किसानों के सहयोग से ही मिलेगी निश्चित सफलता: सिंह

किसानों के सहयोग से ही मिलेगी निश्चित सफलता: सिंह

नरवाई नहीं जलाने के लिए जागरुक करने कार्यशाला

इटारसी। खेतों गेहूं की फसल कटाई के बाद बचने वाले अवशेष नरवाई (Narwai) को जलाने से रोकने के लिए जिला प्रशासन के निर्देश पर कृषि विभाग कार्यशालाओं (Agriculture Department Workshops) का आयोजन कर रहा है। ऐसी ही एक कार्यशाला आज यहां कृषि उपज मंडी समिति के सभागार में हुई जिसमें उपसंचालक कृषि ने किसानों को नरवाई न जलाने की शपथ दिलाई। इस दौरान किसानों से नरवाई जलाने से रोकने के लिए सुझाव भी लिये। कार्यशाला में अनेक किसानों ने अपने विचार रखे।
कार्यशाला में उप संचालक कृषि जितेंद्र सिंह (Deputy Director Agriculture Jitendra Singh) ने कहा कि नरवाई न जलाने के लिए अपने-अपने क्षेत्र के किसानों को जागरूक करें और सलाह दें कि वे नरवाई न जलाएं। कार्यशाला में किसानों को बताया गया कि वे फसल कटाई के दौरान आगजनी जैसी स्थिति निर्मित होने की दशा में पंचायत स्तर पर भी पानी के टैंकर तैयार रखें। उन्होंने कहा कि नरवाई जलने से संपूर्ण समाज को नुकसान है, इसे जलाने से रोकने के लिए किसानों को ही प्रयास करने होंगे। जिस ग्राम पंचायत ने प्रण कर लिया कि नरवाई नहीं जलने देंगे, वहां ऐसी घटनाएं नहीं हो सकती। गांव के हरेक सदस्य की जिम्मेदारी है कि ऐसी घटनाएं न हों। हालांकि लोग जागरुक भी हुए हैं और ऐसी घटनाओं में कमी भी आ रही है।
ग्राम स्तर पर निगरानी समिति बनाकर नरवाई में लगने वाली आग को रोकने हेतु तत्पर रहकर जिला प्रशासन को सूचना दें। कार्यशाला में नरवाई के उचित प्रबंधन के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों जैसे रोटावेटर, बैलर, हैप्पीसीडर आदि के प्रयोग की भी जानकारी दी गई। कार्यशाला में नुक्कड़ नाटक व लोककला गीत, नृत्य के माध्यम से नरवाई न जलाने तथा उसका प्रबंधन व विभागीय योजनाओं की जानकारी दी गई।

ये बोले किसान
– ग्राम जमानी के उन्नत कृषक हेमंत दुबे ने कहा कि नरवाई या खेत में आग के बाद भयावह स्थिति बन जाती है, क्योंकि सारे खेत एक साथ नहीं कटते हैं। जहां फसल खड़ी होती है, वहां से आग तेजी से फैलती है। पांजराकलॉ में पिछले वर्षों में हुई घटना हमारे लिए दुखद रही और उसके बाद किसानों ने काफी कुछ सीखा है। अभी और जागरुकता की आवश्यकता है। मूंग के कारण खेतों की नरवाई जलायी जाती, यह बात पूरी तरह से सच नहीं है। कुछ ही किसान ऐसे होते हैं, जो मूंग के कारण नरवाई जलाते हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए खेत की मेढ़ों पर फलदार और अन्य पेड़ लगाने को किसानों को प्रेरित करना होगा, पेड़ से आत्मिक लगाव होता है, बिना किसान की जागृति के कुछ भी संभव नहीं है।
– ग्राम तारारोड़ा के किसान शंभूदयाल पटेल का कहना था कि आज कृषि अधिकारी, किसान और कृषि वैज्ञानिकों के बीच जो मंथन हो रहा है, उससे निश्चित ही कुछ अच्छा निकलकर सामने आयेगा। उन्होंने सुझाव दिया कि किसानों को दलहनी फसल की ओर प्रेरित करें, किसान केवल गेहूं पर ही केन्द्रित न रहें। किसानों को भूसा बनाने के लिए प्रेरित किया जाए। भूसा मशीनों पर पानी के टेंक अनिवार्य करें।
– सोमलवाड़ा के किसान शरद वर्मा ने बताया कि उनके गांव में पिछले दस वर्षों से नरवाई जलाने की कोई घटना नहीं हुई है। हमारे यहां सभी भूसा तैयार करते हैं और उससे भी आय प्राप्त की जाती है। हम गेहूं कटने के तुरंत बाद भूसा बनाते हैं जो साढ़े तीन रुपए किलो में डेयरी फार्म पर बिक जाता है। उन्होंने कहा कि दस वर्ष पूर्व तक हमारे गांव में भी आगजनी की घटनाएं होती थी।
– सिवनी मालवा ब्लाक के किसान मिश्रीलाल राठौर ने सुझाव दिया कि पंचायत स्तर पर समितियों का गठन होना चाहिए जो यह देखे कि नरवाई में आग न लगें। यह भी कहा कि पंचायत स्तर पर भी इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए।

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