता और आत्मीय भाव से मिलने वाले वे पत्रकार जगत में ऐसे अच्छे बड़े लोग हो गए हैं।
यकीनन अब यह बातें किस्से कहानी में है या फोटो में है। बहरहाल इसके बाद नई दुनिया में मेरे लेख एक फीचर छपना शुरू हो गए थे। उस दौर में मध्यप्रदेश में एकमात्र समाचार पत्र नई दुनिया ही था, जो अखबार में छपी एक पंक्ति पर भी पारिश्रमिक देता था। मेरे एक बहुत छोटे लेख थोड़ी की पीड़ा पर मुझे ₹25 का पारिश्रमिक नई दुनिया से मिला था। जबकि इस जमाने में मुझे मेरे अखबार मे सेवा करते हुए भी कुछ नहीं मिलता था, बजाय विज्ञापन कमीशन के। जो हमेशा प्राप्त करना टेढ़ी खीर थी।₹25 उस समय मुझे 25 लाख जैसे प्रतीत हुए थे।
प्रदेश भर में मेरा नाम चर्चा में शुमार हो गया था। हर सप्ताह मेरे लेख फीचर नई दुनिया में छपा करते थे। कभी कुछ नहीं लिख पाता था तो नई दुनिया से मुझे फोन आ जाता था। जबकि ऑफिसली मेरा उस अखबार से कोई संबंध नहीं था। ना मैं एजेंट था, न संवाददाता। पर यह अब्बू जी और राजेंद्र माथुर जी की उदारता थी कि वह मुझे लिखने के लिए प्रेरणा देते थे।
भले में दूसरे अखबारों में या किसी चैनल में काम करता रहा। लेकिन मैं अपना विद्यालय नई दुनिया को ही मानता आज भी हूं।
अपने व्यक्ति के कुशल क्षेम और हित की चिंता अक्षय जी कितना करते थे, इसका एक उदाहरण पर्याप्त है तब होशंगाबाद में अखबार के अभिकर्ता स्वर्गीय रमेश चौकसे के भतीजे का एक्सीडेंट इंदौर के पास कहीं हो गया था। घबराये चौकसे जी ने सीधे नईदुनिया फोन लगाकर यह दास्तान बता दी। फिर क्या था । तुरंत कार्यालय से फोन आ गए कलेक्टर एसपी को।
उस इलाके के और उनके भतीजे को अस्पताल में भर्ती करवाया गया। कार्यालय के स्टाफ की उनकी देखरेख के लिए ड्यूटी लगाई गई। अपने समाचार पत्र से इतर भी वे भले लोगों की मदद करते थे। इसके भी कई अनुभव मुझे हैं। इंदौर का खेल प्रशाल उन्हीं की देन है। देश-विदेश जो भी पत्रकार, लेखक यश पताका फहरा रहे हैं, वह सब नई दुनिया की टकसाल से निकला सोना है।
स्वयं राजेंद्र माथुर जो नई दुनिया के आधार स्तंभ में एक थे, नवभारत टाइम्स में जा रहे थे तो उन्हें नईदुनिया परिवार ने नम नयन से विदाई दी थी। इस मौके पर माथुर जी बहुत भाव विह्वल हो गए थे। उन्होंने अवरुद्ध कंठ से कहा था, मेरा मेटल तो नई दुनिया का है जहां जाऊंगा वहां नई दुनिया की धातु की ही चमक-दमक दिखेगी।
आदरणीय अब्बू बाबू को सादर प्रणाम।
नर्मदांचल न्यूज़ पोर्टल प्रभु से प्रार्थना करता है उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दे।
नर्मदे हर।
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार
साहित्यकार
9340244352, 9407505651

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